अपना देस में रावन को जलाने का अनुस्ठान त साल में एक्के बार दसहरा के दिन होता है, लेकिन सीता मईया को जिंदा जला देने का घटना, बिना कलेंडर अऊर तारीख देखे होता रहता है. कहते हैं कि सीता मईया का जनम पृथ्बी के गर्भ से हुआ था, लेकिन आज भी केतना बच्ची जन्म के साथ पृथ्बी का गर्भ में समाहित कर दी जाती है. गंगा माई त अपना बच्चा को पैदा होते ही नदी में परवाहित कर देती थीं अऊर कारन पूछने का सख्त मनाही भी कर दी थीं. ओही महाभारत में कर्ण जैसा तेजस्वी बालक को पैदा होने के साथ साथ बक्सा में बंद करके नदी में बहा दिया गया, बिना मोह ममता के या मोह ममता को लोक लाज के कारन दबा कर.
एही में से कुछ बच्चा भाग्यसाली होता है त उसको नया जीबन मिल जाता है. किसन भगवान जसोदा के लाल कहलाते हैं अऊर कर्न अधिरथ और राधा के पुत्र. लेकिन समय महाभारत से लेकर आज तक नहीं बदला है.
ऊ रोज भी गाँधी मैदान में भोरे भोरे सैर करने वाला लोग का कमी नहीं था. लेकिन उत्तरवारा कोना के पास कुछ लोग का भीड़ जमा था. सुसील बाबू (हमरे साथी हैं ऑफिस के ) भी सैर कर रहे थे, लेकिन भीड़ भाड़ देखकर झंझट में पड़ना नहीं चाहते. जईसहीं उनको भीड़ देखाई दिया ऊ सरकने लगे, मगर तबे उनको कोना में खुला हुआ मैनहोल देखाई दे गया, जिसमें सब लोग झाँक रहा था. आदमी का दिमाग भी का मालूम कईसा बनाया है भगवान. आदमी जऊन चीज से नजर बचाकर जाना चाहता है, ओही चीज को एकबार देखने का मन भी करता है. सुसील जी भी सोचे कि झाँककर देखते हैं का बात है. अऊर फिर धीरे से सरक जाएंगे. अभी उनको तीन चक्कर अऊर लगाना था.
झाँककर देखते ही उनका माथा सन्न रह गया. सूखा हुआ मैन होल में एगो नबजात बच्चा कपड़ा में लपेटकर कोई फेंक गया था. पूरा भीड़, ऊ अनजान अपराधी को गरियाने में लगा था अऊर बच्चा के लिए अफ्सोस कर रहा था. कोई ऊ बच्चा को उठाकर बाहर निकालने का हिम्मत नहीं किया. सुसील जी बहुत भावुक आदमी हैं. उनका मन कचोटने लगा.
एक बार घर में, जाड़ा के दिन साम को जैसहीं ऊ खिड़की बंद किए, उनको लगा कि कुछ दब गया है खिड़की के पल्ला से. तुरत ऊ खिड़की खोलकर देखे तब पता चला कि एगो बिछौती (छिपकली) चिपा कर मर गया था. ई बात का उनके ऊपर एतना असर हुआ कि आज भी ऊ जब कोनो दरवाजा चाहे खिड़की बंद करते हैं, तब तुरत खोलकर देख लेते हैं कुछ चिपा त नहीं गया है न! लोग उनको पागल कहता है, उनका मजाको उड़ाता है, मगर उनके ऊपर कोई असर नहीं.
खैर, ऊ बच्चा को देखकर उनका मन हुआ कि बच्चा को निकालकर थाना में ले जाएँ. कम से कम अपना दायित्व त पूरा हो जाएगा. बाकी जो पुलिस उचित समझेगा, करेगा. ऊ बस आगे बढने वाले थे कि भीड़ में से कोई बोल दिया कि पुलिस का चक्कर बहुत खराब होता है. पुलिस त अपना बाप का भी नहीं होता है. जो आदमी मदद करने जाता है, उल्टा उसी को परेसान करता है. बगले में थाना है, खबर होइये गया होगा. ई सब बात सुनकर एगो साधारन आदमी के तरह सुसील जी भी डर के ओहाँ से हट गए अऊर अपना दौड़ का चक्कर पूरा करने लगे. लोग बाग भी अपना काम में लग गया, ई बात से बेखबर कि कोई घटना उनके आस पास घटा है.
सुसील जी का ध्यान बचवे पर लगा हुआ था. जब दोसरा चक्कर लगाकर उधर से लौटे त भीड़ लगभग खतम हो चुका था. ऊ चुपचाप मैन होल में झाँकने गए. अबकि जो दृस्य उनको देखाई दिया, ऊ देखकर उनका पूरा देह ठण्डा हो गया. ऊ बच्चा, जो थोड़ा देर पहिले हाथ पैर चला रहा था, सांत हो चुका था. सुसील जी को लगा कि कोई आसमान से जमीन पर पटक दिया है.
ऊ घर लौट कर आए अऊर बिना किसी को कुछ बताए हुए चुपचाप सो गए. ऐसा ऊ कभी नहीं करते थे, अऊर फिर ऑफिस जाने का भी तैयारी करना था उनको. जब घर का लोग उनको उठाने गया तो देखा कि उनका पूरा देह बुखार से जल रहा है. किसी को कुछ नहीं बताए सुसील जी. ऐसा चुप हो गए, जईसे कोई भूत देख लिए हों साक्षात.
ई घटना को बहुत साल बीत गया. मगर आज भी कभी उनके साथ, आप स्कूटर से कहीं जा रहे हैं अऊर रास्ता में कोई भी मैन होल खुला देखाई दे जाए, त ऊ तुरत स्कूटर रोक देते हैं. आपको रुकने के लिए बोलकर, मैन होल तक जाकर उसमें झाँककर देखते हैं. कहने वाला लोग उनको पागल, सनकी अऊर न जने का का कहता है. बाकी उनका कहना है कि हमको आज भी लगता है कि हम उस बच्चा के जिम्मेबार हैं अऊर ऊ हमको खुला हुआ मैन होल के अंदर से बुला रहा है.