बंगाल का जादू एतना मसहूर रहा है कि उसका
सम्मोहन से बचना मोसकिल है. अऊर ई जादू भी अईसा कि जो इसके सम्मोहन में पड़ा, उसके
लिए त बस उससे निकलना लगभग असम्भब है. पाँच-छौ साल बंगाल में रहने के बाद हम आजतक
ऊ जादू से बाहर नहीं निकल पाए हैं. एगो अजीब “मिडास टच” है ई सहर में, जिसको छू देता है
उसको अंदर से सोना बना देता है. कला, साहित्य, संस्कृति अऊर परम्परा का गंगा भी है
ई सहर अऊर सागर भी.
एही सहर में एगो नौजवान सांति-निकेतन के
पाँच साल का पढाई बीच में छोडकर, ब्रिटिस बिज्ञापन कंपनी में काम करने लगा. काम के
साथ-साथ ऊ “सिगनेट प्रेस” से छपने वाला दू ठो किताब जिम कॉर्बेट का “मैन
ईटर्स ऑफ कुमाऊँ” अऊर जवाहर लाल नेहरू का “डिस्कवरी ऑफ इंडिया” का
कवर डिजाइन किया. बिज्ञापन कंपनी, जहां ऊ नौकरी करता था, के तरफ से उसको लन्दन
भेजा गया. ओहाँ एक रोज ऊ देखने चला गया एगो सिनेमा – इतालवी सिनेमा “Ladri di
biciclette (बाइसिकल चोर).” सिनेमा
हॉल से बाहर निकलने के साथ ही ऊ नौजबान अपना जिन्नगी का सबसे बड़ा फैसला करता है कि
उसको बस सिनेमा बनाना है. अऊर उसका ऊ फैसला उसको बिश्व सिनेमा का महत्वपूर्ण नाम
बना देता है.
(पेन्सिल स्केच - मेरे पुत्र अनुभव प्रिय द्वारा)
हम इयाद कर रहे हैं मसहूर फिल्मकार सत्यजीत राय
को. एक आदमी के अंदर एतना पर्तिभा देखकर कभी-कभी भगबान के पक्षपाती होने का भरम
पैदा हो जाता है. बास्तब में फिल्म बनाना अपने आप में एगो ऐसा आर्ट है, जो एक आदमी
का सोच से सुरू होता है अऊर कई लोग मिलकर ऊ सोच को पर्दा पर उतारने में सफल होता
है. लेकिन कभी ध्यान से सोचकर देखिये कि हमारा सोच को दोसरा आदमी कैसे महसूस कर
सकता है. सायद एही कारण है कि बहुत सा साहित् को जब सिनेमा के पर्दा पर उतारा गया
त कम से कम ऊ रचना के लेखक को पसंद नहीं आया.
सत्यजीत राय एही बात नहीं पसंद करते थे. कहानी के
चुनाव के बाद, पूरा कहानी को अपने अंदर उतार लेते थे, सही माने में कंसीभ करना या
गर्भ धारण करना जईसा. उसके बाद पटकथा, संबाद अऊर सेट डिजाइन का स्केच अपने आप
तैयार करते थे. उनका हर स्क्रिप्ट में सेट का डिटेल देखकर दंग हो जाना पड़ता है. हर
चरित्र का स्केच ताकि मेक-अप करने वाला बूझ सके कि फलाना कैरेक्टर कैसा लगता है,
क्या पहनता ओढता है, कईसा देखाई देता है, कइसे खडा होता है, बैठता है... हर चरित्र
का पूरा डिटेल स्केच में. वइसहीं सेट का स्केच, फर्नीचर का पोजीसन, लाईट केतना है,
कहाँ से आ रहा है, कौन कहाँ खडा है या बैठा है.
एक एक डायलॉग पर मेहनत. “शतरंज के खिलाडी”
सिनेमा के बाद ऊ बोले कि हमको भासा में परेशानी होता है, इसलिए हम
हिन्दी/उर्दू/हिन्दुस्तानी में सिनेमा नहीं बना सकते हैं. इसमें अभिमान से जादा,
उनका ईमानदारी झलकता है कि अपना कमी मान लिए. उनका सुरू का सिनेमा में पंडित रवि
शंकर, विलायत खान साहब अऊर अली अकबर खान साहब संगीत दिए, लेकिन सत्यजीत राय का
मानना था कि उनके मन मुताबिक़ काम नहीं होने पर चोटी के संगीतज्ञ लोग से बहस नहीं
किया जा सकता, इसलिए बाद के सिनेमा में खुद संगीत देने लगे. एही नहीं, सुब्रत
मित्र, जो उनके फोटोग्राफर थे, के साथ अनबन होने पर ऊ फोटोग्राफी भी खुद करने लगे.
एडिटर त ऊ थे ही बढ़िया. लोग बताता है फोटोग्राफी खुद करने से उनको एगो फायदा ईहो
हुआ कि ऊ एडिटिंग साथे-साथ कर लेते थे. एगो आदमी लेखक, पटकथा-संबाद लेखक, सेट
डिजाइनर, संगीत निर्देसक, फोटोग्राफर, एडिटर सब हो अईसा बहुत मोसकिल है मिलना.
सायद एही कारण था कि उनको देस-बिदेस में बराबर सम्मान मिला.
हम जानकर इहाँ पर उनका सिनेमा का नाम अऊर काम पर
चर्चा नहीं कर रहे हैं, काहे कि ऊ सब त नेट पर उपलब्ध है. हम त बस एही बताना चाह
रहे हैं कि सत्यजित राय के महानता में उनका समर्पण का सबसे बड़ा जोगदान है. एगो अऊर
बात है, उनके साथ. एक तरफ ऊ समाज के बहुत सा सरोकारी, जटिल अऊर चिंता करने वाला
बिसय पर सिनेमा बनाते हैं, दोसरा ओर बच्चा लोग के लिए भी सिनेमा ओतने ईमानदारी से
बनाते हैं. एही नहीं, उनका लिखा हुआ उपन्यास अऊर कहानी आझो बच्चा लोग को रहस्य
रोमांच का दुनिया में ले जाता है. फेलु दा उर्फ प्रदोस चंद्र मित्तर,
तोपसे चाहे प्रोफ़ेसर संकू... ई सब काल्पनिक चरित्र बंगाल के
संस्कृति का हिस्सा है, ओइसहीं जइसे ई सब चरित्र के रचनाकार सत्यजीत राय, जिनके हर
जासूसी उपन्यास या कहानी के पीछे एगो सार्थक तथ्य छिपा होता था, चाहे कोनो न कोनो
नया जानकारी.
गजब के सपना देखने वाले इंसान थे अऊर सपना को
हू-ब-हू पर्दा पर उतार देना, अईसा कि देखने वाला को कहीं भी कोनो मिलावट नजर नहीं
आये. सत्यजीत राय, हमरे भी पसंदीदा फिल्मकार/उपन्यासकार हैं अऊर हमरे बेटा के भी,
जबकि हम दूनो में एक पीढ़ी का फासला है. मगर रचनात्मकता में सत्यजीत राय पुल हैं,
दोनों पीढ़ी को जोड़ने वाले.
आज सत्यजीत राय का जन्मदिन है!!
अब तो समाज सरोकार और गुणवत्ता युक्त फिल्म शून्य ही बन रही हैं.... जिसे देखो नग्नता परोस रहा है... इतना ही नहीं इसका दोष भी समाज के माथे मढ़ देते हैं कहते हैं समाज जो देखना चाहता है हम वही बना रहे हैं... भाई लोग एक बार भी मेरे से और मेरे तमाम परिचितों से तो कभी पूछने नहीं आये की कैसी फिल्म पसंद करते हो....
जवाब देंहटाएंसत्यजीत जी के बारे में सारगर्भित जानकारी प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद...
सत्यजीत राय एक महान फिल्मकार और लेखक हैं;आपने आज उनके जन्मदिन पर याद किया और हमें उनका परिचय जिस संजीदगी से दिया वह नायाब है। अनुभव प्रिय द्वारा बनाया गया उनका स्कैच भी उत्तम है। आप दोनों को बधाई की आप कला-संस्कृति के विलुप्त होते इस काल में दो पीढ़ियों को रचनात्मकता के साथ न केवल जोड़ें हैं बल्कि उन्हें जी भी रहें हैं...शायद साहित्य,संस्कृति,कला और अदाकारी यूं ही जिंदा रहते हैं...
जवाब देंहटाएंसत्यजीत राय एक महान फिल्मकार और लेखक हैं;आपने आज उनके जन्मदिन पर याद किया और हमें उनका परिचय जिस संजीदगी से दिया वह नायाब है। अनुभव प्रिय द्वारा बनाया गया उनका स्कैच भी उत्तम है। आप दोनों को बधाई की आप कला-संस्कृति के विलुप्त होते इस काल में दो पीढ़ियों को रचनात्मकता के साथ न केवल जोड़ें हैं बल्कि उन्हें जी भी रहें हैं...शायद साहित्य,संस्कृति,कला और अदाकारी यूं ही जिंदा रहते हैं...
जवाब देंहटाएंसत्यजीत राय के फ़ैंस में हम भी हैं। ऐसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी कम ही होते हैं। अनुभवप्रिय की प्रतिभा भी बेजोड़ है।
जवाब देंहटाएंसत्यजीत राय गुणवत्ता से से समझौता नहीं करने वाले रचनाकार थे ! इसलिए पीढ़ियों के अंतराल के बावजूद उनकी लोकप्रियता जस की तस है !
जवाब देंहटाएंAise charitra birle hi hote hai aur yahi charitra auro ko kisi bhi kaal me prerna de sakte hai.. .aapke maadhyam se jaanna hamesha sukhad hota hai ..aur fir hamare "Chhotu Ustad" ki to baat hi nirali hai....
जवाब देंहटाएंAjeeb baat hai ye comment box ek din pahle kyo chal raha hai....bhavishya ki tippani....WOW....:-)
जवाब देंहटाएंइतना बढ़िया स्केच आपके बेटा ने बनाया , पिता के ऊपर गया है बेटा, शर्तिया नाम रोशन करेगा ! कभी उनके ऊपर कुछ लिखो जिससे हम लोग जान सकें छोटे सलिल को ..
जवाब देंहटाएंसस्नेह
''मगर रचनात्मकता में सत्यजीत राय पुल हैं, दोनों पीढ़ी को जोड़ने वाले''
जवाब देंहटाएं(शायद कई पीढि़यों को जोड़ने वाले). बढि़या अनूठी प्रस्तुति.
आज का सिनेमा तो बस नग्नता को ही नए नए जमे पहनकर पेश कर रहा है ....सत्यजीत जी जैसे महान लोग कम ही मिलते है सत्यजीत जी के बारे में बढ़िया जानकारी दी आपने मामा जी
जवाब देंहटाएंसंजय भास्कर
बढ़िया |
जवाब देंहटाएंआभार भाई जी ||
अनुभव-प्रिय को बहुत बहुत बधाई |
सत्यजित दा भारतीय-सिनेमा में बिलकुल अलग मुक़ाम रखते हैं.उन्होंने केवल अपने हुनर के ज़रिये विश्व-सिनेमा में भी पहचान बनाई.आज की दुनिया में हम केवल कल्पना कर सकते हैं.उन जैसा शायद ही दुबारा कोई हो !
जवाब देंहटाएंआपने अपनी स्टाइल से और आपके सुपुत्र अनुभव-प्रिय के स्केच ने मन मोह लिया,गुरूजी !
जब तक कलकत्ता मे था अक्सर ही उनकी फिल्मे देखने को मिल जाती थी टीवी पर ... कलकत्ता क्या छूटा जैसे सब छूट गया ... अभी मार्च मे कलकत्ता जाना हुआ था तो उनकी फिल्म "जय बाबा फेलूनाथ" की डीवीडी खरीदी ... एक बार फिर बचपन की यादें ताज़ा हो गयी ! दिल्ली मे सीपी के प्लाज़ा सिनेमा के ठीक सामने एक दुकान है 'दा ग्रामाफोन हाउस' के नाम से वहाँ इन का पूरा कलेक्शन है डीवीडी का ... अब की बार आता हूँ तो देखता हूँ !
जवाब देंहटाएंसत्यजीत राय साहब को शत शत नमन !
अनुभव बाबू कमाल का स्केच बनाए है आप ... मान गए साहब ... किसी जमाने मे इस पोज़ मे इन का एक पोस्टर मेरे कमरे मे लगा हुआ था ! ऐसे ही अपने और भी स्केच समय समय पर दिखाइए हम लोगो को ! हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें स्वीकार करें !
हटाएंpost to bas ysan hi hai ............evergreen....
जवाब देंहटाएंbut sketch ..... masallah.....
aap ka abhar aur 'unko' saratbabu ko sat-sat naman.
pranam.
सत्यजित राय ... बात ही अलग है ...अनुभव की प्रतिभा फेसबुक पर देख चुकी हूँ ... उसकी कामयाबी की बात भी अलग होगी
जवाब देंहटाएंसत्यजीत राय के जन्मदिन पर बहुत अच्छी पोस्ट ... अनुभव द्वारा बनाया गया चित्र बहुत अच्छा लगा ॥शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबड़े भाई, ई पोस्ट पढ़के अपना पहिला पोस्टिंग इयाद आ गया। ढाई दसक पहले जब बंगाल आए थे, त हमको बंगला सीखने का मन हुआ, त अपना स्टाफ़ के बोले कि हमको बंगला स्क्रिप्ट आता है लेकिन हम बंगला बोलना और समझना चाहते हैं क्या करें? ऊ हमको फेलुदार गल्पो सीरिज लाकर दिया। जेतना इंटरेस्टिंग ऊ किताब सब है उतना ही सुंदर उसका भासा और मेजाज।
जवाब देंहटाएंबंगाल की पहचान, सान और आन सत्यजीत राय के जनम दिन पर दिया गया आपका ई नायाब तोहफ़ा बड़ा अच्छा लगा। पिछले सप्ताह सत्यजीत राय फ़िल्म इंश्टीच्यूट गए थे। एक अलग दुनिया है।
बेटा का बनाया फोटो बता रहा है कि वह कलात्मक अभिरुचि में आपसे किसी मायने में पीछे नहीं है। आशीष।
जवाब देंहटाएंसत्यजीत राय की फिल्मो से प्रेरणा लेकर कई फिल्मकारों ने उत्कृष्ट फिल्मो का निर्माण किया है...और हम दर्शक लाभान्वित हुए हैं....
जवाब देंहटाएंरेखाचित्र में चेहरे की रेखाओं के साथ भाव भी उभर कर आए हैं...
अनुभव को अशेष शुभकामनाएं
सत्यजीत राय के बारे में नै बातें पता चली - आपके माध्यम से ...
जवाब देंहटाएंबाकि रखाचित्र बहुत सुंदर बन पड़ा है, डिटेल अच्छी निकाली है, आपका बेटा भी बहुत प्रतिभा का धनी दिखता है - उसके उम्दा और सार्थक भविष्य के लिए शुभकामनायें.
सत्यजीत जी के बारे में सारगर्भित जानकारी प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद...आपके बेटे अनुभव द्वारा बनाया गया स्केच,बहुत ही अच्छा लगा,अनुभव को मेरी ओर से उसके उज्वल भविष्य की शुभकामनाए,..
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
सत्यजीत रे पर बहुत अच्छी जानकारी। चित्र के लिए बेटे को आशीष।
जवाब देंहटाएंसत्यजीत राय के लघु उपन्यास वाकई कमाल हैं फेलु दा की तो बात ही निराली.आज उनके जन्म दिन पर अच्छी और अलग सी जानकारियों वाली यह पोस्ट सार्थक है. और बेटे का बनाया चित्र तो - माशाल्लाह ...गजब की प्रतिभा है.
जवाब देंहटाएंइसे कहते हैं फिल्म में जान लगा देना, तभी तो स्तरीय फिल्में बनती भी थीं, आजकल तो पैसा कमाने के फार्मूले से बनती हैं फिल्में।
जवाब देंहटाएंसत्यजित राय की याद के साथ अनुभव का स्केच। अच्छा अनुभव है।
जवाब देंहटाएंजानकारी भरी पोस्ट...रेखाचित्र बहुत सुंदर!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया श्रद्धांजलि सत्यजीत रे साहब को उनके जन्मदिन पर और हम लोगों को इतने अच्छे लेख का तोहफा। रेखाचित्र वाकई कमाल है। आपको और आपके सुपुत्र दोनों को बधाई!
जवाब देंहटाएंबंगला सिनेमा के क्षेत्र में सत्यजीत दा के नाम से ख्याति पाने वाले सत्यजीत राय बंगला भाषियोंयों के ही दिल में नही बल्कि संपूर्ण विश्व में अपनी प्रतिभा के लिए मशहूर है। उनके जन्म दिवस पर आपकी यह पोस्ट उनके प्रति आपके भावनात्मक संबंध को दर्शाता हैं । इसके इतर आपके पुत्र अनुभव द्वार बनाया गया स्केच उसकी कलात्मक रूझान को प्रकट करता है । मेरी कामना है कि अनुभव इस क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान को बनाए रखते हुए भविष्य में नए पर्तिमानों को स्पर्श करे । प्रस्तुति अच्छी एवं ज्ञानपरक लगी । मेरे पोस्ट पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आपका विशेष आभार - धन्यवाद सहित ।
जवाब देंहटाएंBadee hee achhee jaankaaree dee hai aapne! Aaapko padhne me ek alag hee aanand aata hai!
जवाब देंहटाएंबंगाल का नाम बचपन से ही एक जादू की ही तरह दिमाग में रहा । बाद में महसूस भी किया । मेरे जितने भी प्रिय फिल्म निर्देशक हैं वे अधिकांशतः बंगाली ही हैं । आपका आलेख व प्रिय अनुभव का स्केच आपके कलात्मक दृष्टिकोण की गहराई का परिचायक है ।
जवाब देंहटाएंजबसे कुछ पढने का शौक हुआ था तो उस लिस्ट में सबसे ऊपर जिन लेखकों का नाम याद आता है, उनमें सबसे ऊपर और सबसे ज्यादा लेखक बंगाल के ही रहे| आशुतोष मुखोपाध्याय, सत्यजित बाबू, विमल मित्र, ताराशंकर वन्दोपाध्याय, शंकर बाम, समरेश बसु कोइ एक हो तो उसके अकेले के गुण गाये भी जाएँ, लेकिन बहुमुखी प्रतिभा की बात हो तो वन एंड ओनली 'सत्यजित राय|' 'फेलू दा' अपने प्रिय पात्रों में से एक रहे हैं| ध्यान है शनिवार को दूरदर्शन पर क्षेत्रीय भाषा की फ़िल्में दिखाई जाती थी तो सब टाईटल्स के भरोसे जमे रहते थे हम बुद्धू बक्से के आगे| वैसे फिल्म के मामले में एक और शख्सियत का नाम ध्यान आता है जो अपनी फिल्म के 'आगे-पीछे' 'अन्दर-बाहर' 'ऊपर-नीचे' सब जगह होता था लेकिन वो कहानी फिर सही| राय बाबू से किसी का कोइ मुकाबला ही नहीं लगता|
जवाब देंहटाएंआईये हमारे भतीजे की कुछ बात करें, कुछ विशिष्ट चीजें ऐसी होती हैं कि उनकी विशिष्टता ही स्वाभाविक होती है| 'अनुभव प्रिय' अगर प्रतिभाशाली न होते तब हमें अचम्भा होता, ये रेखाएं किसी मंजे कलाकार की हैं| बानगी दिखाने के लिए धन्यवाद| कला के और भी नमूने दीखते रहें तो अच्छा लगेगा|
11.56 हुए थे जब सत्यजित राय साहब को हैप्पी बर्थ डे wish किया था, वो कमेन्ट उड़ गया, अभी एक दिन बाद में शुभकामनायें पहुंचें|
आपकी पोस्ट 3/5/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा - 868:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
wonderful post on a man who was institution in himself...!
जवाब देंहटाएंThe sketch is perfect!!!
आपकी कलम से लिखा यह लेख किसी जादू से कम नहीं ... उत्कृष्ट लेखन के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंumda lekhan shaili
जवाब देंहटाएंसत्यजीत राय के जन्मदिन पर बहुत अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लेखन
पाथेर पांचाली जैसी लाजवाब फिल्मों कों बनाने वाले सत्यजीत राय कों बांगला और हिंदी सिनेमा जानने वाला शायद ही भुला सके ... उनको याद करा के आपने एहसान ही किया है नयी पीड़ी पे ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ...
जादू के कमाल पर धमाल मचा रहा है सत्यजीत राय का स्केच।
जवाब देंहटाएं..शानदार पोस्ट के लिए आभार।
इतनी रूचि से और आस्था से आपने सत्यजीत रे को श्रद्धांजलि दी है ....काबिले तारीफ है आपका प्रयास ....उससे भी ज्यादा कबीले तारीफ़ है अनुभव के द्वारा बनाया गया स्केच ....आप दोनों को बधाई और शुभकामनायें भी ....!!
जवाब देंहटाएंbete ko hamari taraf se shubh-aashish dijiyega. saty jeet rai k janmdin par bahut acchha lekh.
जवाब देंहटाएं(aap to shayad hamare har tarah ke lekhan par na aane ki kasam khaye bhaithe hai.....koi baat nahi dekhte hain bhai kab tab behen se roothe rahenge)
सत्यजित राय स्वप्न को जाग्रत दृष्यों में प्रस्तुत करने वाले कलाकार ,चिन्तक भी - उन्हें नमन करती हूँ !
जवाब देंहटाएंपुत्र में भी वही लक्षण चरितार्थ हो रहे हैं .
इस प्रस्तुति के लिये आभार !
सत्यजित राय के जन्मदिन इतनी सुंदर पोस्ट और अनुभव का बनाया स्केच जबरदस्त है. बंगाली और हिंदी सिनेमा के इस महान जादूगर के बारे में कई अनसुनी बातें जानने को मिली.
जवाब देंहटाएंसत्यजीत राय के जन्मदिन पर बहुत अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंबंगाल का जादू -सत्यजीत रे के जन्मदिन पर सुंदर आलेख । स्केच भी बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंदो ही शख्शियत हरफनमौला हुए हैं.. एक टैगोर.. दूजे सत्यजित राय... बंगाल देश की सांस्कृतिक राजधानी तभी तो है... भारतीय सिनेमा को वैश्विक पहचान सत्यजित राय जी से ही मिली है... अनुभव का स्केच आपके आलेख से बढ़िया है... उसे शुभकामनाये....
जवाब देंहटाएंहमें बंगाली नहीं आती लेकिन उनकी फेलु दा सीरीज की फ़िल्में फिर भी देख डालीं...क्यूँ के सत्यजीत जी की फ़िल्में देखना एक ऐसा अनुभव है जिस से बार बार गुजरने का दिल करता है...
जवाब देंहटाएंनीरज
बंगाल से बहुत गहरा सम्बन्ध रहा है, न होता तो कैसा होता कह नहीं सकता।
जवाब देंहटाएंअधिक दिन नहीं हुए जब धनबाद में रहना होता था मेरा, कॉलेज के बंगाली साहित्य वाले कोने में ही पड़ा रहता था। अच्छे दिन थे वो, और लिखने पढने में कोई दिक्क़त न होने के कारण और भले। खैर..
सत्यजीत बाबू और उनके रचे चरित्र, मन में बसे रहे आते हैं।
श्रद्धानत शुभकामना।
अनुभव बाबू को ढेर सारा आशीष और शुभकामनाएँ।
आपके पुत्र में गज़ब की प्रतिभा है, सलिल भाई!! बहुत प्रभावी स्केच बनाया है उसने.... आखिर बेटा किसका है! उसकी प्रतिभा और फले फूले, परवान चढ़े- यही दुआ।
जवाब देंहटाएंआपके आलेख ने अंत तक बांध कर रखा। वाकई अद्भुत कलाकार, साहित्यकार थे सत्यजीत राय!
aadarniy bhai ji ----bahut dino baad aape blog dwra aapse rubarun ho rahi hun .bahut dino tak anupasthiti ho jaati hai.
जवाब देंहटाएंaadarny sir ke baare me main kya likhun .han!itna jaroor jaanti hun ki log unke naam ko padh kar hi film ko dekhne bhaga karte the .
unki filmon me insaan khud ko hi film ka paatr samajh leta tha.
dil se koti koti naman unhe
aapki baaton se mujhe bahut hi sambal milta hai .yun hi apne sneh banaye rakhiyega
hardik naman kesaath
poonam
हमारी टिप्पणी नहीं दिख रही बाबू.... कहीं यह भी बंगाल के जादू का कमाल तो नहीं? किसी राजकुमार को बुला कर उसे कारा से छुड़वाइए!
जवाब देंहटाएंहमारी टिप्पणी नहीं दिख रही बाबू.... कहीं यह भी बंगाल के जादू का कमाल तो नहीं? किसी राजकुमार को बुला कर उसे कारा से छुड़वाइए!
जवाब देंहटाएंआपके इस आलेख से सत्यजीत राय जी की प्रतिभा के अनेक आयाम उद्घाटित हुए हैं।
जवाब देंहटाएंआभार आपका।
डॉ.सत्यजित रॉय की फिल्मों का मैं बड़ा शौकीन रहा। हाँ, उनके जीवन की बारीकियों के विषय में बिलकुल अनजान था। आज जीवन के विषय में पढ़कर संतोष हुआ कि मुझे भी अच्छी और बुरी फिल्मों को परखने की क्षमता है। मुझे याद है-जब शतरंज के खिलाड़ी पिक्चर हम तीन-चार मित्र एक साथ देखने गए थे। पिक्चर समाप्त होने के बाद जब लाइट जली, तो देखा कि मेरे जैसे एक-दो लोगों को छोड़कर हल में लगभग सभी सो गए थे। इन्होंने शायद एक प्लेटफार्म नाम से सिरियल बनाया था। वह अद्भुत था।
जवाब देंहटाएंआयुष्मान अनुभव प्रिय द्वारा बनाया डॉ. रे का स्केच बड़ा ही आकर्षक है।
बाऊ जी , अनुभव द्वारा बनाया गया सत्यजीत राय का स्केच बहुत ही सुन्दर है |
जवाब देंहटाएंसादर
सुंदर स्केच और सार्थक लाइफ-स्केच ।
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