मंगलवार, 29 जून 2010
द्रोणाचार्य अऊर एकलव्य
शनिवार, 26 जून 2010
कर्ज कलकत्ता का
गुरुवार, 24 जून 2010
दिल के बोझ का किराया
सोमवार, 21 जून 2010
बाबू लोहा सिंह - एक याद!!
शनिवार, 19 जून 2010
हँसी का कीमत
गुरुवार, 17 जून 2010
जवाब मत दीजिए - मुँह भी बंद मत कीजिए
मंगलवार, 15 जून 2010
जाको राखे साइंयाँ
मंगलवार, 8 जून 2010
हड़ताल
शनिवार, 5 जून 2010
एक सहंसाह ने बनवा के हसीं ताजमहल...
मंगलवार, 1 जून 2010
गूगल भी हुआ लाजवाब !!!
आज अचानके लिखने बईठे त एगो बुझौवल दिमाग में आ गया. तनी आप लोग भी कोसिस करके देखिए, बूझ पाते हैं कि नहीं. कलेंडर का कौन तारीख, साल का 365 दिन में भी नहीं बदलता है? अब आप कहिएगा कि हम फालतू में गप्प हाँक रहे हैं. ई कोनो पहेली हुआ, ई मजाक होगा कोनो. लेकिन जब हम सीरिअस बात करते हैं त एकदम सीरिअसली करते हैं.
चलिए आजे का तारीख पर बात सुरू करते हैं. आज दू जून है. अब इसमें नया का है. ठीके बात है, एक के बाद दू आता है, अऊर मई के बाद जून. आपलोग में से कुछ लोग बिचारेंगे, त गूगल में 2 जून टाइप करके के खोजने का भी कोसिस करेंगे. गूगलवो कम बदमास नहीं है, का मालूम केतना पेज देखाएगा, एगो मामूली बात के लिए.
दू जून के दिन महारानी एलिज़बेथ द्वितीय इंग्लैंड के सिंहासन पर बैठी थीं. अऊर एही दू जून के दिन लाल बहादुर शास्त्री जी भारत के परधान मंत्री के गद्दी पर बइठे थे. अइसहीं केतना घटना हुआ होगा 2 जून के दिन, जिसका हम लोग को न खबर है, न खबर रखने का कोनो जरूरत है.
अब आप लोग फिर बेसबर होले जा रहे हैं कि हम खाली मदारी का मजमा लगाकर, बिना मतलब का बात किए जा रहे हैं, अऊर सवाल का जवबवा देइये नहीं रहे हैं. त भाई बहिन लोग, तनी अपना दिमाग पर जोर डालिए, अंतिम में त हम बतइबे करेंगे.
चलिए, इसका कबल कि आप लोग भाग जाइए, हम बताइए देते हैं. ऊ तारीख जो साल का पूरा 365 दिन कलेंडर में रहता है, अऊर दिन, महीना बदलने से भी नहीं बदलता है ऊ है ‘दू जून’. सबूतो देना पड़ेगा, नहीं त आप लोग पढ़ल लिखल लोग मानिएगा थोड़े हमरा बात.
ई दू जून का खातिर दुनिया में एतना भाग दौड़ मचा रहता है. लोग काम करने जाता है. घर बार छोड़कर इधर उधर भटकता रहता है. न दिन, न महीना... साल का 365 दिन, बस दू जून के लिए. हाँ, कुछ लोग दू जून का रोटी से ही खुस नहीं रहता है, ऊ लोग सारा जिन्नगी भागता रहता है.
कुछ लोग अइसा भी है देस में जिसको दू जून का रोटी भी नसीब नहीं. हम भी एतना भासन इसी लिए दे रहे हैं कि हमरा पेट में दू जून का रोटी है, अऊर 365 दिन के खातिर भी दू जून का इंतजाम है. सोचते हैं कि साल में आज का दिन केतना अच्छा है कि आधा रोटी खाने वाला आदमी भी ‘दू जून’ का रोटी खाया है कह सकता है ..काहे कि आज ‘दू जून’ जो है. अऊर ई दू जून गूगलवो को पता नहीं है, गरीब का दू जून का रोटी गूगल के खोज से भी बाहर है!