शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

काल का ढालः सिर्फ एक नाम!

पुराना जमाना में बच्चा लोग का नाम भगवान के नाम पर रखा जाता था. राम, किसन, बिस्नु, सिव, सम्भु आदि. कारन पूछे हमरी एगो सबसे बुजुर्ग फूआ बताईं कि आखिरी समय में आदमी के जुबान पर भगवान का नाम बहुत मोस्किल से आता है अऊर संतान का मोह उसको प्रान त्यागने नहीं देता है. अईसा हालत में जब अंतिम समय में मोहबस, आदमी अपना बच्चा को भी नाम लेकर बोलाएगा तो भगवान का नाम उसके मुँह से निकलेगा. अऊर भगवान का नाम उसके जुबान पर हो तो फिर उसको स्वर्ग मिलेगा अऊर मुक्ति भी.
समय बदला अऊर नाम भी बदल गया. रोजाना का बातचीत अंगरेजी में करने वाला लोग, जेतना ऐंठ कर अंगरेजी बोलता है, ओतने मोस्किल हिंदी नाम अपना बाल बच्चा का रखता है. उत्प्रेक्षा, अनुष्टुप, यवनिका, नेपथ्य आदि. हमरे एगो दोस्त हैं, जिनके स्वर्गीय पिता जी बौद्ध साहित्य के प्रकाण्ड  विद्वान थे. उनके परिवार में सब बच्चा का नाम बौद्ध काल का याद दिलाता है. अशोक प्रियदर्शी, कुमार शांतरक्षित, आर्यदेव आदि. हमारी पुष्पा दी हमेसा शांतरक्षित का नाम भूल जाती थीं अऊर जब उसके बारे में कुछ बोलना होता तो उसको मकरध्वज कहकर सम्बोधित  करती थीं. नाम का महिमा भी अजीब है.
अब हमरे घर का नाम पापू है, पप्पू नहीं. हालाँकि डांस हमको भी नहीं आता है, लेकिन तब भी हम पप्पू नहीं हैं. हमरे पिता जी इंदिरा गाँधी के जबरदस्त फ़ैन थे. पण्डित नेहरू, इंदिरा गाँधी को चिट्ठी में तुम्हारा पापाके जगह पर कई बार प्यार से तुम्हारा पापूलिखते थे. बस यही पापू उनके दिमाग में बैठ गया और रख दिए हमरा नाम. इससे एगो फ़ायदा अऊर हुआ कि प्रचलित नाम पप्पू से हमरा नाम अलग हो गया. पिता  जी भी खुस कि इट्स डिफ़्फ़रेण्ट!
गाँव में नाम रखने का रिवाज भी अलग है. सोमारू, मंगरू, बुद्धन, बृहस्पतिया, सुक्रू, सनीचरा अऊर एतवारू, सब नाम उस दिन के हिसाब से है, जऊन दिन लोग पैदा हुआ. अब जब बात चलिए गया है तो एगो अऊर बात का जिकिर करना हमको जरूरी बुझा रहा है. हमरा पोस्टिंग था एगो गाँव में. एक रोज एगो आदमी अपना  दूनो बेटा का खाता खोलवाने आया. नाम पूछे पता चला कि बड़का बेटा का नाम जनता प्रसाद अऊर छोटा बेटा का नाम कॉन्ग्रेस प्रसाद. हमको हँसी आया, समझ गए. कारन बताए कि पहिला बच्चा 1977  में पैदाहुआ था, तब जनता पार्टी का सरकार बना देस में अऊर दोसरा हुआ 1979 में तब तक कॉन्ग्रेस का सरकार बन गया. आज भी दुनो नाम हमरे मन मस्तिस्क के ऊपर गोदना जईसा गोदा गया है. पंजाब में करनैल सिंह, जरनैल सिंह, बिहार में कलक्टर सिंह, वकील परसाद, बलिस्टर चौधरी जईसा नाम हाल हाल तक बहुत सुना जाता  था.
लेकिन सब नाम के पीछे भी बहुत सा नाम अईसा है जिसको सोचकर हमको बहुत तकलीफ होता था. तकलीफ तबतक, जबतक उसका कारन नहीं समझ में आता था. बईठ गए नारो फूआ के पास नाम उनका भी बहुत सुंदर था नर्मदा, लेकिन प्यार से लोग नारो कहता था. भी एगो बिचित्र परम्परा है. देखिए तनी बिसयांतर हो गया, मगर माफ कर दीजिएगा. सच्चिदानंद को साचो, फूलवती को फूलो, मनोरंजन को मानो. जैसे अमेरिका में विलियम को बिल, चार्ल्स को चार्ली. अऊर आजकल बॉलीवुड में बिपाशा को बिप्स अऊर ऐश्वर्या को ऐश. खैर फुआ को हम पूछे कि हर माँ बाप का सपना होता है कि बच्चा का नाम सुंदर रखा जाए, लेकिन काहे कुछ लोग अपना बच्चा का नाम खदेरन (भगाया हुआ), घूरन (कूड़ा पर फेंका हुआ) अऊर बेचन (बेचा हुआ) रख देते हैं.
फूआ हँसी नहीं, बहुत सीरियस होकर बोलीं कि भगवान का मजाक है. हमरे समाज में बहुत सा लोग अईसा है जिनको बाल बच्चा नहीं हुआ, हुआ तो बहुत देर से हुआ. किसी किसी का बच्चा मर मर गया साल दू साल का होकर. लोग काल को धोखा देने के लिए एही साबित करना चाहते हैं कि जौन बच्चा को काल अपना ग्रास बनाना चाहता है, बच्चा उसका नहीं है. इसके लिए बच्चा को पैदा होने के बाद घर के बाहर कूड़ा पर फेंक आती हैं. अऊर दोसरा आदमी उसको उठा लाता है. बच्चा का नाम इसी हिसाब से हो गया घूरन, मने कूड़ा पर फेंका हुआ,  चाहे खदेरन, माने घर से भगाया हुआ. इसी तरह बहुत सा औरत लोग अपना बच्चा को काल से बचाने के लिए अपने परिवार के दुसरे रिस्तेदार को रुपया सवा रुपया में बेचकर, कुछ खरीदकर खा लेती थीं अऊर बच्चा का नाम रखा जाता था बेचन.
नाम का महिमा तो जो है सो है, लेकिन धन्य है भारत देस की माता जो अपने बच्चे को काल से बचाने के लिए उसको कूड़े पर फेंक देती है या फिर सिर्फ सवा रुपये में बेच देती है, खाली एही जताने के लिए कि हम बदकिस्मत हैं, मगर हमरा बच्चा को हम अपना बदकिस्मती से अलग कर दिए हैं.  जबकि अंदर से उसको भी मालूम है कि माँ अऊर बच्चा का रिस्ता काल से भी परे है अऊर काल किसी का रिस्तेदार नहीं होता.

51 टिप्‍पणियां:

  1. भाई मान गए आपको ..पक्के बिहारी हैं आप और आपका नाम पर शोध काबिले तारीफ है ..बहुते ज्ञानवर्धन हुआ आपके इस शोधपत्र को पढ़कर ...हमें गर्व है की हमहू उसी बिहार के हैं जहाँ के आप जैसे प्रतिभावान लोग हुआ करतें हैं ...इस शानदार और बेहद रोचक प्रस्तुती के लिए हार्दिक आभार ...

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  2. इतना जानकारी बस नाम पे..वाह...मुझे तो बहुत कुछ नहीं मालुम था...

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  3. Bhai wah. Namo ka sundar wishleshan.aur tarif ye ki shod pura ka pura.salilji apki lekhni ko pranam!

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  4. Bhai wah. Namo ka sundar wishleshan.aur tarif ye ki shod pura ka pura.salilji apki lekhni ko pranam!

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  5. Bhai wah. Namo ka sundar wishleshan.aur tarif ye ki shod pura ka pura.salilji apki lekhni ko pranam!

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  6. Bhai wah. Namo ka sundar wishleshan.aur tarif ye ki shod pura ka pura.salilji apki lekhni ko pranam!

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  7. सलील भाई जी,

    कहां बैठ कर सोचत हो, ई सब!!
    साधारण सी बात में,बडा सोच निकाल दिए हो।

    हमारे यहां भी जिनके बच्चे जीते नहिं थे तो अगले को कचरा, ओखा, बगदा नाम दे देते थे।
    लडकियों को एका, बगी, तगी, चौथी, पांचु,छठी व संती। नम्बर से।
    और जब लडकियों का पैदा होना न रूकता तो अंतिम नाम 'आईचुकी'।

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  8. नामकरण की गजब जानकारी दिये हैं..हमरे एक का नाम बुद्धुलाल जाने का सोच कर रखा गया... :)

    अच्छा लगा आलेख.

    आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं

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  9. भारतीय समाज का पूरा ही ताना-बाना बुन दिया। भगवान का नाम रखने के पीछे एक कारण और भी है कि जब राम नाम है तो कहीं ना कहीं कर्म भी राम जैसे ही होंगे। रावण रखने से तो रावण ही बनेगा। सहजता से लिखी बहुत ही उपयोगी पोस्‍ट। एक बात और, पहले जब लडकियां संख्‍या में अधिक हो जाती थी तो नाम रखा जाता था मनभरी, सीमा, आचुकी आदि। यह भी एक टोटका ही था।

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  10. आपके दिमाग का कोनों एम आर करवाना पड़ेगा.... पता नहीं कहाँ कहाँ से आईडिया आ जाता है......

    बढिया लगा...
    एक करेक्टर याद आ गया ...... सत्यानासी...
    ये भी एक नाम था.



    “दीपक बाबा की बक बक”
    आज अमृतयुक्त नाभि न भेदो

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  11. बहुत ही बढ़िया नाम पुरान पढ़न का मिला। हमरे छत्तीसगढ़ मा भी इ का महिमा गजब है। फ़रक एतना ही है के प्रत्यय जुड़ जात है, देखियेगा: झाड़ूराम, ढेला बाई ……… बढ़िया लेख

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  12. गज़ब ज्ञान का बोतल चढ़ाये हैं, मन निढाल हो गया।

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  13. हमारी नामकरण की पद्धति पर विश्लेषणात्मक आलेख सुंदर बन पड़ा है । हरियाणा और राजस्थान के गाँवों में भी कुछ ऐसी ही परम्परा है : कुछ उदाहरण : कुर्डाराम, छाज्जूराम ।

    पुराने नामों की पद्धति हमारे विश्वासों से कितनी जुड़ी रहती थी ।

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  14. हमारे छत्तीसगढ़ में भी नाम रखने की यही परम्परा है। टोटके के रूप में बच्चों के नाम इस तरह रखे जाते थे-खोरबाहरा, मेहतरू, भुकलू, खेदिया आदि।...आपकी लेखन शैली में जादू जैसा कुछ है, दशहरे की शुभकामनाएं।

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  15. सलिल भाई, आपकी परवाज़ के क्या कहने .......बात को कहाँ से शुरू कर कहाँ पर ख़त्म किया है ! और शीर्षक भी कमाल का लाये निकाल कर !
    पर सच में आपने कितनी बड़ी बात बता दी युही बातों बातों में ....'काल का ढालः सिर्फ एक नाम!' काश के यह टोटका हर बार चला करें और किसी माँ की गोद सुनी ना हो !

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  16. हंसी हंसी में बड़ा गंभीर बात बता गए। और आपके इस सोध परबन्द पढने के बाद त आपका नाम सोधना रखना पड़ेगा।
    हमरे गांव में एगो स्काई लैब है। उसका माय बाप ई नाम इसलिए रख दिहिस कि जिस दिन उ पैदा लिया था उसी दिन उसका जनम हुआ था। और भी सुन्दर सुन्दर नाम सब है हमरे गांव मे जैसे भुइकंपा, चूंकि उस साल जनमा जिस साल बिहार में भूकंप आया था। और बावनी -- सन बावन में पैदा हुई थी। अब भकोलिया माय से हम त पूछिए नहीं पाए कि बेटा के ऐसन नाम काहे रख दी कि उ भकोलिया माय कहलाए लगी।

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  17. नामकरण की यह परम्‍परा तो न जाने कब से चली आ रही है। आपने याद दिलाया तो याद आया। मेरे पिताजी दिवाली की दूज को पैदा हुए थे। उनकी मां ने घर का नाम रख दिया 'दूजन।' और वह बिगड़ते बिगड़ते हो गया दुर्जन। बड़ी मुश्किल से पीछा छूटा उनका।

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  18. rajasthan me jiske 3 4 betiya lagatar ho jae to fir naam rakh diya jata tha Dhapgee ( man bhar gaya )
    ya fir (Aachukee) .
    baccho ka moh ma baap se jo karae vo thoda hee hai .

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  19. बढ़िया पोस्ट |नाम में क्या रखा है ?नहीं नहीं नाम ही तो सब कुछ है |
    हमारे यहाँ एक बनिया परिवार था उनकी सात लड़कियां थी (पहले सात ,नो लड़कियां सामान्य बात थी )उनके नाम थे |काजू ,किशमिस ,बादाम ,पिस्ता ,चिरोंजी ,खसखस ,केसर |

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  20. पहले नामकरण करने के विचित्र अथवा सार्थक कारण होते थे ...
    कई नयी बातें मालूम हुई ...
    अच्छी पोस्ट ..!

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  21. ये नाम नाम की कहानी में बहुतों का दर्द बयान कर दिए आप.
    विजयादशमी की शुभकामनाये..

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  22. ई नाम-कहानी त गज़ब के बा.
    सहारनपुर में कुछ नाम ऐसे सुने जो और कहीं नहीं सुनने को मिले थे--
    पहल सिंह, कटार सिंह, चूहड सिंह,करेशन,सलेलता देवी....

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  23. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  24. लाजवाब! बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    बेटी .......प्यारी सी धुन

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  25. बहुत खूब! सलिल भाई!
    देखा जाये तो इस नामकरण की अजब ही माया है।

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  26. सलिल जी.. जब टीकाकरण और अस्पताल नही थे देश मे.. बच्चों को बचाने के लिये बहुत जुगत किये जाते थे... मुझे भी बेचा गया था और बेचे जाने का दुख आज भी मां को है.. सुनाती है उस दिन का खिस्सा.. उस से पहले कई बच्चो के नही जिवित रहने का खिस्सा भी... बहुत गम्भीर बात कह गये आप बात बात मे...

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  27. सलिल भैया आपकी बातें इतनी आत्मीय होतीं हैं कि वे गली-मोहल्ले, घर-आँगन, चौका--चूल्हे,और बचपन के संगी-साथियों जैसी लगतीं हैं ।नाम के पीछे सचमुच बडे रोचक तथ्य होते हैं । हमारे गांव में एक महिला थी । सब उन्हें बजनी कहते थे -बजनी भौजी,बजनी ताई, बजनी बहू...। यह इनका नाम होगा--मैं सोचती थी पर काफी छानबीन के बाद पता चला कि उनका नाम तो देवकुँवर था पर बजने वाले (छन-छन)बिछुए पहनने के कारण उनका नाम बजनी पड गया और असली नाम को लोग भूल ही गए । ऐसे बीसों उदाहरण हैं । और लगभग सभी के पास होंगे । पर इतनी सूक्ष्मता और गहराई से सोचना व लिखना ही तो बडी बात है ।पढ कर मन खुश होगया ।

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  28. बात आप हंसा हंसा के सुरु किये और लास्ट में आते आते संवेदना का नत्थी उमे नाथ दिए...

    बहुतै अच्छा लगा आपका ई पोस्ट...कम से कम दू दर्जन नाम और प्रसंग तो एकदम सटाके में धेयान में आ गया...

    हमारे नाना जी को आज भी लोग अजब सिंह कहते हैं...हमको जब जरी गेयान हुआ तो माँ से पूछे की ई कोन नाम हुआ...तो पता चला की उनके माता पिताजी बेचारे ने उनका नाम अजय सिंह रखा था,पर कब ऊ अजब हो गया और नाना जी खुदै इसको स्वीकार लिए उनको पता नहीं चला..

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  29. साबित होता है कि साधारण मनुष्य भी एक चिंतनशील प्राणी होता है.... निरर्थक से लगने वाले नामों के पीछे भी अक्सर कोई गहरा अर्थ छुपा होता है. वाह! नाम के क्या जलवे हैं!!

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  30. पता नहीं क्यूँ और कैसे...पर सब घुमा देते हैं आप, मन खुश हो जाता है :)

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  31. पोस्ट के प्रारंभ और मध्य में आपने मेरे चेहरे पर बड़ी मुस्कान ला दी... लेकिन अंत में बहुत ही गंभीर बात कह गए।
    सच मानिए आज मैं थोड़ा उदास था। काम से फुरसत हुआ रात १२:३३ पर। तब खुशी की तलाश में आपके ब्लॉग पर चला आया। उम्मीद पूरी भी हुई। उम्दा पोस्ट। अच्छा आज ही हमने एक अजीब नाम पढ़ा। एक प्रेस नोट आया था किसी श्रमिक संगठन का था। उसके एक सदस्य का नाम था रावण सिंह। दशहरा था तो सहज चर्चा भी चल निकली साथियों के बीच। वैसे अक्सर भारतीय मानस में देखा जाता है कि समाज का अहित करने वालों और दुष्टता का साथ देने वालों के नाम पर कोई अपने बच्चों के नाम नहीं रखता। फिर किसने और क्यों इस व्यक्ति का नाम रावण रखा होगा। एक और गजब उदाहरण है मेरी कालोनी का, एक दुकानदार है जिसका नाम है राजपूत सिंह धाकड़। इसमें राजपूत, सिंह और धाकड़ तीनों ही सरनेम होते हैं। गजब है न, तीन सरनेम को मिलाकर एक नाम।

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  32. बहुते अच्छा लगा ई नमपुराण बांच के। और हमरो गांव में डाक बाबू, तार बाबू, और हमरे ब्लॉग पर खदेरन, फाटक बाबू ... हां याद आया, फाटक बाबू का नम फाटक बाबू कैसे पड़ा मालूम है ... नहीं न त आज बताइए देते हैं। डेलिवरी के लिए उनकी मम्मी को सरकारी अस्पताल ले जाया जा रहा था। कि रास्ता में रेलबे लाइन का फाटक बंद था। जब तक ट्रेन गुज़रे और फाटक खुले, बच्चा बैले गाड़ी में डेलिभर हो गया। तब से उ बच्चा फाटकबा कहलाता था। ई त हम इज़्ज़त देने के लिए उनको फाटक बाबू कहते हैं।

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  33. बिहार में प्रचलित नाम से सम्बंधित संस्कृति परम्परा को लेख के माध्यम से दुनिया तक पहुचने के लिए सादर अभिनन्दन.
    सभी के घर या रिस्तेदारी में इस प्रकार के अजीबो गरीब नाम मिल ही
    जाते है जैसे मेरे खुद अपने ससुर जी नाम था नौ लाख सिंह.

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  34. "चला बिहारी ब्लॉगर बनने" के संबंध में रोचक जानकारी के लिए कृपया गूंज अनुगूंज ब्लॉग पर आइए ...

    धन्यवाद !!!

    http://gunjanugunj.blogspot.com

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  35. बिसयांतर मतलब ???

    सोनी जी इसका मतलब है विषय का अंतर अर्थात विषय में बदलाव !!!

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  36. अच्छा लिखे हैं महाराज। नई दृष्टि भी दिए हैं आप। पहले मेरी बधाई स्वीकार कीजिए फिर ये बताइए कि हमें अपने ब्लॉग सूची हटा काहे दिए है। कोई नाराजगी हो तो बताइएगा। लेकिन ये सब नहीं चलेगा महाराज ये समझ लीजिएगा। हां।

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  37. @पंकज मिश्राः
    पंकज बाबू..ई एक्सीडेण्टल त हो सकता है,इंटेंशनल नहीं हो सकता है. आप बहुत दिन से देखाई नहीं दिए और हमरा सूची में देखाई नहीं दिए त हमको लगा होगा कि आप भी कहीं ब्यस्त हो गए. आज का जैसा हमरा भूल पहिले बता देते त हम ठीक कर लेते!!खेद है!!

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  38. बिहारी ब्‍लॉगर सलि‍ल जी, मान गए. अनामिका नाम तो होता ही है, बचपन में मानता था कि ज्‍यादातर कोटेशन बनाने वाले व्‍यक्ति का नाम है- 'अज्ञात' बाद में 'अज्ञेय' सुना तो भरोसा और पक्‍का हुआ. कभी बाबा साहब पूंछवाले का गायन था. हिज्‍जे कर पढ़ना सीखा एक बच्‍चा मां-बाप के साथ आया, पूछने लगा यहां क्‍यों आए हैं. मां ने कहा गाना सुनने. बच्‍चे ने पूछा- कौन गाएगा. मां ने हॉल के बाहर लगे गाय‍क के चित्र की ओर इशारा किया. बच्‍चे ने मासूमियत और जिज्ञासा से चित्र के नीचे लिखा नाम पढ़कर कहा- कौन ये पूंछवाला. हां, एक नाम और याद आता है- राही मासूम रजा, वे भी तो आपकी तरह तीन मांओं के संतान थे. आपका मेल आईडी मिला नहीं इसलिए एक और नाम यहीं छाप दे रहा हूं- akaltara.blogspot.com और इस पर ताजी पोस्‍ट का नाम है-'फिल्‍मी पटना'

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  39. aapka ee post padhkar apna koi darzan nam yaad
    aa gaya.....

    jaise ... bambholba...gandhiya....lazkotra....
    ootpati....bad me ... badmashha ... jaise anek nam

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  40. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ! बधाई !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ
    www.marmagya.blogspot.com

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  41. Bahut achha, aur kya kahoon,shabd hi nahi soojhte...
    kab khatm ho gayaa pata hi na chalaa;bilkul aisa lagta hai maano hum kuchh samay ke liye kisee doosri duniya mein chale gaye ho...

    Vah!

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  42. नाम की पूरी महिमा बयान कर दी, बिहार में तीन भाई हमारे पड़ोस में रहते थे, 'हरे राम, 'जय राम', 'सियाराम '...उनकी दादी का भी यही कहना था...जब उनका नाम लो,भगवान का नाम आए जुबान पर.
    आपने वकील और दरोगा नाम का जिक्र नहीं किया....ऐसा नाम रखने का भी अजीब रिवाज है.
    आजकल तो सच, जितना कठिन उच्चारण उतना आधुनिक नाम

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  43. हमारा तो जी काम ही है ताल से ताल मिलाना, हम भी अपने बैंक का एक अनुभव सांझा करते हैं आपसे।
    एक अन्य प्रदेश की महिला खाता खुलवाने आईं तो इस प्रदेश के हिसाब से उनका नाम बहुत हटकर था। मैंने कहा, "ये नाम पहली बार सुना है।"
    जवाब मिला, "बाबू, मां बाप का बिगाड़ा नाम और पटवारी का बिगाड़ा गाम(गांव) कोई नहीं सुधार सकता।
    और उकील(वकील) और बैरिस्टर नाम के दो भैया तो मेरे दोस्त की फ़ैक्ट्री में ही काम करते हैं।
    मस्त पोस्ट है जनाब, हमेशा की तरह।

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  44. @ मो सम कौनः
    संजय भाई! माँ बाप का बिगाड़ा नाम और पटवारी का बिगाड़ा गाम कोई नहीं सुधार सकता... इस मुहावरे को आपके नाम समेट लिए हैं.. वादा रहा इसका इस्तेमाल करेंगे जरूर!
    @ सभी सुधिपाठकः
    पहली बार ब्लॉग लेखन सफल रहा.. हर किसी ने टिप्पणी में कुछ न कुछ याद किया... मेरी मिहनत कामयाब हुई और सेहरा आप सबों के सिर!! आभार!

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  45. अपका ये शोध पत्र पहले पढा होता तो अपनी बेटी का नाम इतना मुश्किल नही रखते अमेरिका मे जब वो यहू मे नौकरी करती थी तो उसे कई लोगों ने कहा कि आपका नाम नही लिया जाता। बहुत बडिया लगा आपका नाम पुराण । शुभकामनायें।

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  46. तो नाम पर भी इतना कमाल लिख दिए हैं आप तो .... व्यंग लिखते लिखते बहुत सीरियस भी हो गये हैं अंत में ... ई आपकी लेखनी का कमाल है ... पर अपने देश अपने समाज का सच भी है ...

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  47. हमारे यहाँ एक लोकोक्ति है -
    कल्लू मुटल्लू दुई भैया ,
    कान मा घुस गयी बर्रैया ,
    कल्लू बोले , हाय दैया |
    नाम की महिमा सचमुच अपार है |

    सादर

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