बहुत साल पहले एगो सिनेमा देखे थे “इस रात की सुबह नहीं”. हीरो अपना परेशानी में घिरा होता है और क्लब में दोस्त लोग उसको समझाने का कोसिस कर रहे होते हैं. ऊ नहीं मानता है अउर उठकर जाने लगता है. ओही समय कोइ पीछे से उसके कंधा पर हाथ रखता है अउर हीरो गुस्सा में उसको थप्पड़ मार देता है. जिसको थप्पड़ लगा ऊ सहर का मसहूर गुंडा था अउर ऊ भी बहुत परेसान हालत में था. पूरा पब्लिक के बीच में थप्पड़ लगने से ऊ गोस्सा में आग बबूला हो गया अउर हीरो को खतम करने के लिए तत्पर हो गया. सिनेमा एही भाग दौड का कहानी था. गुंडा को थप्पड़ लगने का गुस्सा ओतना नहीं था, जेतना पब्लिकली थप्पड़ लगने का था.
ब्लॉग जगत में तब हमलोग नया नया आए थे... बहुत अरमान, बहुत सपना, बहुत आसा लेकर. सायद एतना सपना कोइ दुल्हिन भी नया-नया ससुराल में पहिला कदम धरते समय नहीं देखती होगी. सबकुछ चकाचौंध कर देने वाला. मन लगाकर लिखना अउर छोटा से छोटा कमेन्ट पर भी फूला नहीं समाना. ऐसा में मनोज कुमार जी का “विचारोत्तेजक” अउर समीर लाल जी का “अच्छी प्रस्तुति” भी मन को आनंद पहुंचाता था. समीर लाल जी का नाम कुछ दिन के अंदर हमारे लिए “ए हाउसहोल्ड नेम” बन गया.
तब एतना भी समझ नहीं था कि ब्लॉग लिखने वाला बड़ा लोग लिखता कुछ है, उसका मतलब कुछ अउर होता है, निशाना कहीं अउर होता है. हमको लगता था कि भावार्थ हमारे समझ में नहीं आ सकता है, मगर उसका पूरा का पूरा माने हमरे समझ में नहीं आए इतना तो बेबकूफ नहिंये हैं हम. अइसहीं एक दिन समीर लाल जी के “उड़न तश्तरी” पर एगो पोस्ट देखाई दिया. उसका भाबार्थ जो हम समझे (आज सर्मिन्दा होते हैं अपना सोच पर) ऊ हमको बहुत चोट पहुंचाने वाला लगा. ऊ कहते हैं न कि मन में बसा हुआ मूर्ति खंडित होने जईसा तकलीफ हुआ (अतिशयोक्ति नहीं है).
हम बोले कि हम जाकर लिखेंगे कि ई गलत बात है समीर बाबू. तब लगा कि हमरा नया-नया “सम्बेदना के स्वर” का गला न दब जाए कहीं. इतना बड़ा आदमी से ओझराने का मतलब – खल्लास!! सोचे बेनामी टिप्पणी करते हैं. मगर तब तक बेनामी का मतलब बुझाने लगा था. बिचार हुआ अउर फैसला लिया गया कि एगो ब्लॉग बनाकर उसी से कमेन्ट करके अपना बिरोध दर्ज किया जाए. काहे से कि सबलोग उनका लिखा का तारीफ छोड़कर कुछ कहा नहीं था. चैतन्य बाबू सलाह दिए कि आप अपना बिहारी बोली में काहे नहीं कमेन्ट करते हैं (पाहिले तो ऊ मना किये थे कमेन्ट करने के लिए, मगर हमरे जिद को टाल नहीं पाए). हमको भी ई आइडिया जंच गया.
हम जब भी कुछ लिखते हैं, त उसका सीर्सक चैतन्य बाबू देते हैं. हम कहते भी हैं कि हमारे दिमाग में जब प्रसब पीड़ा होता है अउर रचना का जन्म होता है, तो उसका नामकरण आपके ही हाथ से होता है. बस ऊ बेनामी ब्लॉग का नाम चैतन्य जी रख दिए “चला बिहारी ब्लोगर बनने”. समीर जी के साथ कमेन्ट को लेकर बहस हुआ. गुरुदेव सतीस सक्सेना जी उनके बचाव में खड़े हो गए. समीर जी पता लगा लिए कि हम कौन हैं अउर हमरा माथा हल्का हो गया कि बेनामी को नाम मिल गया अउर ऊ भी ब्लॉग जगत के डॉन के मार्फ़त. अच्छा सम्बन्ध रहा समीर जी के साथ. जब दिल्ली आए तो ऊ अपने एगो कोमन दोस्त के मार्फ़त अपना प्रोग्राम बताए. हम बोले, “उनसे मिलने वालों की कतार लगी होगी, पता नहीं मेरा नंबर कब आएगा”. समीर जी का जवाब था, “उनको कहना, उनका नंबर पहला होगा.” मिले उनसे, बहुत जिंदादिली से. अउर उसी दिन उनको अपने मन का बात बताए कि जो कहिये हमरे ब्लॉग के जनक आप ही हैं.
सुरू में तो काफी दिन बेनामी बने रहे. फिर लगा कि बेनामी बने रहने में कोनों फायदा नहीं है. अउर खाली टिप्पणी करने के लिए ब्लॉग सुरू किया तो धिक्कार है हमरे की बोर्ड पर! चैतन्य जी का सुझाव आया कि ब्यक्तिगत अनुभव लिखो. हम भी सोचे कि “संवेदना के स्वर” से अलग लगना चाहिए. अउर तब हम सुरू किये अपना याद का गठरी खोलना. अईसा अनुभव, जो हमरा होने पर भी सबका मालूम पड़े. हमरे बात से लोग को अपना बात याद आये. मजा आने लगा. बहुत अच्छा लगा कि कब ब्लॉग के माध्यम से दुनिया से जुड़े, दुनिया से नया नया रिश्ता बना, दुःख तकलीफ भी बांटे अउर दोस्ती प्यार भी फैलाने का कोसिस किये. हमरे घर का लोग भी हैरान. बच्चा लोग को नया-नया घटना का पता चला अउर पुराना लोग का याद ताजा हो गया. माताजी, भाई-बहन का कहना था कि सब घटना जाना हुआ है, मगर तुम जब कहते हो तो लगता है कि बस कल का बात है.
फिलिम “आँधी” में संजीव कुमार टेलीफोन पर सुचित्रा सेन को एगो नज़्म सुनाते हैं तो उनके बीच का बातचीत सुनिए:
“वंडरफुल! ब्यूटीफुल!”
“एक बात बताऊँ, तुम जब अच्छा कहती हो ना, तो सचमुच बहुत अच्छा लगता है!”
बस एही कहना चाहते है हम भी आप लोग से कि जब आप लोग हमरे बात से अपना कोइ बात याद करके अच्छा कहते हैं ना, तो सच्चो हमको बहुत अच्छा लगता है. कम से कम पिछला एक साल से तो एही देख रहे हैं. बिस्वास कीजिये आज हमरे ब्लॉग का एक साल पूरा हो गया है!!