PROLOGUE:
चौक से चलकर, मंडी से, बाज़ार से होकर
लाल गली से गुज़री है काग़ज़ की कश्ती
बारिश के लावारिस पानी पर बैठी बेचारी कश्ती
शहर की आवारा गलियों से पूछ रही है
कश्ती का साहिल होता है –
मेरा भी क्या साहिल होगा??
एक मासूम से बच्चे ने
बेमानी को मानी देकर
रद्दी के काग़ज़ पर कैसा जुल्म किया है!
- गुलज़ार
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कोनो चीज को देखने
के बाद अचानक दू अदमी के मन में एक्के साथ, एक्के तरह का बिचार आये अऊर दुन्नो कोई एक्के साथ बोल पड़े, “खरीद लें?” हो सकता है होता होगा अइसन
संजोग, तब्बे तो दू अदमी एक्के साथ एक्के बात बोले तो लोग कहता है कि घर में कोनो मेहमान
आने वाला है.
ऊ रोज भी रोड के साइड
में एगो आदमी टोकरी में बहुत सा मुर्गी का बच्चा (चूज़ा) बेच रहा था. एकदम खेलौना जइसा
मुर्गी का बच्चा देखकर, हम दुन्नू के मुँह से एक्के
साथ निकला, “खरीद लें?” “खरीद लें डैडी?” और घर में हमरे दू गो मुर्गी
का बच्चा मेहमान बनकर आ गया. दुन्नो को एगो गहरा प्लास्टिक के टब में रखकर उसको दाना
डाल दिये. थोड़ा देर बाद जब उसको बालकनी में छोड़कर हमलोग दू मिनट के लिये घर के अंदर
गये, त गजब हो गया. कहीं से एगो बाज का नजर पड़ गया
था अऊर ऊ बाज एगो चूजा को लेकर भाग गया. बेटी को बहुत अफसोस हुआ. अऊर फिर सुरुआत हुआ
बचा हुआ चूजा का हिफाजत करने का.
बड़ा सा डिब्बा, डिब्बा में खिड़की बनाया गया अऊर उसमें उसका रहने का इंतजाम किया गया. देखते
देखते डिब्बा का साइज बड़ा होने लगा. बेटी उसका नाम रखी मुर्गी (हमारे पटना वाले घर
में जो पालतू कुत्ती थी उसका नाम भी हमलोग डॉगी रखे थे) अऊर हम उसको बुलाने लगे कबूतर
के नाम से. कबूतर काहे, सो मत पूछियेगा. बस मन से
यही नाम निकला. जबकि बाद में पता चला कि ऊ न मुर्गी था, न कबूतर... ऊ मुर्गा था.
बड़ा होने के साथ-साथ
ऊ दिन भर खुल्ला में घर में खेलने लगा. सिरीमती जी बेटी के इस्कूल जाने के बाद अकेले
रहती थीं घर में. लेकिन ऊ कबूतर उनको जमीन पर बइठकर तरकारी काटने नहीं देता था. चुपके
से आता था अऊर धनिया का पत्ता, पत्ता गोभी अऊर प्याज लेकर
भाग जाता था. सिरीमती जी त बस दोबारा से छोटा बच्चा का माँ के अवतार में आ गयी थी.
उसको प्यार करना, जब ऊ उनके गोड़ पर चोंच से मारकर खाना माँगता था, त खाना देना अऊर तरकारी लेकर भागने पर गुसियाना.
बेटी के इस्कूल से
आ जाने के बाद त बेचैनी देखने लायक होता था उसका. बेटी जऊन बेड पर सोती थी उसके पास
बाइठ जाता था. जब बड़ा हो गया था तब उड़कर बेड पर चला जाता था अऊर झूमा के पीठ पर या
कंधा पर सो जाता था. बेटी जब पढाई करती त उसके स्टडी टेबुल के कोना में बइठा रहता.
सबसे मजेदार दिरिस
होता था जब हमलोग पेप्सी पी रहे होते थे. अगर ऊ अपने डिब्बा में बंद हुआ त खिड़की से
झाँककर, बेचैनी में बार बार चोंच मारकर हमलोग को ईबताने का कोसिस करता कि उसको भी चाहिये.
उसकोतब तब चैन नहीं आता, जब तक उसके गिलास में उसको
पेपेसी नहीं मिल जाता. जेतना देर ऊ खुला रहता हमलोग में से किसी के गोदी में बइठकर
टीवी देखना उनका भी काम होता. सिरीमती जी जइसे उठीं, उनसे पहले ऊ हम्रे गोदी से उतरकर किचेन में हाजिर हो जाता.
टैब पर चैट करते समय, हमारे टाइप करने के साथ ऊ भी टाइप करके सेण्ड कर देते थे जनाब. एक बार शिवम
बाबू पूछ बइठे कि दादा ये आपने क्या लिखा है, तब बताना पड़ा कि ऊ कबूतर ने लिखा है. लैपटॉप पर काम करते समय जब उसका cursor भागता था, त ऊ बार-बार चोंच मारता था. हमलोग बहुत खेलवाड़
करते थे उसके साथ.
बेटी के हॉस्टल चले
जाने के बाद भी ऊ उसको नहीं भूला. एक रोज हमलोग उसको सुताकर, बेटी से स्काइप पर बतिया रहे थे. बेटी का आवाज सुनकर एतना बेचैन हो गया कि का
बताएँ. जब उसको निकाले त भागकर बेटी के रूम में गया देखने अऊर जब स्काइप पर देखाई दी, त बेचैन हो गया.
जब बहुत बड़ा हो गया
त कुकड़ू कूँ बोलने लगा था. अऊर पटना अऊर दिल्ली जाते समय उसको किसीके पास छोड़कर आना
भी समस्या था, इसलिये अपने एगो परिचित के मदद से उसको भावनगर
में पक्षीशाला में दे आए. बहुत अफसोस हुआ था उस दिन. सोचे कि कइसे लोग अपना बूढ़ा माँ-बाप
को बिर्धास्रम में छोड़ आता है.
बेटी उसके प्यार में
चिकेन खाना छोड़ दी (हालाँकि बहुत बाद में फिर से शुरू कर दिया). केतना अच्छा होता कि
जीव-हत्या के मनाही का सिच्छा देने से जीव-प्रेम का सिच्छा देते हमलोग.
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EPILOGUE
झूमा पिछला दू साल
से हमसे जिद कर रही थी कि डैडी मेरी मुर्गी पर आप पोस्ट क्यों नहीं लिखते. मगर उसको
अपना परेसानी कहाँ तक बताते. लिखेंगे... लिखेंगे कहकर टालते रहे.