शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

संस्मरण, साहित्य और बेचारा बिहारी!!

तनी हमरा भासा ठीक होता अउर साहित्यिक होता तो हमारो लिखलका सब संस्मरन  का कैटेगरी में आ जाता. मगर हम आदमी बहुत संतोसी हैं. इसलिए जब लोग हमको कह देता है कि ई संस्मरन बहुत अच्छा लगा तब हमको लगता है कि हम भी साहित्यिक हो गए हैं. अब देखिये न, अपने छोटा भाई मनोज कुमार जी... अरे ओही राजभाषा हिंदी वाले, इस बिसय पर एगो पूरा पोस्ट लिख गए अउर संस्मरन लिखने वाले ब्लॉगर के नाम पर खाली शिखा वार्ष्णेय जी अउर रश्मि रविजा जी का नाम लिखे. अंत में हमको जाके उनसे पूछना पड़ा कि महाराज, हम कौन अपराध किए हैं कि हमारा नाम आपका पोस्ट में अस्थान पाने से बंचित रह गया. तब हमको ज्ञान प्राप्त हुआ कि तनी हमरा भासा ठीक होता अउर साहित्यिक होता तो हमारो लिखलका सब संस्मरन का कैटेगरी में आ जाता.
मनोज जी भी बहुत भोला आदमी हैं. तुरते बोले कि बड़े भाई गलती हो गया. हमारा नाम अल्टीमेटली उनके पोस्ट में आइये गया अउर हम भी साहित्यिक हो गए. असल में हम तो इहाँ पर अपना भुलाया हुआ जिंदगी का जो कुछ भी स्मरन है, लिखने का कोसिस करते हैं, संस्मरन का है ई तो हमको बुझइबे नहीं करता है.
बचपन में एगो ले हंट नामक कबी का कबिता पढ़े थे. एगो संत जिनका नाम अबू बिन आदम था, रात में सोए हुए थे. अचानक उनका कमरा में खूब दिब्य परकास फ़ैल गया अउर लगा जइसे रात में इन्जोरा हो गया. ऊ देखे कि एगो देबदूत, डायरी में कुछ लिख रहा है. ऊ पुछे कि महाराज आप का लिख रहे हैं. देबदूत बोले कि जो लोग भगबान को प्यार करता है, उसका लिस्ट बना रहे हैं. अबू उत्सुकता से पूछे कि हमारा नाम भी है का ई लिस्ट में? देबदूत देखकर बोला नहीं. अबू तनिको निरास नहीं हुए, बोले महाराज! अगर कभी भगबान का बनाया हुआ बन्दा को प्यार करने वाला आदमी का कोनो लिस्ट बनाइएगा तो हमरा नाम जरूर लिखियेगा. देबदूत अंतरधान हो गया.
अगिला रोज फिर से रात को ओही दृस्य. अबू फिर देबदूत को पूछे कि महाराज कल जो हम आपको कहे थे, ऊ लिस्ट बना रहे हैं का? देबदूत बोला, नहीं! ये पहली वाली फहरिश्त है. मगर खुशी की बात है कि इस बार भगवान को प्यार करने वाले लोगों कि फहरिश्त में तुम्हारा नाम अव्वल है.
बस तबसे ओही काम कर रहे हैं हम भी. जिंदगी में भी, ब्लॉग में भी. कुछ अईसा लिखने का कोसिस कि हम पुराना याद आप लोग के साथ बाँट सकें. अब इ संस्मरन है कि खाली हमारा स्मरन पता नहीं. कोसिस एही रहता है कि हमारा याद के मारफत आप सब लोग के अंदर छुपा हुआ याद को भी बाहर निकालकर बर्तमान में लाएं. गौर से देखिये तो हम इहाँ पर अइसा कोई अनोखा बात नहीं लिखे हैं आज तक. जेतना बात हम लिखे, उसको पढकर सब लोग एही बताया कि हमारे साथ भी अइसा हुआ था, चाहे आपका बात से हमको भी अपना एगो पुराना बात याद आ गया, हम भी बचपन में ऐसा करते थे, हमारे भी एगो ऐसे चाचा जी थे आदि. हमको सबसे जादा खुसी एही बात का है कि आज तक हमरे पोस्ट पर जादातर कमेन्ट करने वाला लोग हमारे पोस्ट के बारे में कहने से जादा अपना कोनों पुराना घटना के बारे में कह कर गया. सबको अपना कोई बीता हुआ समय याद आया. हमारे बिचार में हमरा लिखना सफल हो गया.
अब हमको का पता कि संस्मरन लिखना का होता है अउर साहित्य किसको कहते हैं. हमरे लिखने से अगर किसी को लगता है कि ई बात उसी के बारे में लिखा गया है, तो हमरा लिखना सार्थक हो जाता है, मेहनत सफल हो जाता है अउर हमरा पुराना दिन का स्मरन संस्मरन बन जाता है!

43 टिप्‍पणियां:

  1. आपके स्मरण हों या संस्मरण ...पढ़ कर हर पाठक अपने से जुड़ा महसूस करता है ....

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  2. कभी कभी रिश्वत दे दिया करो यार दोस्तों को तो कसम भगवान् की खूब नाम छपेगा , गुरु कह कर भूल जाते हो फिर नाम छपने की उम्मीद ...??? बिहारी बाबू दुनिया में रहना सीखना है तो दस्तूर सीखने होंगे !
    खैर ,
    अगर अच्छा लिखा देखना है तो आओ तुम्हे बताते हैं बिहारी बाबू ....

    सलिल वर्मा जैसे नैसर्गिक लेखक कहीं दिखें तो बताना बिहारी बाबू ..

    लेखनी को न बेचने वाले और दिल की आवाज सुनकर लिखने वाले
    अगर देखना है तो सलिल को पढो बिहारी बाबू ...

    प्यार का अगर अर्थ जानना हो तो सलिल को पढ़ लें बिहारी बाबू...

    साहित्य का अर्थ भी जानना है तो सलिल को पढ़ें बिहारी बाबू ...

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  3. अरे ... अरे ... आप को यह 'साहित्यिक' बनने का शौक कब से हो गया ?
    महाराज आप तो हम जैसे आम बने रहिये ... ख़ास लोगो से अपनी निभ नहीं पाती !

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  4. स्मरन संस्मरन बन जाता है! wakayee.itni sunder baaton ko aap uthate hain ki padhnewala ekdam mugdh ho jata hai.us per bhasha ki saralta ka mithas jaise sone men suhaga.

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  5. सलिल जी, काहे साहितिक बनने के फेर में पड़े हो....... अगर क्वोनो मसहूर कवी या लेखक बन गए तो आपका केताब छपेगी.......... और महंगी भी होगी...... तो बाबा जैसे फक्कड ब्लोगर आपको कैसे पढ़ पायेंगे..........

    बस आप आइसा ही ब्लोगर बने रहे - हमरे खातिर....... आउर हम आपका आइसा ही भासा पढ़ पढ़ आनंद लेते रहे.

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  6. बड़े भाई आज त कुच्छो नहीं कहेंगे। आपका स्नेह अ‍उर आसीस मिलता रहे यही काफ़ी है। अब छोटा भाई सैतानी-बदमासी में थोर-बहुर एन्ने-उन्ने त करिए सकता है।
    ह ई सन्समरनवा पर एगो दोहा इयाद परा

    तुम भी कब का फ़साना ले बैठे
    अब वो दीवार है न दर बाबा
    भूले बिसरे ज़माने याद आए
    जाने क्य़ूं तुमको देखकर बाबा

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  7. तो सरकार को भी चयन सूची में अपना नाम देखने की दरकार महसूस होने लगी? सक्सेना साहब की टिप्पणी एड़ी से चोटी तक सब संजोये है. मतलब की चीज छांट लीजिये।
    हमें तो भारत कुमार पर फ़िल्माया गाना याद आ रहा है -
    ’जीते हैं किसी ने देश तो क्या, हमने(आपने) तो दिलों को जीता है’

    आपका (क्या लिखूं? काहे से कि आमजन के तो भाई, मित्र होते हैं, ऊंची पदवी वालों के सिर्फ़ ....)
    p.s. - जब आप साहित्यिक मान लिये जायेंगे उस दिन एक और गाना सुनेंगे और हंसेंगे(हंसना तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है ही, आप जानते हैं) - रेशमा जवान हो गई।

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  8. @
    हमने तो अबू बिन आदम की कहानी से स्पष्ट कर ही दिया की हमारे अंदर साहित्यिक बनने के न तो कोनों लच्छन हैं न कूवत. नाम अमर करने के लिए न तो कभी पुराना किला की छाती पर अपना नाम गोदने की तरकीब सूझी, न "सुदर्शन" जी की तरह परेड की लाइन में बेहोश हो जाने का संयोग जुटाने की.
    हम तो बस एक ही बात जानते हैं कि:
    हमारा नाम भी आएगा लेकिन,
    हमारा ज़िक्र सबके बाद होगा!

    न भी हो तो क्या फर्क पडता है...

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  9. सलिल जी,
    ई साहित्यिक-फाहित्यिक बनने का चक्कर छोडिये. कुछ वज्र टाइप के साहित्यकार संस्मरण को भी कमतर विधा मानते हैं.
    हमारे लिए तो इतना ही काफी है कि आप अपने मन की लिखते हैं और हम उसमें अपने को ढूंढते हैं.

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  10. bade bhaiya.............ka aap bhi na, aap smaran hi likhiye..........aur aise hi ekdumme se aise lagiye ki koi mere ghar wale ne kuchh bhi likhne ka koshish kiya hai...........

    pata hai bhaiya, hamko pata hai aap bahut vidwan ho.........lekin itna pyar jhalka dete ho ki lagta hai khak vidwan honge bhaiya...........bas hamree jaise hai..........

    to aap hamre jaise hi bane rahiye....taki lage ki aaap kaaboo me hain........:)

    god bless you bhaiya..........

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  11. संस्मरण हो या स्मरण क्या फरक पड़ता है साहित्यिक हो या चालू उस से भी कोई अंतर नहीं पड़ता...सीधी और खास बात ये है के आपकी पोस्ट पढने वाले के सीधी दिल में उतरती है और उन भूले बिसरे दिनों की याद ताज़ा कर देती है जिनसे ये जीवन कभी महका था...ये कोई कम बात नहीं है...बहुत बड़ी बात है...यादों की उन गलियों को फिर से बुहारना जिन से होकर हम यहाँ तक पहुंचे हैं...लिखते रहिये...

    नीरज

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  12. वह संस्मरण भी क्या संस्मरण जो केवल मात्र लेखक के साथ विशेष रूप से घटे, और पाठक सोचता ही रहे ऐसा हमारे साथ क्यों न घटा?

    आपके संस्मरण वे संस्मरण है जो पाठकों को उसी समृतियों के झूले में झूलाते है। साहित्य की कोई विशेष पहचान हो तो हुआ करे, पाठकों के अंतर्मन से जुडें तो लिखना सार्थक है।

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  13. paribhashit kar deejiye krupaya sahityik shavd ko............
    aur ha......jan jan ke dilo tak jo bhasha aasanee se pahuch jae vo hee asardar hotee hai janha aise shavdo ka istemaal hota hai ki shavdkosh lekar baithana pade aise sahity ko naman to kar sakte hai par asardar nahee pate........aam logo ke liye.
    aisa mera sochana hai.......25 saal se south me rahkar hindi se yanha judna bahut accha lag raha hai...........
    aap jaise likhte hai bas aise hee rahiye.........
    Namee banne ke chakkar me apnee style na chode ye hee aagrah hai......

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  14. आपके संस्मरण से हर कोई जुड जाता है ..बस लिखना सार्थक.साहित्य की समझ तो नहीं है पर इतना मानती हूँ कि यदि आपका लिखा कोई एक पाठक भी मन से पढता है तो लिखना सार्थक है.फिर चाहे वो संस्मरण हो स्मरण हो या कविता.

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  15. जो लिखा जाता है और सराहा जाता है वही तो साहित्य है।
    आपके स्मरण भी क्या किसी साहित्यक संस्मरण से कम है
    आप जो भी लिखते है वही हमे महसूस होता है हमारी ही घटना है तो फिर आप से अच्छा साहित्यकार कौन होगा।
    यदि गलत कहा तो अवगत कराना

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  16. अरे आप तो दिल की भाषा में लिखते हैं ,एक्दम ओरिजिनल ।

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  17. आपकी पोस्ट की चर्चा कल (18-12-2010 ) शनिवार के चर्चा मंच पर भी है ...अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव दे कर मार्गदर्शन करें ...आभार .

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  18. सलिल जी, कौन यहाँ साहित्यकार है या बड़ा लेखक...सब एक जमीन पर खड़े हैं...लिखने के पहले या लिखते वक्त तो कोई भी ब्लॉगर नहीं जानता कि प्रतिक्रिया कैसी होगी या लोगो को क्या पसंद आएगा क्या नहीं....यहाँ सब अपने मन के उदगार लिख जाते हैं...और दिल से लिखी बातें सबको ही पसंद आती हैं,जिनमे कोई आडम्बर ना हो....आप तो माशाल्लाह हमेशा दिल से ही लिखते हैं. इसीलिए सब जुड़ाव महसूस करते हैं.

    एक गुजारिश : मेरा नाम रश्मि रविजा है...रवीजा नहीं ..अगर ठीक कर दें तो मुझे अच्छा लगेगा :)
    अगर बिहारी भाषा में लिखना हो तो फिर लिख सकते हैं..रस्स्मी रबीजा :)

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  19. @ रश्मि रविजा:
    सुधार कर दिया है, ये तो आप आदेश कर सकती थीं,गुजारिश कैसे!!

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  20. बढ़िया संस्मरण के साथे साथे आपके रचना में आपन माटी कै महक होला . जवन शायदै कहिं मीले ................. अवुर अब ये ब्लोग लोगन के दिल में जगह बना लिहले हवे ...

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  21. तनी हमरा भासा ठीक होता अउर साहित्यिक होता तो हमारो लिखलका सब संस्मरन का कैटेगरी में आ जाता.
    ...bahut badiya ... jaisa likha hai waisa hi bolne kee koshis karti hun to ek alag hi anand aata hai...badhai

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  22. ‘संस्मरण‘ को शीर्षक बनाकर संस्मरण पर आधारित संस्मरण लिख देना साहित्यिकता नहीं तो और क्या है ?
    सलिल जी, आप क्या हैं, इसे तो आपके सुधी पाठक और प्रशंसक अच्छी तरह जानते हैं।

    आप तो बस ऐसे ही लिखते रहिए और हमारे मन-मस्तिष्क में मिठास घोलते रहिए।

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  23. क्या पता आप कतार में हों!
    अपनी बारी की प्रतीक्षा कीजिए!

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  24. देखिये आपका संस्मरण हमें कितना अच्छा लगा।

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  25. आय हाय हाय!
    का भासा है!! हम तो पहिले बार आपके बलौग पर आये और आपके फैन हो गये... मन गदगदा दिए जी! अपना भासा का मिठास.. आहाहाहा!! भाड़ में जाए साहित्य.. आप तो अईसही लिखिए... अब ई एतबार को बैठ के आपका सब पोस्ट पढ़ना पडेगा...
    ब्लॉगिंग: ये रोग बड़ा है जालिम

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  26. भाई जी नमस्कार,
    आप काहें अतना हैरान अउर परेशान हैं। जवन लिखे हैं उ अपने आप में एगो मिशाल बा। एगो बात बा-लिखे के काम जारी रखी,के का कहत बा ओकरा फेर में मत रहीं अउर केहू के ना कहब लेकिन हमार रउआ पर विशेष आशीर्वाद बा। सातवां कलास में राउर देवदूत वाला कविता के याद आ गईल-ओकरा अंत में शिक्षा रहे कि-THE BEST WAY TO LOVE GOD IS TO LOVE MANKIND.छोडी सब-तनी हमरा पोस्ट पर आकर हमरे मन पर वरसे के कृपा करीं। राम जी आबाद रखस तहरा के भाई जी। धन्यवाद।

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  27. hmmmmm, matlab aapka blog padhkar mujhe jo bhi yaad aaye, sab bakbaka dene ki permisan hai yahan....good good....ab se aur bak bak kiya karungi,,,,hihihih

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  28. meree kal kee post aapke blog par nahee pahuchee hai koi technical problem hai shayad..........

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  29. स्मरण हो या संस्मरण मगर आपको पढ कर अच्छा लगता है जैसे हमारे सामने ही सब कुछ घट रहा हो। आपका नाम सूची मे आने के लिये बधाई।

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  30. ek pathak ko bhasha ka swad achha lage chahe o
    sade dal ki tarah o ya tarka dal ke tarah.....

    aa sabse bara bat sare khas me ek aam ka hi pahchan hai lekin aapka sahili aam hokar bhi ek
    'khas' catogary me aata hai aur ye sthapit ho
    chuka hai.....

    pranam.

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  31. कुछ दिनों से मैं आपका लिखा पढ़ती आ रही हूँ और मुझे भी न जाने कितनी ही बातें युहीं याद आ जाती है. जैसे आपके पिछले पोस्ट में जो आपने अपना बाजार का जिक्र किया था.
    मेरा तो ये मानना है की कोई भी लेखक हो अगर उसका लिखा पाठक को अपने गुज़रे समय में वापस ले जाता है या फिर कोई भुला बात याद आ जाता है तो लिखना सार्थक हुआ.

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  32. बहुत सुन्दर , पर बिहारी बेचारा कैसे हो सकता है भला !

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  33. आपके आलेख सस्मरण तो है ही शिक्षा -प्रद भी होते हैं .बहुत सी नयी जानकारियां भी आप प्रदान करते हैं .आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के अनुसार साहित्य समाज का दर्पण होता है और आप समाज का आईना ही तो दिखा रहे हैं.

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  34. स्मरण हों या संस्मरण पढ़ने पर अच्छा लगे यही बहुत है....और यकीनन अच्छा लगता है...

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  35. आपको पता नहीं है की मेरे जान पहचान में कितना लोग आपका फैन बन गया है...एक रवि जी हैं, जो मेरे बगल में रहते हैं....कल शाम उनसे बहुत देर बात हुई...आपका दो तीन पोस्ट पढाएं...उसके बाद तो वो आपके ब्लॉग को अपने लैपटॉप में बुकमार्क कर लिए हैं....

    कुछ तो ऐसा लोग है जिसको हम फेसबुक पे मेसेज कर कर के जबरदस्ती पढवाते हैं...जो पोस्ट हमको बहुत अच्छा लगता है....

    :)

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  36. भैया आप तो साहित्य जगत के सूरज हो जिसकी रोशनी में हम नहाते हैं!.

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  37. बहुत सुन्दर आलेख है। कोई समझे न समझे , हम तो आपको उच्च कोटि का साहित्यकार समझते हैं।
    आभार।

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  38. सलिल जी,

    बिना स्मरण के संस्मरण कैसा ! साहित्यिक होने का भ्रम न जाने कितने लोगों ने पाल रखा है !
    हम आपको कभी साहित्यिक होने या न होने के कारण थोड़े ही नहीं पढ़ते !
    आपकी लेखनी में वो जादू है जो हमें पढ़वा लेता है !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  39. e तो hamko भी seekhna padhega ab ... agar aap seekh len तो hamko भी bataaiyega kaisen likhte हैं ... ..

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  40. जो आप कहते हैं , पाठक भी वही , बल्कि उससे भी ज्यादा महसूस करे इससे अच्छी रचना क्या हो सकती है ।

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  41. मैंने अभी तक आपकी ७१ पोस्ट पढ़ीं हैं , और उन सभी पर कमेन्ट भी किये हैं , लेकिन आश्चर्य की बात ये कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद मुझे लगा की आपने अछर्शः सही लिखा है , मैंने भी जयादातर कमेन्ट में अपनी आप बीती ही लिखी है |
    :)

    सादर

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