कमाल के बुजुर्ग थे ऊ भी. घर के ओसारा में एगो चौकी पर अपना पूरा दुनिया बसाए हुए, उसी में खुस. घर का बाल-बच्चा दुतल्ला मकान बना लिया, मगर उनको तो ओही चौकी पर दुनिया भर का सुख हासिल था. जब पुराना मकान था तबो अउर पक्का बन जाने के बादो, ओसारा छोडकर कहीं नहीं गए. बस फरक एही हुआ कि पहले ऊ ओसारा कहलाता था, बाद में ‘वरांडा’ कहलाने लगा. मगर उनके लिए ओही सलतनत था. घर के बहु लोग से पर्दा भी हो जाता था. कभी अंगना में जाने का जरूरत होता त गला खखार कर सबको बता देते थे कि बादसाह सलामत तसरीफ ला रहे हैं. बहु लोग घूँघट माथा पर रख लेतीं. जो काम होता करने के बाद, जो बात होता कहने के बाद फिर से ओसारा में जाकर तख्तेताऊस पर बैठ जाते.
तख्तेताऊस माने चौकी. उसी पर बैठना, पढाई करना, हिसाब-किताब लिखना अउर सो जाना. सब कुछ छितराया हुआ. कभी कुछ खोजना हो, त भूसा में सुई खोजने जइसा काम. मगर आप पूछकर देखिये कि फलाना चीज कहाँ है, त बिना हिले-डुले कहेंगे, “ऊ, ललका चदरवा हटाइये ज़रा, उसी के तर में रखा होगा.” (वो लाल चादर हटाइये ज़रा, उसी के नीचे रखा होगा) अउर कहने का जरूरत नहीं कि ओहीं मिल भी जाता. गलती से कहीं कोइ उनका सामान सजाकर रख दिया, त ऊ आदमी के लिए सजा हो जाता. कम से कम दू घंटा भासन कि हमरा चीज कोइ मत छुआ करो.
जेतना साल नौकरी नहीं किये, ओतना साल रिटायरमेंट का आनंद लिये. बस पढाई का ऐसा सुख कि पूछिए मत. ज्योतिष से लेकर बैदक इलाज तक, अउर धर्मं सास्त्र से लेकर साहित्त तक. होमियोपैथी अउर बायोकेमिक का दवाई किताब पढकर देते थे. आसपास का टोला मोहल्ला का गरीब लोग बीमारी बताकर दवाई ले जाता था. अउर ठीक भी हो जाता था. पत्रा उठाकर सबको बताते रहते थे कि फलाना दिन फलाना बरत है अउर फलाना दिन ग्रहण लगेगा. कोनो मासटरी नहीं था ई सब काम में, मगर अपना जैकगिरी में खुस थे.
साहित् के मामला में उनका फेवरेट किताब था सिवाजी सावंत का ‘मृत्युंजय’, आचार्य चतुरसेन का ‘वयं रक्षामः’ अउर ‘वैशाली की नगरवधू’. कमजोर अउर भावुक इतना थे कि उनके सामने जब ‘रश्मिरथी’ का कर्ण-कुंती संबाद पढ़ा जाता था, त ढर- ढर आँख से लोर चूने लगता था. रात में खाना-पीना हो जाने के बाद, घर का सब लोग को एक जगह बईठा कर अपना पोता को कहते कि पढकर सुनाओ. उसके भी आवाज में गजब का उतार चढ़ाव था कि सीन एकदम सामने उतर जाता था. ऊ सुनते जाते थे अउर रोते जाते थे. कभी कोनो भाग दोहरा के पढने के लिए रोते-रोते गला से आवाज नहीं निकलता था, त हाथ का इशारा से कहते कि दोबारा पढ़ो.
पुराना आदमी, मगर मॉडर्न भी ओतने थे. सब पोता को बटोरकर ‘शोले’ देखाने ले गए. बसन्ती से गजब परभावित थे. एही नहीं, कोनो नया बात बताने पर उसको सुनते थे अउर बच्चा जैसा सीखने का कोसिस भी करते थे. सबको बैठाकर पढ़ाते थे अउर पढने वाला बच्चा को बहुत मानते थे. अंकगणित का सवाल उंगली पर जोडकर बना देते थे. कहते थे कि पहाड़ा गणित का जड़ है. सवैया अऊर अढैया का पहाडा तक याद था उनको.
कभी खाली होने पर गाना भी गुनगुनाते थे, गुनगुनाते का थे जोर-जोर से सुर लगाकर गाने लगते थे ‘मेरा जीवन कोरा कागज़ कोरा ही रह गया.’ लाख समझाने पर कि ई गाना बिरह का है, उनका मानना था कि ई गाना एकदम आध्यात्मिक गाना है.
ई जेतना भी उनका घर का एक्टिविटी था सब ओही चौकी पर चलता था जो ओसारा में बिछा हुआ था. १९७५ में जब पटना में भीसन बाढ़ आया अउर सबलोग घर छोडकर चला गया, ऊ ओही चौकी पर १२ दिन तक तैरते रहे. बगल वाला घर में से खाना बनाकर बहु उनको दे आती थीं अउर ऊ खा लेते थे. केतना सांप अउर अजीब-अजीब जानवर ओही पानी में घूमता रहता था. मगर ऊ हिले नहीं चौकी से. अपने गाँव के मट्टी से एतना प्यार कि जब उनका छोटा बेटा सब खेत बेचकर पटना में पक्का मकान बनवा लिया, तबो ऊ अपना चौकी पर प्राण छोड़ दिए मगर मरते दम तक ऊ मकान में नहीं गए!
कातिक पूरनमासी के दिन भोरे-भोरे नहा धोकर बाजार चले जाते थे अऊर लौटकर सब लोग को एक साथ बैठाकर कचौड़ी अऊर जिलेबी खिलाते. खिलाने का कारण भी था, उनका जनमदिन!
हैप्पी बर्थ-डे दादा जी!
दादाजी को नमन ..अब कहाँ ऐसे बरगद की छांह
जवाब देंहटाएंशत शत नमन - दादा जी और हैप्पी बर्थडे !
जवाब देंहटाएंसलिल भैया,
जवाब देंहटाएंएक और संयोग - मेरे दादाजी कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपनी जीवन यात्रा पूर्ण कर गये थे। आपकी हर पोस्ट कुछ न कुछ याद दिला जाती है। आँखों के सामने एक तस्वीर, एक फ़िल्म सी चलने लगती है और सब स्पष्ट दिखने लगता है|
स्मृतियों से प्रेरणा मिलती रहे,दादाजी हमेशा अपनी खासियतों के साथ परिवार में मौजूद रहेंगे। नमन हमारी तरफ़ से भी।
पूनो की तरह भरा-पूरा (तृप्त, क्या हर्ज कोरा ही रहे) जीवन.
जवाब देंहटाएंनमन एवं स्मरण!
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी चित्र खींच दिया आपने। मानो बाढ वहाँ नहीं पाठकों के दिल में आयी थी - भावनाओं की बाढ।
जवाब देंहटाएंहमारी ओर से भी दादा जी को हैप्पी बर्थ-डे! शुभकामनायें!
उनकी पुण्य स्मृतियों को प्रणाम....
जवाब देंहटाएंइन यादों को सहेजे रखिये !
दादा जी को स्मृतियों से निकालकर कार्तिक पूर्णिमा का पूरा चान्द बना दिया आपके इस संस्मरण ने।
जवाब देंहटाएंभावुक यादें, ऐसे बरगद हर घर में उगें यही आशा है।
दादा जी को मेरी ओर से भी हार्दिक बधाई। जीवन में कुछ लोग नाप-जोखकर अपने जीवन ऐसा आदर्श बना लेते हैं कि क्या कहना।
जवाब देंहटाएंसलिल भाई सजीव चित्रण करने में आपका कोई जबाब नहीं। बहुत अच्छा।
बरगत...हैप्पी बर्थ डे दादा जी। एक शब्द..एक पंक्ति के बीच आपने स्मृतियों के कैनभस पर ऐसा सुंदर चित्र खींच है जो अब दुर्लभ हो चुका है।
जवाब देंहटाएं..आपकी स्मृतियों को नमन।
ओह सम्मोहित सा कर दिया आपने। ऐसे बुजुर्ग पहले हर घर की शान हुआ करते थे। अब तो सभी समझौतेवादी हो गए हैं। किसी की अपनी पहचान ही नहीं रह गयी है। दादाजी का पुण्य स्मरण कर आपने उस पीढ़ी को जिला दिया। नमन।
जवाब देंहटाएंसलिल जी!!! जब कभी आप हमारे बड़े-बुजुर्गों पर लिखते हैं...मुझे मेरा बचपन,गांव की हवेलियां और गलियां ...और बड़े-बुजुर्गों का विशिष्ट व्यवहार स्मरण हो आता है। कितना सुंदर था वह युग...जब घर में ही कितना कुछ सिखने को मिलता था...घर में बिजली की रोषनी न होने पर भी हमारे बड़े-बुजुर्गों की कितनी रोषनी होती थी...कितना सहृदय होता था उनका व्यवहार...
जवाब देंहटाएंदादा जी को श्रद्धेय नमन...हैपी बड्डे...
आज 10 - 11 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
____________________________________
दादा जी के जन्मदिन की शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंलम्हा एक पुराना ढूंढ,
जवाब देंहटाएंफिर खोया अफसाना ढूंढ।
भला मिलेगा क्या गुलाब से,
बरगद एक सयाना ढूंढ।
ऐसे बरगद नई पीढ़ी के लिए किंवदंती बन गए हैं।
दादा जी को नमन।
सार्थक प्रस्तुति , आभार .
जवाब देंहटाएंनमन है दादा जी को और उनकी शक्सियत को ... परिवार को बरगद की तरह छाया देने वाले दादा की का जनम दिन मुबारक ...
जवाब देंहटाएंजीवन में बस एक ही बात की कमी रह गयी है मेरे| मैं इनके जाने के सात साल बाद पैदा हुआ| लालसा रह गयी कि मैं इनसे मिलूँ| फिर भी, आज हम सब के बीच उनकी उपस्थिति तब से कम नहीं मालूम होती है|
जवाब देंहटाएंऐसे सघन वृक्ष की छाँव व छाँव की स्मृति दूर तक एक विशाल व ठोस धरातल देती है । और यह मिलना बडे सौभाग्य की बात है पर उससे भी दुर्लभ है उसे महसूस करना और इतने असरकारक तरीके से व्यक्त कर पाना । सलिल जी सचमुच इतनी बारीकी और गहराई से लिख पाना बडी बात है । पढ कर मन भर आया । पावन होगया ।
जवाब देंहटाएंहैपी बर्थडे दादाजी ! लगा जैसे अभी भी वहीँ चोकी पर बैठे गा रहे हैं...मेरा जीवन ..
जवाब देंहटाएंभावुक संस्मरण ..एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व का.
दादाजी की आख़िरी फिल्म "सागर" थी जो हम सबलोगों के साथ देखी. इसके अलावा उमराव जान और राजेश खन्ना की अवतार कई बार देखी...दादाजी को मेरा प्रणाम.
जवाब देंहटाएंबुजुर्गों की यादों की छाँव में जीवन सुरक्षित निकलता है... परनाम उनकी स्मृति को.
जवाब देंहटाएंदादाजी को प्रणाम, ऐसा बरगद सबको मिले।
जवाब देंहटाएंदादा जी के जन्मदिन की शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंओह!! पोस्ट पढ़ते -पढ़ते मुझे याद आ रहा था....अपने दादाजी पर एक पोस्ट लिखनी है...और पोस्ट के अंत में देखा....आपके दादा जी का ही जिक्र है...
जवाब देंहटाएंशत शत नमन उन्हें.
यादों को क्या खूब संजोया है...और ये आवाज़ में गज़ब के उतार-चढ़ाव वाले उसी पोते का जिक्र है??...जिसने बाद में पटना रेडियो स्टेशन में काम किया..:)
ये जैकगिरी शब्द भी बढ़िया इज़ाद किया है.
दादाजी को प्रणाम!
जवाब देंहटाएंसुन्दर संस्मरण!
बरगद अब कटने लगे हैं... अपने दादा जी याद आ गई... बाबूजी धनबाद में रहने लगे थे... कहते रहे कि एक बार धनबाद चलिए... लेकिन नहिये आये... कहते थे.. मैं जो गाँव छोड़ा... तुम सब लौट के कभी नहीं आओगे... और शायद वे ठीक ही कहते थे.. उनकी मृत्यु के बाद नियमित जाना कम सा हो गया था... दादा जी को श्रद्धा सुमन... एक बार फिर मर्म्सपर्शी संस्मरण...
जवाब देंहटाएंसंजय@मो सम कौन? की टिप्पणी तकनीकी कारणवश मेल में प्राप्त हुयी मगर यहाँ नहीं छप सकी:
जवाब देंहटाएंसलिल भैया,
एक और संयोग - मेरे दादाजी कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपनी जीवन यात्रा पूर्ण कर गये थे। आपकी हर पोस्ट कुछ न कुछ याद दिला जाती है। आँखों के सामने एक तस्वीर, एक फ़िल्म सी चलने लगती है और सब स्पष्ट दिखने लगता है|
स्मृतियों से प्रेरणा मिलती रहे,दादाजी हमेशा अपनी खासियतों के साथ परिवार में मौजूद रहेंगे। नमन हमारी तरफ़ से भी।
हैप्पी बर्थ-डे दादा जी!
जवाब देंहटाएंpoora drishy aankhon ke samne ghoom gaya.......behad bhawbhini post.
bahut acchhha chitr ankit kar diya aapne dada ji ka. ek prabhavshali vuaktitv k liye ek bhavbhini apki shraddhanjali ko naman.
जवाब देंहटाएंबरन्डा में हमरो बाबा का तख्ते ताऊस लगा रहता था।
जवाब देंहटाएंई पोस्ट में कुछ ऐसा बात कि बहुत पुरनका बात सब इयाद आ गया।
हैप्पी बर्थ डे दादा जी!
संस्मरण मोड और खासकर व्यक्तित्व चित्रण में तो गजब ढाते हो बिहारी बाबू ..
जवाब देंहटाएंदादा जी को नमन ...खट्टर काका भी आसे पास के थे ......और उन्हें भी हरिमाहन झा मिल गए थे ..
अद्भुत !
दादा जी को नमन । ऐसे बरगद की सघन छाँव सबको मिले । बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । हम अपना पोस्ट पर राऊर इंतजार करत बानी ।धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंachchha sansamaran , Dadaji ko naman
जवाब देंहटाएंये दादाजी भी न ...ऐसे ही होते हैं सबके....बहुत याद आते हैं ..
जवाब देंहटाएंदादा जी को नमन
जवाब देंहटाएंदादा जी को नमन. यादों का सिलसिला भी अनंत है.
जवाब देंहटाएंदादाजी को मेरा शत शत नमन और जन्मदिन की शुभकामनायें! भावपूर्ण संस्मरण !
जवाब देंहटाएंसब जैसे जीवंत हो गया...हिस्सा हो गए उसका...
जवाब देंहटाएंअब आगे का कहें...शब्द कुंठित हो गया...एक जुग था यह, बीत गया...और अफ़सोस इसका जादा है कि आगे नहीं आएगा कभी...
नमन !!!!
नेट के बिछोह से पीड़ित थे। आज मिलन हुआ तो सबसे पहले आपकी पोस्ट पढ़ी। बहुत जीवंत तस्वीर खींची है आपने दादाजी की, उनके तख्ते-ताऊस की, उनकी विराटता की, उनकी विशिष्टता की! उनकी छत्र छाया और प्राण-वायु आप सभी को ऊर्जा देती रहे। आमीन!
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।..जीवन के गहन सत्य का बहुत सुन्दर चित्रण...
जवाब देंहटाएंकिया है मेरे पोस्ट पर आपका निमंत्रण है । धन्यवाद ।
दादा जी कोमेरा भी नमन। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों से ज्यादा कुछ पढ़ नहीं पाई थी |कल ही आपका यह आलेख पढ़ा |मेरे लिए तो प्रेरणा का स्त्रोत है दादाजी का जीवन |कहते है दादाजी का असर पोते पर या यु कहिये उनके जैसा जीवन विचार पोते में ज्यादा मुखर होता है जिसका उदाहरण है नरेन (स्वामी विवेकानंद )के दादाजी साधू हो गये थे उनको साधू बननेसे रोकने के लिए कई कोशिशे की गई परिवार द्वारा किन्तु अपने दादाजी के उस रूप को अपनाकर विश्व विजय हासिल की |
जवाब देंहटाएं’बिखरी हुई चीजें, सजा में दू घंटे का भाषण,....होमियोपैथी, बायोकेमिक, ज्योतिष, साहित्य.... भावुक इतने...आँख से ढब-ढब लोरे....’ इ सब पढ़ते बखत मेरे बाबा (दादाजी) का चेहरा सजल आँखों के में बरबस तैरता रहा। तिथि तो याद नहीं मगर मेरे बाबा हर बरस अपने जन्मदिन पर अपने ’पितर’ का तर्पण और ब्राह्मण-भोज किया करते थे। उस दिन हम तीनो भाई भी पंडीजी के साथे केला के पत्ता पर ’चूड़ा-दही’ का भोग लगाकर तॄप्त हो जाते थे। गाँव के बुरबक बच्चे हम तो यह भी नहीं जानते थे कि बाबा को ’हैप्पी बर्थडे’ कहना चाहिये।
जवाब देंहटाएंबहुत सुसंस्कृत संस्मरण। पढ़ते-पढ़ते स्मृति की गलियों में खोकर मैं भी भावुक हो गया। धन्यवाद!!
करण समस्तीपुरी जी की टिप्पणी तकनीकी कारणों से यहाँ प्रकाशित नहीं हो पाई है, अतः मेल से उद्धृत:
जवाब देंहटाएं’बिखरी हुई चीजें, सजा में दू घंटे का भाषण,....होमियोपैथी, बायोकेमिक, ज्योतिष, साहित्य.... भावुक इतने...आँख से ढब-ढब लोरे....’ इ सब पढ़ते बखत मेरे बाबा (दादाजी) का चेहरा सजल आँखों के में बरबस तैरता रहा। तिथि तो याद नहीं मगर मेरे बाबा हर बरस अपने जन्मदिन पर अपने ’पितर’ का तर्पण और ब्राह्मण-भोज किया करते थे। उस दिन हम तीनो भाई भी पंडीजी के साथे केला के पत्ता पर ’चूड़ा-दही’ का भोग लगाकर तॄप्त हो जाते थे। गाँव के बुरबक बच्चे हम तो यह भी नहीं जानते थे कि बाबा को ’हैप्पी बर्थडे’ कहना चाहिये।
बहुत सुसंस्कृत संस्मरण। पढ़ते-पढ़ते स्मृति की गलियों में खोकर मैं भी भावुक हो गया। धन्यवाद!!
सबसे पहले दादा जी को नमन...बहुत ही भावुक संस्मरण
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट भोजपुरी भाषा का शेक्शपीयर- भिखारी ठाकुर पर आपका इंतजार करूंगा । धन्यवाद
जवाब देंहटाएंAah! Waqayee kamaal ke buzurg the!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपके पोस्ट पर आकर अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट शिवपूजन सहाय पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद
जवाब देंहटाएं२० नवम्बर २०११ ६:३४ अपराह्न
इस पोस्ट को पढ़कर अपने दादा जी याद आ गए...आँखे नम हो गईं|दादा जी को नमन.
जवाब देंहटाएंpujyneey dadajee ko shruddhpoorn naman . ateet kee madhur yado ko hum sab se baantne ke liye aabhar.
जवाब देंहटाएंऐसी ठंडी छाँव में तो जीवन स्वर्ग है.....मगर आज तो सभी AC की ठंडक चाहते हैं....
जवाब देंहटाएंदिल को छू गयी...
दादू को जीवित रखें यादों में...
सादर.
दादा जी को सादर नमन...
जवाब देंहटाएंआपने मुझे याद दिला दी किसी की , वो भी मरते-मर गए लेकिन अपनी देहरी नहीं छोड़ी , वाकई अतुल्य प्रेम होता था वो भी |
जवाब देंहटाएंसादर