सितम्बर महीना, माने सरकारी ऑफिस में राजभासा समारोह का महीना. ई महीना में सब सरकारी ऑफिस में राजभासा कार्यक्रम का धूम देखने लायक होता है . हमरे ऑफिस में भी इस महीना में हिंदी मुहावरा प्रतियोगिता, वर्ग पहेली, अंताक्षरी, वाद विवाद, निबंध लेखन, आशु भाषण और न जाने केतना प्रतियोगिता पूरा महीना चलता रहता है अऊर सबसे बड़ा आयोजन होता है 14 सितम्बर को, अंचल कार्यालय में सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ. सच पूछिए त साल के एगारह महीना में चाहे जो भी हालत हो, ई महीना में त लोग का जोस देखकर बुझाता है कि बस अब कल से सब काम हिंदी में होने लगेगा. लेकिन सितंबर महीना खतम होते ही, हिंदी के काम पर अईसा मोहर लग जाता है जईसा रजिस्ट्री का मोहर लगने के बाद जुम्मन ने खाला की खातिरदारियों पर लगा दिया था.
हमसे जेतना होता है, हम सालों भर करते रहते हैं. चुपचाप बिना किसी फल का आसा किए. इस मामले में हम गीता का बात मानते हैं. अपना तरफ से स्पस्ट कर दें कि गीता हमरी राजभासा अधिकारी का नाम नहीं है, हम त उस गीता का बारे में कह रहे हैं, जिसका एक स्लोक हर कोई जहाँ मर्जी होता है वहीं कोट कर देता है अऊर जना देता है कि हम भी गीता पढे हैं. खैर, जब हम कलकत्ता में पोस्टेड थे, तब तनी आराम था. काहे कि ऊ “ग” क्षेत्र में आता था, यानि अहिंदी भासी क्षेत्र. मतलब कम से कम काम - जादा से जादा नाम.
कभी कभी आस्चर्य होता था कि हिंदी भासी प्रदेस, बिहार के बगल में होने पर भी बंगाल का लोग हिंदी के मामला में “ग” क्षेत्र में है. जबकि कमाल देखिए, बंगाल का अनगिनत सब्द बिहार के बोली में रचा बसा हुआ है. खैर ई सब पर जादा दिमाग नहीं लगाते हुए हम अपना काम में लग गए. हमरा पोस्टिंग बिदेस बिभाग में था, इसलिए हिंदी में काम करने का सम्भावना नहिंए के बराबर था. तो भी हम पहिला काम ई किए कि अखबार वाले को बोलकर हिंदी का अखबार लगवा लिए ऑफिस में.
अब रोज सबेरे हिंदी का समाचार पत्र हमरे सामने रख दिया जाता था. जब पूरा ऑफिस बंगाल का परम्परा के अनुसार सुबह सुबह मुख्य समाचार पर बांग्ला में बहस कर रहा होता था, हम चुपचाप हिंदी का हेडलाईन पढकर अपना काम में लग जाते थे. खाने के समय में पाँच मिनट का समय निकाल कर वर्ग पहेली हल करते और इंतज़ार करते अगला दिन के अखबार का, ताकि जवाब देख सकें.
हमारा हिंदी प्रेम चलता रहा. कोई बाधा नहीं कहीं से भी, मगर प्रोत्साहन जैसा भी कुछ नहीं देखाई दिया. तीन महीना बाद सितम्बर आ गया. हम पहिले ही बता दिए अपने अंचल कार्यालय को कि हम हिंदी का ज्ञान रखते हैं अऊर इस साल हिंदी भासी वर्ग में सब प्रतियोगिता में हम हिस्सा लेंगे, इसलिए हमको समय पर खबर कर दिया जाए. लोग चौंक गया कि बिदेस बिभाग में ई कौन पागल आया है, अऊर जब पता चला त सब हँसा कि बिहारी आदमी को बोलने त ठीक से आता नहीं है, प्रतियोगिता में कहाँ से हिस्सा लेगा.
बहुत जल्दी सारा उम्मीद पर पानी फिर गया. हमरे नहीं, उनके. उस साल सब प्रतियोगिता में हिंदी भासी वर्ग में हम प्रथम आए. पिछला कई साल के चैम्पियन लोग हमसे बहुत पीछे रह गए. अब त हमरे ऑफिस में हमरा इज्जत तनी बढ गया. बॉस का सीना भी चौड़ा हो गया, जब सब ईनाम उनके ऑफिस को मिला.
अब हमरा हिंदी का समाचार पत्र का भी इज्जत तनी बढ गया था. कुछ लोग (दक्षिण भारतीय सहकर्मी गण को छोड़कर) कोसिस करने लगा था कम से कम मुख्य समाचार पढने का. हमरा काम ऐसा था कि सुबह नौ बजे से साम साढे चार बजे तक एकदम फुर्सत नहीं होता था. ऊ दिन चार बजे एक युवा कर्मचारी, जिसका नाम सुकल्प भट्टाचार्य्य था, हमरे पास आया अऊर बोला, “ भर्मा दा! ई पेपर हम पढने का लिए ले सकता है?” (बंगाल में अंगरेजी का “वी” अक्षर से लिखा जाने वाला सब्द का उच्चारन “भ” किया जाता है, इसलिए हमको वर्मा न कहके भर्मा बोलता था सब.)
“अरे सुकल्पो! ऑफिस का कागज (कागज माने अखबार) है, ले जाओ.”
सुकल्पो अख़बार लेकर चला गया. पौने पाँच बजे ऊ फिर हमरे पास आया अऊर बोला, “भर्मा दा! एक्टू सहायता कीजिए.” उसका बांग्ला मिला हुआ हिंदी सुनकर हमको बहुत अच्छा लगा.
“बोलो.”
“एई कागज में हम कुछ वर्ड को अंडरलाईन किया है. आप हमको उसका माने बता दीजिए.”
पहिले त हमको लगा कि ऊ मजाक कर रहा है. मगर जब उसका चेहरा पर हमको सीरियसनेस देखाई दिया, त हम उसको सब सब्द का माने अंगरेजी में समझा दिए. ऊ समझ गया था, ई बताने के लिए उ हमको वाक्य बना कर बताया कि सब्द का मतलब का है. हमको खुसी हुआ.
उसके बाद त हर दिन का रूटीन बन गया कि ऊ साम को हमरे पास आकर हमसे नया सब्द का मतलब सीखता अऊर पुराना सब्द आने से बताता कि ई सब्द हम उसको दू दिन पहिले बताए थे. देखते देखते उस लड़का का सब्दकोस एतना अच्छा हो गया कि उसको हमरे पास आने का जरूरत नहीं रहा. मगर जब कभी उसको कोई कठिन सब्द नजर आता था, तो उ हमसे पूछता अऊर सब्द का अर्थ याद भी रखता था.
एक साल बीत गया. अऊर अगला साल सितम्बर महीना में जो हुआ ऊ कोई सस्पेंस नहीं है. हिंदी माह का सब प्रतियोगिता में से अधिकतर में अहिंदी भासी वर्ग में सुकल्प भट्टाचार्य्य प्रथम या द्वितीय स्थान पर रहा. उसका रोज का आधा घण्टा अभ्यास का रस्सी हमारे ऑफिस के इतिहास के पत्थर पर हिंदी का अमिट निसान छोड़ गया.