हमसे दिल्ली का छूटा, लिखने छूट गया. केतना तरह का परेसानी, काम का जबर्दस्ती
दबाव, परिवार से अलग रहने का मोस्किल, खान-पान का दिक्कत अऊर बेमतलब का भाग-दौड़. ई
सब तकलीफ अदमी भुला जाता है जब उसको कोई खाली एतने कह देता है कि साबास! मगर जमाना
बहुत बदल गया है अऊर जेतना जमाना नहीं बदला, उससे कहीं जादा अदमी बदल गया है. बहुत
जादे दिन का बात नहीं है, एही 10-15 साल पहिले का बात है, लोग अच्छा काम करने पर
पीठ थपथपाता था. आजकल त कोई पीठ थपथपाये त सचेत होना चाहिये कि कहीं थाह-थाह कर ई
त नहीं देख रहा है कि पीठ में छुरा घोंपने के लिये सही जगह कहाँ पर है.
साल 2000. जगह कोलकाता
उमर भी कम था हमरा अऊर काम को बोझा समझने का आदतो नहीं था. हमरी माता जी हमेसा
सिखाती थीं कि दुनिया का बड़ा से बड़ा काम तुमसे बड़ा त कोनो जनम में नहीं हो सकता. इसलिये
काम का बोझा देखकर परेसान होने से परेसानी अऊर बढेगा. बस उसको देखकर उसका मजाक
उड़ाओ, त सब बोझा हल्का लगने लगेगा. बस एही बात गांठ बाँधकर हँसते, मजाक करते काम
एनजॉय करते थे.
ओही समय हमरे ऑफिस में हमरी चेयरमैन का दौरा हुआ. खबर पहिलहिं आ गया था कि
उनको पीला गुलाब बहुत पसन्द है. मंगवा लिया गया गुलदस्ता. उनका आने का टाइम एगारह
बजे दिन में था अऊर ऊ आईं करीब तीन साढे-तीन बजे. खैर जब उनको पीला गुलाब का
गुलदस्ता दिया गया त बहुत खुस होकर बोलीं,”आई लव येलो रोज़ेज़!”
हमरे मुँह से अचानक निकल गया (अचानक त नहिंये, लोग बताया था कि ऊ बहुत
जिन्दादिल औरत हैं इसलिये जानबूझकर निकला था), “वास्तव में ये लाल
गुलाब थे, आपके इंतज़ार में पीले पड़ गये हैं!” एतना सुनने के बाद ऊ
बहुत खुलकर हँसीं अऊर पूरा ऑफिस से “सॉरी” बोलीं. आज का जमाना होता तो सौरी बोलना त दूर हमरा जो
दसा होता ऊ कल्पना से बाहर है.
ऊ टाइम हमरे ऑफिस में हमरे बॉस थे सिरी असोक कुमार सेनगुप्ता. हम उनके यूनियन
के सदस्य नहीं थे. इसलिये ऊ खुलकर बोलते थे, “भार्मा! भेन आई हैभ टु डिपेंड, आई उविल डिपेंड ऑन यू.
बट भेन आई हैभ टु रेकमेण्ड, आई उविल रिकमेण्ड शुप्रभात!” हम ई बात का बुरा नहीं मानते थे, काहे कि ऊ सच्चो
हमरे ऊपर बहुत डिपेण्ड करते थे.
एक रोज साम को जाते समय हमको बोलाए अऊर बोले, “भार्मा! ऐक्टा अर्जेंट काज आछे.” (एक ज़रूरी काम है)
”हैं, बोलून!” (जी बोलिये!)
“एई ऐकटा खूब अर्जेण्ट
प्रोपोज़ल आछे. होय जाबे?” (ये बहुत ज़रूरी
प्रोपोज़ल है, हो जायेगा)
”ठीक आछे, काल के एटाई
कोरे दिच्छी!” (ठीक है, कल इसी को कर
देता हूँ)
”एक्टू ताड़ा-ताड़ी आछे!” (थोड़ी जल्दी है)
”कोतो शोमोय देबेन!” (कितना समय देंगे
मुझे)
ऊ हमसे आँख चोराते हुये बोले, “काल
के एगारा टा नागाद!” (कल ग्यारह बजे तक)
साम को छौ बजी ई बात हो रहा है अऊर अगिला दिन एगारह बजे तक खतम होना है काम,
सब काम छोड़ियो के अगर कोई करे, त कम से कम आठ घंटा लगेगा. ऊ भी तब, जब सब
कागज-पत्तर पूरा हो.
हम बिना कुछ बोले उनके पास से चले गये. रात में घर पर पड़ोसी से कम्प्यूटर माँग
के काम किये, फ्लॉपी में सेभ किये अऊर सबेरे दस बजे ऑफिस पहुँचने पर प्रिंट करके
अऊर दस्तखत करके सेनगुप्तो दा के आने के पहले उनके टेबुल पर पूरा फाइल रख दिये. ऊ
आये, देखे अऊर फाइल लिये हुये हमरे हमरे पास आये. चुपचाप खड़े रहे, मगर उनका आँख
में भरा हुआ भाव सब्द में कहने से बाहर था. खाली एतने बोले, “कोखोन कोरले?” (कब किया)
”छाड़ून शेनगुप्तो दा! शे
काज टा आमाकेई तो कोरते होतो, कोरे दिलाम!” (जाने दीजिये शेनगुप्तो दा, वो काम मुझे ही तो करना था, कर दिया)
एक बार कोनो एक्झीक्यूटिव के आने पर, ऊ हमरा पीठ थपथपाकर बोले कि ई बहुत
इंटेलिजेंट ओफिसर है हमारा. आऊर जवाब में हम बोले कि हमको काम का तनखाह मिलता है
बस. अऊर पीठ थपथपाने से डर लगता है कि कहीं कोई पीठ में छुरा घोंपने का जगह त नहीं
खोज रहा है. बात हँसी में खतम हो गया, मगर ऊ बाद में बोले कि उनको ई बात अच्छा
नहीं लगा.
ई घटना हम फेसबुक पर लिखे त बहुत सा लोग बहुत तरह का बात बोला. सरिता दी
फोन करके हमको समझाईं कि अपना से बड़ा लोग के बारे में ऐसा बात असम्मान समझा जाता
है, चाहे ऊ बात केतनो मजाक में कहा गया हो. साथ में ईहो बोलीं कि मोहावरा बोलते
समय बहुत होसियारी का जरूरत होता है, काहे कि बहुत सा लोग उसका साब्दिक माने लगाकर
नाराज हो जाता है. हम सरिता दी को बिस्वास दिलाये कि आगे से हम दुनो बात का
ख्याल रखेंगे.
कल रात अचानक (हमारे ‘शुभो बिजोया’ के मेसेज के जवाब में) सेनगुप्ता दा का फोन
आया. पहिले त ऊ हजार गण्डा आसीर्बाद दिये ( आम तौर पर बिहार में हजार गंडा मुहावरे
के साथ गाली का प्रयोग होता है) फिर फेसबुक वाला हमरे स्टैटस के बारे में बोलने
लगे कि ऊ बात त ऊ कहिये भुला गये. अऊर उनको त ऊ घटना इयादो नहीं था. कहने लगे कि
तुमरा अच्छा बात सब एतना इयाद है कि ई सब छोटा-मोटा बात इयाद करने का फुर्सत कहाँ
है. इसके बाद ऊ जो बात बोले ऊ हमको एतना भावुक कर दिया कि हमरे आँख से आंसू निकल
गया. ऊ बोले, “भार्मा! आज तक कोई भी
बॉस अपना ऑफिसर के बारे में सी.आर. में जो बात नहीं लिखा होगा, वो बात हम तुम्हारे
बारे में लिखे थे. रेटिंग के अलावा हम लिखे कि किसी भी ऑफिस में कोई भी आदमी
इन-डिस्पेंसिबल नहीं होता है, लेकिन यह ऑफिसर अगर इन-डिस्पेंसिबुल नहीं है तो भी
हमारे संस्थान के लिये एक बेशकीमती ऐसेट है!”
अब बुझाता है कि उनके एही सब बात का असर रहा होगा कि परदेस में रहते हुये,
बहुत सारा लोग के बीच से हमको बिदेस में चार साल का पोस्टिंग मिला.
ई बंगाल का जादू भी हमरा पीछा नहीं छोडता है.