सोमवार, 29 नवंबर 2010

पागल आदमी


अपना देस में रावन को जलाने का अनुस्ठान साल में एक्के बार दसहरा के दिन होता है, लेकिन सीता मईया को जिंदा जला देने का घटना, बिना कलेंडर अऊर तारीख देखे होता रहता है. कहते हैं कि सीता मईया का जनम पृथ्बी के गर्भ से हुआ था, लेकिन आज भी केतना बच्ची जन्म के साथ पृथ्बी का गर्भ में समाहित कर दी जाती है. गंगा माई अपना बच्चा को पैदा होते ही नदी में परवाहित कर देती थीं अऊर कारन पूछने का सख्त मनाही भी कर दी थीं. ओही महाभारत में कर्ण जैसा तेजस्वी बालक को पैदा होने के साथ साथ बक्सा में बंद करके नदी में बहा दिया गया, बिना मोह ममता के या मोह ममता को लोक लाज के कारन दबा कर.
एही में से कुछ बच्चा भाग्यसाली होता है उसको नया जीबन मिल जाता है. किसन भगवान जसोदा के लाल कहलाते हैं अऊर कर्न अधिरथ और राधा के पुत्र. लेकिन समय महाभारत से लेकर आज तक नहीं बदला है.
रोज भी गाँधी मैदान में भोरे भोरे सैर करने वाला लोग का कमी नहीं था. लेकिन उत्तरवारा कोना के पास कुछ लोग का भीड़ जमा था. सुसील बाबू (हमरे साथी हैं ऑफिस के ) भी सैर कर रहे थे, लेकिन भीड़ भाड़ देखकर झंझट में पड़ना नहीं चाहते. जईसहीं उनको भीड़ देखाई दिया सरकने लगे, मगर तबे उनको कोना में खुला हुआ मैनहोल देखाई दे गया, जिसमें सब लोग झाँक रहा था. आदमी का दिमाग भी का मालूम कईसा बनाया है भगवान. आदमी जऊन चीज से नजर बचाकर जाना चाहता है, ओही चीज को एकबार देखने का मन भी करता है. सुसील जी भी सोचे कि झाँककर देखते हैं का बात है. अऊर फिर धीरे से सरक जाएंगे. अभी उनको तीन चक्कर अऊर लगाना था.
झाँककर देखते ही उनका माथा सन्न रह गया. सूखा हुआ मैन होल में एगो नबजात बच्चा कपड़ा में लपेटकर कोई फेंक गया था. पूरा भीड़, अनजान अपराधी को गरियाने में लगा था अऊर बच्चा के लिए अफ्सोस कर रहा था. कोई बच्चा को उठाकर बाहर निकालने  का हिम्मत नहीं किया. सुसील जी बहुत भावुक आदमी हैं. उनका मन कचोटने लगा.
एक बार घर में, जाड़ा के दिन साम को जैसहीं खिड़की बंद किए, उनको लगा कि कुछ दब गया है खिड़की के पल्ला से. तुरत खिड़की खोलकर देखे तब पता चला कि एगो बिछौती (छिपकली) चिपा कर मर गया था. बात का उनके ऊपर एतना असर हुआ कि आज भी जब कोनो दरवाजा चाहे खिड़की बंद करते हैं, तब तुरत खोलकर देख लेते हैं कुछ चिपा नहीं गया है न! लोग उनको पागल कहता है, उनका मजाको उड़ाता है, मगर उनके ऊपर कोई असर नहीं.
खैर, बच्चा को देखकर उनका मन हुआ कि बच्चा को निकालकर थाना में ले जाएँ. कम से कम अपना दायित्व पूरा हो जाएगा. बाकी जो पुलिस उचित समझेगा, करेगा. बस आगे बढने वाले थे कि भीड़ में से कोई बोल दिया कि पुलिस का चक्कर बहुत खराब होता है. पुलिस अपना बाप का भी नहीं होता है. जो आदमी मदद करने जाता है, उल्टा उसी को परेसान करता है. बगले में थाना है, खबर होइये गया होगा. सब बात सुनकर एगो साधारन आदमी के तरह सुसील जी भी डर के ओहाँ से हट गए अऊर अपना दौड़ का चक्कर पूरा करने लगे. लोग बाग भी अपना काम में लग गया, बात से बेखबर कि कोई घटना उनके आस पास घटा है.
सुसील जी का ध्यान बचवे पर लगा हुआ था. जब दोसरा चक्कर लगाकर उधर से लौटे भीड़ लगभग खतम हो चुका था. चुपचाप मैन होल में झाँकने गए. अबकि जो दृस्य उनको देखाई दिया, देखकर उनका पूरा देह ठण्डा हो गया. बच्चा, जो थोड़ा देर पहिले हाथ पैर चला रहा था, सांत हो चुका था. सुसील जी को लगा कि कोई आसमान से जमीन पर पटक दिया है.
घर लौट कर आए अऊर बिना किसी को कुछ बताए हुए चुपचाप सो गए. ऐसा कभी नहीं करते थे, अऊर फिर ऑफिस जाने का भी तैयारी करना था उनको. जब घर का लोग उनको उठाने गया तो देखा कि उनका पूरा देह बुखार से जल रहा है. किसी को कुछ नहीं बताए सुसील जी. ऐसा चुप हो गए, जईसे कोई भूत देख लिए हों साक्षात.
घटना को बहुत साल बीत गया. मगर आज भी कभी उनके साथ, आप स्कूटर से कहीं जा रहे हैं अऊर रास्ता में कोई भी मैन होल खुला देखाई दे जाए, तुरत स्कूटर रोक देते हैं. आपको रुकने के लिए बोलकर, मैन होल तक जाकर उसमें  झाँककर देखते हैं. कहने वाला लोग उनको पागल, सनकी अऊर जने का का कहता है. बाकी उनका कहना है कि हमको आज भी लगता है कि हम उस बच्चा के जिम्मेबार हैं अऊर हमको खुला हुआ मैन होल के अंदर से बुला रहा है.

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

आतंकी हमला और खोया बचपन

मेरे दिल के किसी कोने में एक मासूम सा बच्चा
बड़ों की देखकर दुनिया, बड़ा होने से डरता है.

26.11.2008 के घटना पर हमरा बेटा अनुभव प्रिय एगो कबिता लिखकर हमको सुनाया. बहुत अफसोस हुआ कि देस का भविस्य कहे जाने वाले बच्चा के सामने, केतना भयानक घटना घटा है कि बारह साल का उमर में बच्चा अईसा कबिता लिख गया. कबिता में सिल्प का कमी है, कबिता का ब्याकरन गड़बड़ है. लेकिन भाव एकदम सच्चा है.
सोचने पर मजबूर करता है बात कि एगो घटना, एतना भयानक हो सकता है कि जिसमें खाली निर्दोस आदमी का हत्या ही नहीं हुआ, एगो बचपन का भी हत्या हुआ अऊर अचानकबच्चा बड़ा लोगों के जईसा सोचने लगा.
एगो खोया हुआ बचपन का कबिता, स्रद्दांजलि है, सभी बहादुर सिपाहियों को, सहीदों को अऊर उन सभी लोगों को जो लोग जान से हाथ धो बईठे, जबकि लोग का कोनो दोस नहीं था. भगवान उन सब के आत्मा को सांति दे!!

एक ताज सुनाता है प्यार की कहानी
दूसरे की सुनिये मेरी ज़ुबानी.
मेहनत से दोनों बने वर्षों की
यह घटना भी पुरानी नहीं
है बस कल परसों की.
हम थे खोए ख़्वाबों में जिस रात
दुश्मन लगाए बैठे थे घात
हथियारबंद और निहत्थे थे आमने सामने
चली गोलियाँ -समानों में.
जो थे जाँबाज़, बढे आगे
खाई गोलियाँ सीने पर, मगर डर कर भागे.

फिर निकला काला सूरज, हुआ सवेरा
आतंकियों ने अपनाया नया डेरा
ताज था उनका निशाना
और मकसद था लोगों को डराना.
आए सिपाही, जंग होते कटा एक दिन
पर जीत कहाँ मिलनी थी साहस के बिन

बरसती रही दनादन गोली
जाँबाज़ों ने खेलीं ख़ून की होली.
नेताओं से मिले कोरे आश्वासन
बदल जाएगा स्थानीय कुशासन
पर सिखा गईं लाशें ताज में दबी
ऐसी भूल अब होगी कभी.

शायद भगवान भी था ऐसे बुरे समय में साथ
हमारे सिर पर रखे आशीष का हाथ
लाशों के अम्बार में अपने होने का कराता भान
दो सितारों के बीच एक चाँद, लिए आशा की मुसकान.
ई घटना वाला रात में, दू ठो तारा के बीच चाँद (क्रेसेण्ट मून) स्माइली जईसा मुस्कुरा रहा था, अऊर ई घटना भी सबलोग देखा था.

रविवार, 21 नवंबर 2010

गुमशुदा कैडेट

पटना सहर का पूर्बी इलाका, बचपन में पटना सिटी कहलाता था, बाद में पटना साहिब कहलाने लगा. जब पटना सिटी कहलाता था तब भी जगह ओतने पबित्र था जेतना पटना साहिब कहलाने के बाद. एही पाबन धरती पर सिक्ख सम्प्रदाय के दसवें अऊर अंतिम गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ था. संजोग ऐसा हुआ कि हमरे परिबार में हमरे चाचा जी, हमरे चचेरे भाई अऊर हम तीनों एहीं से नौकरी का सुरुआत किए . आज भी सिरी हरमंदिर साहिब का स्मरन होते ही माथा स्रद्धा से झुक जाता है.

घटना नौकरी के सुरुआत के भी बहुत पहिले का है. कॉलेज में पढ़ते रहे होंगे तब. एन सी सी ज्वाइन कर लिये थे अऊर कैम्प के लिये झाँसी के पास बबीना ले जाया गया था हम लोग को. कैम्प था 15 दिन का, लेकिन समस्या एहीं से सुरू हुआ. 15 दिन हमरे लिए पहाड़ जईसा होने वाला था. जमाना था, हरे रामा हरे कृस्ना का. मतलब लम्बा लम्बा कंधा पर झूलता हुआ बाल का. हम भी अपवाद नहीं थे. नया नया जवान हुये थे, ठीक से मोंछ दाढ़ी भी नहीं आया था अऊर देखने में मासाअल्लाह स्मार्ट भी थे ( बात हमरी माता जी के अलावा भी लोग कहता था काहे कि माँ के नजर में उसका बच्चा दुनिया का सबसे स्मार्ट बच्चा होता है).

कहाँ कंधा पर झूलता हुआ रेसमी जुल्फ, जिसको देखकर मन में सुनाई देता था,  उड़ें जब जब जुल्फें तेरी, अऊर कहाँ एन सी सी का अनुसासन, जिसमें बाल माथा पर कटोरा रखकर काटा जाता था, भी अईसा कि मुट्ठी छोड़िये चुटकियो में नहीं धराने वाला. बड़ा समस्या था. जो आता ओही डराकर चला जाता. समझे में नहीं आता था कि का करें. लगा कि हमरा अंतरात्मा से जादा हमरा आस पास का लोग हमसे बोल रहा है कि बेटा माता क़ुर्बानी माँग रही है. जब तुमरे अंदर बाल कटाने का जज्बा नहीं है, तो सर कटाने का समय आएगा का करोगे.

लेकिन हमरा मन टस से मस नहीं हो पा रहा था. आखिर एक दिन एलान हो गया कि मेजर सुरेंद्र नाथ परेड का निरीक्षन करने के लिये सनिवार के दिन आएँगे. इसलिए सब चाक, चुस्त, चौबंद होना चाहिये. तनिको कमी का मतलब था कि पीठ पर पिट्ठू, चाहे राइफल हाथ में उठाकर मैदान का चार चक्कर लगाना. अब हमरे सामने तीन रास्ता था. पहिला एकदम सीधा कि बाल कटवा लें और नहीं पिट्ठू या दौड़. अऊर इस फैसला के लिए हमको मिलने वाला था सिर्फ चार दिन. और घड़ियाल बाबू चल पड़े थे. हमरे नजर के सामने से सब लोग का फोटो गुजर गया जिनको हमरे जुल्फ में हमरा स्मार्टनेस देखाई देता था. का जवाब देंगे लोग को हम. केतना लोग का उम्मीद पर पानी फिर जाएगा.  हमरा जुल्फ कटने का सवाल नहीं, हमरे नाक कटने का सवाल बन गया था.

चार दिन कईसे बीत गया पते नहीं चला. दुनिया भर का घड़ी अऊर सूरज चाँद सब फास्ट हो गया था या साजिस करके एक्के पार्टी में हो गया था सब. सनिवार के दिन परेड मैदान में एकट्ठा हो गया पूरा प्लाटून. सब चाक, चुस्त, चौबंद. बूट अऊर बेल्ट चमकता हुआ, युनिफॉर्म इस्तरी किया हुआ कड़क, कंधा से राइफल लटका हुआ. एक बार साबधान का कमाण्ड मिला नहीं कि बूट से बूट जोड़कर अईसा खटाक का आवाज  होता था कि  जईसे पहाड़ो का सीना में छेद  हो जाए.
मेजर साहब आए, परेड का निरीक्षन किए अऊर खूब तारीफ करके  चले गए. मेजर सुरेंद्रनाथ एतना कड़क मेजर थे कि अगर कोनो टुकड़ी को अच्छा कह दिए समझिए एक्सरे हो गया. लोग बाग कहता था कि उनके नजर से कमीज के ऊपर वाला पॉकेट में रखा हुआ सिक्का भी नहीं छिप सकता था.

मेजर साहब के जाने के बाद हमरा जेसीओ हमको खोज रहा था. उसको पता चल गया था कि उसका प्लाटून में से एगो लड़का कम हो गया है. लेकिन उसको भी मालूम था कि एगो सिक्ख कैडेट बढ़ गया था गिनती में,  कैडेट जसपाल सिंह के साथ साथ लांस कार्पोरल सलिल सिंह. कड़क यूनिफॉर्म में माथा पर पगड़ी बाँधे हुए. मेजर सुरेंद्रनाथ को दू गो सरदार दिखाई दिया, मगर बात सिर्फ हमरा प्लटून का जे सी जानता था कि पटना से सिर्फ एक सरदार आया था.

अगला दिन कैम्प फायर था. अऊर हम जोस में नारा लगा रहे थे, जो बोले सो निहाल...सत सिरी अकाल!!