एगो बहुत मसहूर कहावत है कि इतिहास अपने
आप को दोहराता है. लेकिन तेरह साल का टाइम कोनो एतना बड़ा टाइम नहीं है कि उसको
इतिहास जईसा कहा जाए. फिर भी जो हुआ ऊ एकदम हू-ब-हू दोहराने वाला खिस्सा हो गया.
आस्चर्ज त नहिंये हुआ उसपर, अफ़सोस बहुत हुआ. मन को समझा लिए कि ओशो कहते हैं कि
दुःख को पलट कर देखियेगा त उसमें खुसी देखाई देगा. जादातर आदमी पलट कर नहीं देखता
है एही से दुःख, दुःख मालूम पड़ता है.
तेरह साल पहिले
कलकत्ता में एगो अस्टाफ के बिआह में हमारा पूरा ऑफिस गया हुआ था. हमरे बॉस भी थे.
ग्रुप में एन्ने-ओन्ने का बात चल रहा था. अच्छा बात एही था कि ऑफिस का बात कोई
नहीं बतिया रहा था. बात होने लगा रेलगाड़ी में सफर करने का अऊर ओही में बात निकल
आया गाड़ी के डिब्बा में सामान चोरी होने का. हमरे बॉस के पास भी एगो अनुभव था जब उनका
गया जंक्सन इस्टेसन पर कोई सामान चोरा लिया. ई दुर्घटना सुनाने के बाद ऊ जो
कन्क्लूजन बताए ऊ तनी डायलॉग में सुनिए.
“अरे, आपलोगों को
क्या पता, बिहारी चोर होते हैं!”
“नहीं सर! रेलवे
स्टेशन की चोरियों का नेचर पूरे देश में एक जैसा होता है!”
“आप तो बोलेंगे ही
वर्मा जी! मगर जो कहिये, सारे बिहारी चोर होते हैं!”
पहिले “बिहारी
चोर” अऊर बाद में “सारे बिहारी चोर” सुनकर त हमरे देह में आग लग गया. हम
भी आव देखे न ताव अऊर बिना आगा-पीछा सोचे तड़ से बोल दिए, “मगर इंटरनेशनल क्रिमिनल्स
की लिस्ट में अगर भारत के टॉप टेन क्रिमिनल्स का नाम देखा जाए तो उनमें पाँच आपके
अंचल के हैं, कहिये तो नाम गिनाऊँ! और संजोग से उसमें बिहारी कोई नहीं!”
माहौल अचानक सीरियस
हो गया.
आगे बताने का जरूरत
नहीं होना चाहिए कि हमारा ट्रांसफर ऑर्डर दू-चार दिन में हमरे सामने आ गया. ऊ समय पिताजी
का तबियत बहुत खराब था. ट्रांसफर रोकवाने का बहुत कोसिस किये. जेतना लोग हमको
जानता था, हमारा काम सराहता था, सबको बोले. सबलोग बोला कि कोई मोसकिल काम नहीं है,
मगर अफ़सोस लौटकर खुसखबरी सुनाने कोई नहीं आया. खुसखबरी का, ईहो कहने कोई नहीं आया
कि सौरी हम आपका मदद नहीं कर सके! हमरे साथ हुए सोलह लोग के ट्रांसफर में से
पन्द्रह लोग को मन मुताबिक़ पोस्टिंग मिल गया, बस हमको छोडकर! बिहारी जो ठहरे!
आखिरी उम्मीद था
हमरे पुराने बॉस श्री माधव राव पर. मुम्बई में उनको फोन लगाकर बताए अपना मजबूरी
अऊर बोले कि ‘हाँ’ या ‘ना’ जो भी हमको बता दें ताकि हम झूठा उम्मीद पर नहीं रहें.
दू दिन बाद उनका फोन आया. आझो उनका बात हमरे कान में गूंजता है.
“सौरी, वर्मा जी! आई
कान्ट हेल्प यू आउट!! लेकिन बड़े होने के नाते एक बात कहूँगा कि परमात्मा की इच्छा
के विरुद्ध मत जाइए. हो सकता है उसने आपके लिए कुछ और भी अच्छा सोच रखा हो.”
हमको लगा कि
सांत्वना दे रहे हैं. हम जाकर ज्वाइन कर लिए. दू महीने के अंदर पिताजी का देहांत
हो गया अऊर साल भर के अंदर हमरा सेलेक्सन बिदेस में पोस्टिंग के लिए हो गया. हम घर
के लोग को खुसखबरी सुना रहे थे कि माधव राव साहब का बात याद आया. रात को उनका फोन
आया बेंगलोर से. “वर्मा जी! कोंग्रचुलेशंस!! डू यू रेमेबर माई वर्ड्स!” अऊर हमरे
मुंह से कोनो बात नहीं निकल सका. हम बस “थैंक्स सर” कह पाए!!
आज तेरह साल के बाद फिर
से ओही परिस्थिति में एक महीना से घुट रहे हैं. बेटी का दसवां का बोर्ड है अगिला
साल अऊर हमरा ट्रांसफर सताईस लोग में सबसे दूर कर दिया गया है. सब लोग के आगे
मजबूरी बताकर देख लिए, गिडगिडाकर, समझाकर देख लिए. मगर मदद करने का भरोसा दिलाकर
जो गया ऊ दोबारा लौटकर नहीं आया.
बस दू दिन बाद ई सहर
से दाना-पानी उठ जाएगा. नया जगह, नया जिम्मेवारी के साथ पता नहीं आप लोग से एतना रेगुलर
रूप से मिलना हो पायेगा कि नहीं. सायद नहीं, चाहे कभी-कभी! आँख बंद करके एही सब
सोचते हुए माधव राव सर का बात दिमाग में आ रहा था. किताब का पन्ना फडफडाने का आवाज
से आँख खुला, किताब बंद करने चले त देखे कि लिखा है:
मैं लोगों के बीच से गुज़रता हूँ और आँखें खुली रखता हूँ. मैं उनलोगों के सद्गुण नहीं अपनाता इसके लिए वे मुझसे नाराज़ हैं. वे मुझसे बेहद नाराज़ हैं, क्योंकि मैंने उन्हें बता दिया है कि छोटे आदमियों के लिए, छोटी मर्यादाएं ही ज़रूरी होती हैं. नाराज़ लोग आग के चारों ओर बैठकर कहते हैं, देखो यह भयानक आदमी और क्या विपत्ति लाता है. उन्हें बौनी मर्यादाओं से डर नहीं लगता. उनके साथ वे सहज ही हिलमिल जाते हैं. अपने मन में वैसे वे सिर्फ एक बात ही चाहते हैं कि उन्हें कोई चोट न पहुंचाए. हालांकि वे इसे सद्गुण मानते हैं मगर वह दरअसल कायरता है. मैं उनके बीच से गुज़रा और मैंने अपने कुछ शब्द वहाँ गिरा दिए. उनकी समझ में नहीं आया कि वे उन शब्दों को फेंक दें या वहीं पड़ा रहने दें. तब मैंने उन्हें ललकार कर कहा – तुम अभिशप्त हो कि कायर हो. जरथ्रुष्ट्र का कोई ईश्वर नहीं, इसलिए वह बुरा नहीं है. मैं ईश्वरहीन हूँ इसलिए सच कहता हूँ और सत्य को तुम्हें भी सुनाता हूँ. अगर मेरे शब्द बेकार गए तो तुम अपने छोटे-छोटे सद्गुणों और नन्हें-नन्हें गुनाहों के साथ नष्ट हो जाओगे!
(नीत्शे – जरथ्रुष्ट्र ने कहा)