सोमवार, 6 अगस्त 2012

कितना देती है??


जगह पटना का कोनो मेन रोड:

बताइये त तनी, बोलेरो, सुमो, जाइलो, सफारी, टवेरा, स्कोर्पियो, क्वालिस.. ई सब नाम सुनकर आपके मन में सबसे पहले का बात आता है. एही कि ई सब बडका गाड़ी का नाम है एस.यू.भी. बोलते हैं ई सब गाड़ी को. अऊर हो सकता है कि आपके दिमाग में हमरा भतीजा अभिषेक का भी नाम आ जाए, जो गाड़ी के बारे में अपना ब्लॉग पर लिखता है. मगर जब हम पटना का बात कर रहे हैं त ई सब नाम का माने कोनो गाड़ी का नाम भर नहीं है. ई सुमो, बोलेरो, स्कोर्पियो आपके लिए टाटा अऊर महिन्द्रा का गाड़ी होगा, मगर जब इसके साथ पटना का नाम जुट जाता है त ई गाड़ी नहीं कुछ अऊर बन जाता है.

पटना का कोनो सड़क पर निकल जाइए, एक त सड़क बहुत चौड़ा नहीं है अऊर दोसरा बिकास के अंतर्गत ऊ सड़क को भी आधा-आधी बाँट दिया गया है आने-जाने वाला के लिए अलग अलग लेन बनाकर. माने सड़क अऊर संकरा हो गया है. एही आधा सड़क पर दनदनाते हुए आपको हर दोसरा गाड़ी एही बडका वाला देखाई देगा. ऊहो एतना जोर से लगातार होर्न बजाते हुए कि मोटरसाइकिल वाला आदमी अगर हमरा जइसा कमजोर करेजा वाला हो त ओहीं रोडे पर गिर जाए.

तब्बे हम कह रहे हैं कि पटना में आझो सुमो, सफारी, बोलेरो अऊर क्वालिस का माने खाली गाड़ी नहीं होता है, इसका मतलब होता है एगो एलान कि हमरा औकात देख लीजिए, हमारा ताकत का अंदाजा लगा लीजिए अऊर समझ जाइए कि हमरे अंदर का सामंती ठाठ अभियो बरकरार है. अऊर ई सब के पीछे एलान एही कि हमरे खातिर रस्तवा खाली कर दिया जाए. जउन रास्ता पर मामूली वैगन-आर मोसकिल से चलता है उसपर बोलेरो लेकर होर्न बजाते हुए निकलना ही असली सक्ति-प्रदर्सन है. बड़ा आदमी होने का लच्छन.

जगह: नोएडा, सेक्टर २६, हमरे अपार्टमेंट के सामने का कोठी:

कोठी के दरवाजा पर सरकारी जमीन पर एगो रोवर गाड़ी, एगो नैनो अऊर दू गो फोर्ड अऊर होंडा सिटी गाड़ी लगा रहता है. सबेरे कभी बेटी को बस स्टॉप तक छोड़ने जाने के टाइम में घर की मलकिनी अपना पोती को ओही स्टॉप पर जहाँ सब लोग पैदल जाता है, रोवर से छोडने जाती हैं अऊर छुट्टी के टाइम पर नैनो से वापस लाने. दस बजे मालिक रोवर से ऑफिस चले जाते हैं कनॉट प्लेस, होंडा से बेटा जाता है कनॉट प्लेस और फोर्ड से बेटी जाती है ओही कनॉट प्लेस. घर में नैनो रहता है माता जी के लिए, ओही माता जी जो भोर में रोवर से बच्चा को छोड़ने जाती हैं.

समझे में नहीं आता है कि इहाँ भी होंडा अऊर फोर्ड या नैनो अऊर रोवर, गाड़ी का नाम है कि रुतबा का सर्टिफिकेट. अऊर कमाल ई कि पेट्रोल का दाम बढ़ने पर एही लोग सरकार के गलत फैसला का दुहाई देता फिरता है.

जगह: भावनगर, गुजरात:

छोटा सहर है, दिल्ली/नोएडा से त कोनो तुलना करने का बाते नहीं है, मगर जिला मुख्यालय है अऊर पटना से तुलना किया जा सकता. आइये इहाँ भी कुछ नाम सुनाते हैं आपको. स्कूटी, एक्सेंट, लूना (भुला गए होंगे ई नाम त इयाद कर लीजिए) वगैरह. बच्चा से लेकर बच्चा के दादा-दादी अऊर नाना-नानी तक, मजदूर से लेकर साहेब तक. अइसा नहीं है कि इहाँ ऊ सब गाड़ी का नाम कोई नहीं जानता है. हमरे घर के सामने एगो जिम है, ओहाँ भोरे-भोरे देखाई देता है, रिट्ज, स्विफ्ट, डिजायर. मगर सान का सवारी है स्कूटी नहीं त बाइक. इस्कूल जाने वाले बच्चा से लेकर (हमको त संदेह है कि कोनो बच्चा के पास लाइसेंस होता होगा) हमरे जइसा साहेब तक. अऊर मजेदार बात ई है कि कोनो दुपहिया के ऊपर चार-गो से कम सवारी नज़रे नहीं आता है. पूरा परिवार दुपहिया पर लादे, ई बात से बेखबर कि फालतू का सक्ति-प्रदर्सन किसके लिए या जबरदस्ती का स्टेटस काहे के वास्ते. जब बूढ़ी से बूढ़ी औरत को हम स्कूटी चलाते देखे त मन श्रद्धा से झुक गया.

सोचने लगे कि जब पेट्रोल का दाम बढ़ा त पूरा फेसबुक पर आग लग गया. फेसबुक में लॉग-इन करते के साथ पेट्रोल का गंध से नाक भर जाता था. मगर हमको लगता है कि इहाँ भावनगर में ऊ टाइम पर भी कोनो लड़का अपना दोस्त के बाइक पर प्यार से हाथ फेरते हुए कोनो गाड़ी के बारे में सबसे जरूरी सवाल पूछ रहा होगा – कितना देती है?

57 टिप्‍पणियां:

  1. Haan bhaiya, Gujrat me ham bhi Baroda gaye the, wahan pe ye chhote bikes aur scooter ka gajab ka chalan dikha... !! bahut sahi kaha, sabko shayad iska chinta hai ........kitna deti hai:)

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  2. पटना में आझो सुमो, सफारी, बोलेरो अऊर क्वालिस का माने खाली गाड़ी नहीं होता है, इसका मतलब होता है एगो एलान कि हमरा औकात देख लीजिए,
    हर जगह का यही हाल है आज .. किसी का चरित्र नहीं सुमो, सफारी, बोलेरो महत्‍वपूर्ण हो गए हैं ...

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  3. रोचक पोस्ट के साथ आपकी वापसी सुखद लगी...
    शुभकामनाएं
    सादर
    अनु

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  4. वाह, सच्ची बात पर रोचक अंदाज।
    सच में पटनीय लेख

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  5. जय हो...

    29 मई 2012 और आज का दिन। तीनो महीना नाही बिता कि आप आइये गये ई ब्लॉग मां।

    तीनो शहरों की और शहरों में रहने वाले लोगों के मानसिकता की खूब पहचान कराई है आपने।:)

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  6. एगो मजेदार घटना सुनाते हैं चचा...फरीदाबाद सेक्टर 34 का...हम उस समय दिल्ली में नया नया आए थे और एगो प्रोपर्टी डीलर के एजेंट के ऑफिस गए थे, घर किराया पर लेने के लिए...वहाँ पाहिले से कार सेल्समैन बैठा हुआ था जो अपने कंपनी के गाड़ी के बारे में बता रहा था उस डीलर को..डीलर उस सेल्समैन से कहता है..देखो यार, हमको गाड़ी का परफोर्मेंस से कोनो लेना देना नहीं है...बस भारी भड़कम दिखना चाहिए और महंगा होना चाहिए और दूकान के सामने लगाने पर ठाट दिखना चाहिए अपना... सेल्समैन ने जब उसको टोयोटा फोर्चुनर के बारे में बताया तो वो ज्यादा इंटरेस्ट नहीं ले रहा था लेकिन जब उसने दाम सुना उसका २३ लाख के आसपास तो तुरत राजी हो गया :P

    मतलब चचा की हर जगह यही कहानी है, गाड़ी शो-ऑफ करने के लिए लोग ज्यादा खरीदता है....और पटना में तो एस.यू.वी का बाढ़ आए हुए है...हम तो वहाँ पी.एम्.मॉल में बी.एम्.डब्लू का एस.यु.वी भी इस दिवाली में देख चुके हैं :P

    और गुजरात तो हम भी जा चुके हैं और देखे हैं की वहाँ ज्यादा स्कूटी/बाईक चलता है.. :)

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    1. यहाँ गाड़ी खरीदने की मनोवृत्ति पर भी कुछ अध्ययन हुए हैं, एक निष्कर्ष यह भी था कि इंसान गाड़ी से अपनी सामर्थ्यप्रदर्शन करता है। वैसे दूसरा निष्कर्ष यह भी था कि एसयूवी खरीदने वाले अन्यों से दबंग होते हैं मगर वह तब की बात है जब एसयूवी आम नहीं थीं।

      कारपूलिंग को प्रचलित बनाने पर काफ़ी संसाधन लगाये जा रहे हैं। इस प्रयास को सफल बनाने के लिये शायद भावनगर से कुछ सीखना पड़ॆगा।

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  7. नागा दो माह से ज़्यादा हुआ ! आपकी वापसी सुखद है ! देती है पर आपने ध्यान दिया ! नीरसता बाधित हुई :)

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  8. “पटना में आझो सुमो, सफारी, बोलेरो अऊर क्वालिस का माने खाली गाड़ी नहीं होता है, इसका मतलब होता है एगो एलान कि हमरा औकात देख लीजिए”। सच कहा है आपने आज बड़ी बड़ी गाडियाँ स्टेटस सिमबाल हैं.... और कानफाडु हार्न बजाते संकरी संकरी सड़कों पर एतना तेजी से भागते है कि श्री लाल शुक्ला जी का रागदरबारी याद आ जाता है... “... वह गाड़ी नहीं आग की लहर है, बंगाल की खाड़ी से उठा हुआ तूफान है, जनता पर छोड़ा हुआ कोई बदकलाम अहलकार है, पिंडारियों का गिरोह है...”
    आपका अंदाज गंभीर मसले को भी रोचक बना देता है... आपको पुनः देखकर आनंद आया... सादर।

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  9. कहीं ज़िन्दगी का ज़रूरत, कहीं प्रदर्शन की ज़रूरत। यह फ़र्क़ अभी है बल्कि और भी बढ़ गया है। इस फ़र्क़ की ज़िम्मेदारी तय नहीं हो पा रही है, जिस दिन तय हो जायेगी उस दिन के बाद से कलियुग का अवसान प्रारम्भ हो जायेगा..तब तक आपकी नज़र व्यथित रहेगी यह सब देखकर।

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  10. सबसे पाहिले त बिना कोनो गाड़ी के अपना भाई को इहाँ देख के मन खुस हो गया .... अइसन पैनी नज़र और खबर बिहारी के सिवा कौन देगा ! पटना ... ये मेरा इंडिया जैसा लगता है पढके

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  11. सबसे पाहिले त बिना कोनो गाड़ी के अपना भाई को इहाँ देख के मन खुस हो गया .... अइसन पैनी नज़र और खबर बिहारी के सिवा कौन देगा ! पटना ... ये मेरा इंडिया जैसा लगता है पढके

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  12. Bada hee achha laga itne dinon baad aapko padhna! Aapkee gair maujoodgee khal rahee thee!

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  13. ये हाल हर शहर का है और बात बस गाड़ी तक नहीं रुकती है | मै राजेस्थान गई तो वहा देखा महिलाए साड़ी पहने सर पर पल्लू ले कर स्कूटी चला रही है यहाँ मुंबई में भी बहुत सारी राजेस्थानी महिलाओ को स्कूटी चलाते देखा है , हमारी एक मारवाणी मित्र है बिल्कुल पारंपरिक सोच वाले घर से वो सारे बंधन उन पर लदे है जो किसी मारवाणी परिवार में किसी लड़की महिला पर होते है फिर भी उनके घर की तीनो बहुए स्कूटी चलाती है घर में दो स्कूटी भी है , एक दिन मैंने उनसे इसका कारण जानना चाहा की तुम्हारे यहाँ महिलाओ पर इतने बंधन है फिर भी बड़े आराम से स्कूटी चलाने को क्यों मिलता है ये तो जरा आधुनिकता वाली बात हो गई ना , वो जवाब नहीं दी पास में खड़ी उनकी देवरानी ने झट जवाब दिया की महिलाओ को घर के बाहर बहुत सारे काम होते है बच्चो को स्कुल से लाना , बाजार जाना , सब्जी लाना आदि आदि यदि वो सब जगह टैक्सी से गई तो सोचिये कितना भाडा लगेगा और बस आदि के लिए इंतजार किया तो घर में पति के काम से आते ही जी साहब कहने के लिए कैसे हाजिर होंगे और घर का ढेर सारा काम कैसे निपटायेंगे , इसलिए जरा जोड़ घटाना लगाइये , ये आधुनिकता इन पुरुषो को कितना फायदा पहुंचाती है , इसलिए हमें स्कूटी चलाने दिया जाता है किन्तु साड़ी पहन कर :) उसी दिन से मैंने भी पति देव को कहा दिया है की मेरे लिए भी एक स्कूटी ला दो किफायती का किफायती और जाम में फंसने का चक्कर भी काम होगा :)

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    1. एकदम सही . यहाँ सर पर पल्लू डाले बहू स्कूटी पर सासू जी को मंदिर ले जाते भी दिखती हैं तो बच्चों को बड़ी गाड़ियों में बस स्टॉप तक छोड़ने जाती माएं भी !

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  14. रोचक अंदाज में लाजबाब प्रस्तुति,,,बहुत दिनों बाद आपको पढकर अच्छा लगा,,,,

    RECENT POST...: जिन्दगी,,,,

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  15. तीन शहर का अलग अलग नज़रिया .... पैसा प्रदर्शन की चीज़ बन गया है तो लोग दिखा रहे हैं .... भावनगर का चलन बढ़िया लगा ... रोचक पोस्ट

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  16. देखिये ये सब गाड़ी का बारे मे हम उतना कुछ नहीं जानते है ... पर हाँ आप के बारे मे दावे के साथ कह रहे है कि माइलेज का कोनो दिक्कत नहीं है ... 2 महिना के ऊपर 'गाड़ी' बिना एको बार चले खड़ी रही ... फिर भी देखिये तो ... क्या बढ़िया पिकअप ... और क्या बढ़िया माइलेज ... जय हो ... ;-)

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  17. छोटे शहर और उसके सपने हमारे अपने जैसे होते हैं.बड़का लोग अपनी ताकत को बड़े शहरों में दम्भ्पूर्वक दिखाते हैं.इहाँ आदमी से ज्यादा मटीरियल की भैलू है.
    ...इसलिए भावनगर में अपनी जिंदगी के मजे लो और हमरा दिल भी जलाते रहो :-)
    ...हमरे पास तो कोई गाड़ी नहीं है,तभी कोई नहीं पूछता 'कितना देती है ?'

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  18. हमें तो संतोष त्रिवेदी अच्छे दिखते हैं , एनवायरमेंट फ्रेंडली और पब्लिक ट्रांसपोर्ट का मज़ा उठाते !

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  19. LUNA KE MAJE LIYE JAYEN?????


    ALI SA NA KUCH HISAB-KITAB PESH-E-KHIDMAT KI HAI......
    JAWAW DIYE JAYEN????

    BAKIYA, EE JE BAR-KA-BA GARI-FARI KE BAAT KIYE O TO
    HAI HI 'STATUS SIMBLE'


    PRANAM.

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  20. क्‍या धांसू वापसी है? आनन्‍द आ गया सुबह सुबह पोस्‍ट पढ़कर। गाडिया स्‍टेटस सिम्‍बल तो हैं।

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  21. सबसे पहले तो आपकी वापसी का स्‍वागत है ...
    कोनो गाड़ी के बारे में सबसे जरूरी सवाल पूछ रहा होगा – कितना देती है?
    बहुत ही रोचकता से आपने जिक्र किया है आपने गाडि़यों का ... लाजवाब प्रस्‍तुति
    आभार

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  22. बहुत दिनों बाद ब्लाग पर आपको पढ़कर मेरा भी लिखने का उत्साह बढ़ रहा है। आप सूक्ष्म से सूक्ष्म बात को किस लेबल तक क्रिएटिव बना सकते हैं यही बारीकी सीख रहा हूँ। प्रणाम !

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  23. itne dinon baad aaye....lekin der aaye durust aaye.
    jo likhe vo to apne aap men anootha hai......bahut pasand aaya.

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  24. स्वागत है आपकी वापसी का ब्लॉग जगत में ... आपका इंतज़ार था ...

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  25. ये शो ऑफ ही है नहीं तो आजकल तो जितनी बड़ी गाडी चलाना उतना ही मुश्किल देश की सड़कों पे ... पर फिर भी एक से एक जबरदस्त गाडी ...

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  26. मितव्ययता और दिखावा दोनो की सोच सामुहिकता में पनपती है।

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  27. सारा विवरण बडा ही जीवंत व रोचक है । गाँवों में यही हाल ट्रैक्टर वालों का देखा जासकता है । नई साइकिल को पूरे दम से दौडाते किसी किशोर की शान भी किसी से कम नही होती । और हाँ..आपकी वापसी पर मुझे बचपन का ध्यान आरहा है जब पिताजी बाजार से लौटते थे और हम आतुरता व उल्लास के साथ उनके थैले पर टूट पडते थे कि उसमें हमारे लिये क्या है ।

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  28. रोचक!यहाँ आते ही सबसे पहले मन में ये शब्द आता है। अच्छा लगा कि भावनगर अभी भी वैसा ही लगता है, जैसा बचपन में सेठ ब्रदर्स का लगता था।

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    1. अविनाश , सेठ नहीं शेठ ब्रदर्स :) वाह रे कायम चूर्ण

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  29. पिछले दिनों जयपुर गए थे। वहां छात्राओं को स्कूटर चलाते देखे तो अपने राज्य का याद आ गया। आज आपका लेख उस समय की याद ताज़ा करा गया जहां हम अभियो सामंती परिवेस में जीने को बाध्य है। इसको परंपरा का नाम देकर टाल सकते हैं लेकिन कही न कहीं हमारे पिछरे पन की निसानी है, इसको इंकारो नहीं कर सकते।
    नोलेरो और सूमो के साथ हनहनाते हुए चलना सामंतों की निसानी हो सकती है लेइक्न स्विइफ़्ट पर चलना तरक्की की। कही न कहीं लग रहा है कि हम अभियों तरक्की नहीं कर पाए।
    वैसे अंतराल के बाद आपका नेट पर आना सुखद लगा। आप सक्रिय रहते हैं तो हमें भी ऊर्जा मिलती है वरना इन दिनों मुझे भी विरक्ति सी होने लगी थी।

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  30. तीन शहर और चार पहियों वाली गाड़ी से लेकर दुपहिया का भावनगर में चलन बहुत कुछ कहता है...इसमें तीन शहरों की संस्कृति भी है,तीन शहरों का रहन-सहन भी है और तीन शहरों की लुभावनी रवानगी भी है...इस रवानगी की रफ्तार में माइलेज़ की फिक्र करवाने के लिए धन्यवाद...हमेशा की तरह रोचक भी और प्रेरक भी।

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  31. बेहद ज्वलंत मुद्दा लेकर आपकी वापसी हुई है... आपका स्वागत है.. एक कमी सी खलती थी आपकी

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  32. हम तो ठहरे 'बेकार' आदमी, हमारे लिए सब चौपहिया एक बराबर| लेकिन आधी दुनिया को स्कूटी\एक्टिवा चलाते देखकर अच्छा लगता है|आप कहेंगे कि ख्याल टकराते हैं, इस विषय पर एक पोस्ट लिखने की भी सोची थी बल्कि शुरू भी की थी फिर अपनी रेपुटेशन(:)) और चुटकी लेने की आदत याद आ गयी और इरादा परमानेंट मार्कर से काट दिया|पता चलता कि गए थे तारीफ़ करने और प्रमोद मुथालिक की तरह पिंक पिंक ढेर लग गया:)
    मुद्दा बहुत सीरियस है सलिल भाई, एक तरफ बत्तीस रूपये रोज कमाने वाला गरीबी रेखा से ऊपर और दूसरी तरफ सत्तर रूपये में पांच किमी सिर्फ चलने का खर्चा, भौंडा शक्ति प्रदर्शन नहीं तो और क्या है? फिर से याद आता है नमक हराम का सीन जिसमें काका का बिग बी से उसके एक पैग की कीमत पूछना और उतने में गरीब के घर की कितनी जून रोटी को याद करना और फिर उस शराब को खून समझना|
    वापिसी पर स्वागत भी और धन्यवाद भी|

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  33. कोनो दुपहिया के ऊपर चार-गो से कम सवारी नज़रे नहीं आता है.
    अहमदाबाद में भी ऐसा ही नज़ारा दिखता है.

    एक एक से एक उम्रदराज औरतों को टू व्हीलर चलाते देखा है...एक जगह तो बिलकुल सजी संवरी दो औरतें और दो बच्चे किसी शादी में जा रहे थे...भारी साड़ी..गहनों और गज़रों से सजी औरतों को टूव्हीलर पर देख बड़ी मुश्किल से तस्वीर उतारने की अपनी इच्छा को रोका.

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  34. कोनो दुपहिया के ऊपर चार-गो से कम सवारी नज़रे नहीं आता है.अहमदाबाद में भी ऐसा ही नज़ारा दिखता है.

    एक एक से एक उम्रदराज औरतों को टू व्हीलर चलाते देखा है...एक जगह तो बिलकुल सजी संवरी दो औरतें और दो बच्चे किसी शादी में जा रहे थे...भारी साड़ी..गहनों और गज़रों से सजी औरतों को टूव्हीलर पर देख बड़ी मुश्किल से तस्वीर उतारने की अपनी इच्छा को रोका.

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  35. मेरे अनुसार तो गाड़ी का काम एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना भर है।
    हम तो सोच रहे हैं कि रिटायर होने के बाद कार का झंझट न ही पालें। महीने में एक दो बार जो बाहर जाना होगा तो टैक्सी या औटो का उपयोग करें। देखिए, क्या होता है। पैट्रोल फूँकने से बचें तो बेहतर।
    भावनगर वाले शायद पुरानी गुजराती परम्परा निभा रहे हैं जहाँ पैसे का आदर होता था और उन्हें झूठी शान के लिए न खर्च कर और पैसा कमाने के लिए उपयोग किया जाता था। वे सदा से निवेशक रहे हैं।
    घुघूती बासूती

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  36. सलिल जी आपको फिर से देखकर समझ गया कि भावनगर ने आपको भाव से अपना लिया... आपका यह पोस्ट केवल पेट्रोल तक सीमित नहीं है...बल्कि मुझे यह जीवन के सभी क्षेत्रों में लगता है... सरकार और सरकार से बाहर.... राष्ट्रपति आवास पर खर्चा से लेकर मंत्रियों के ताम झाम.... ये सब आपके पोस्ट के हिस्से हैं... क्या कोई ऐसा व्यक्ति नेतृत्व में नहीं आ सकता जो कहे कि जबतक देश के हर एक एक आदमी को जीवन की जरुरत भर चीज़ें नहीं मिलती तब तक ये ताम झाम स्थगित.....लेकिन ऐसा हो न सकेगा...अफ़सोस.... बहुत कुछ कहता आपका यह लेख...

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  37. टाइटल और आखिरी लाइन से मुस्कान आ गयी चेहरे पर :)

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  38. हे ब्लागिंग भी शुरू कर दिए ..हम तो निसाखातिर थे कि अब तो बिहारी बाबू कुछ दिन सुस्तायेगें ....
    अभिषेक कमाल का लिखते हैं आखिर भतीजा केकर हैं ? :-)
    उनका गाडी वाला ब्लॉग देखकर हमरा भी आँख चौड़ा गयी थी ......
    पटना और भावनगर का अंतर साफ़ है -रियासतें और सामंती ठाठ बाट तो रग में रग में है बिहारी बासिंदों के ...
    एक ठो आपौ न खरीद लें बाबू -हमका नीक लागे!

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    1. पंडित जी!
      हमरे दुआरे भी छौ साल से एगो हाथी खडा है, नाम है 'स्विफ्ट'!! अब त हम भी अपनी बिटिया की फरमाइश पर स्कूटी किनेंगे!!

      हटाएं
  39. हम तो कोई कमेंट नही कर सकते--बस इतना ही कि "मस्त " पोस्ट है

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  40. आपको कृष्णजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  41. पुनर्मिलन....स्वागत है आपका, भाई साहब !
    कमी महसूस हो रही थी आपकी।

    गाड़ियों के बारे में तथाकथित बड़े लोग ‘हम दो, हमारे चार‘ के फार्मूले को अपना कर स्वयं को ‘बड़ा‘ महसूस करते हैं, जो वे होते नहीं है।

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  42. केतना दिन तो लगा दिए हैं आप वापस आने में, इतना दिन जो नागा हुआ उसका ज़िम्दारी के लेगा.... औउर आज जो आये हैं तो बड़का बड़का गाडी सब का नाम गिनाने लगे, माने हमरे जईसा जो हीरो एटलस वाला आदमी हैं ऊ तो डेरायिये जाएगा न... हम तो ई साईकिल में जो तेल डाले पड़ता है उहो खातिर सोचते हैं, पेट्रोल भरावे का तो हैसियते नहीं है ... और रोडवा पर देखते हैं कि केतना लोग तो ऊ १२ सीटर वाला गाडी में भी अकेले उड़ान भरता है.... एक तो ओतना तेल बर्बाद कर रहा है, उसपर से ट्रैफिक जाम करवाता है... अरे जब अकेले जाना है तो बस से चले जाए, और जादे परेसानी है बस से तो मोटर साईकिल ले ले... खैर छोडिये ई सब बात, बाकी हम भी सोच रहे हैं ई बचत से एगो साईकिल में डाले वाला तेल का डब्बी खरीद लें... और जो इतना दिन के लिए बिला गए थे उसका भी भरपाई करना पड़ेगा, ई ब्लॉग कोनो पार्लियामेंट नहीं है कि जब मन हुआ आये जब मन हुआ तनि सुन हल्ला मचा के चल गए... औउर ई भी मत सोचियेगा कि हम फ़ालतू में इतना बड़का ठो का टिपिया के जा रहे हैं, लेम्चूस चाहिए इसके बदले में.... पोपिंस से कम में नहीं मानेंगे....

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  43. सही कहा आपने
    आज गाड़ियाँ स्टेटस और हैसियत की प्रतीक बन गयी है ..
    दिखावे से क्या मिलने को है ?
    सादर !

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  44. पटना,नोयडा और भावनगर ....तुलनात्मक और रोचक ....

    "मन के कोने से..."
    http://mannkekonese.blogspot.in/

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  45. बाऊ जी एगो कानपुर सहर का किस्सा हम बताते हैं , बहुत छोटे थे हम और पिता जी के साथ मोटरसाईकिल पे कहीं जा रहे थे , एगो त्यौहार राहे ऊ दिन (ये नहीं बताएँगे कौन त्यौहार वर्ना लोग-बाग ऊके धरम से जोड़ के देखे लागत हैं) , एक सज्जन अपना बोलेरो मा कम से कम २० ठो जना का बिठाये और हर जन की गोदी मा दुई-दुई ठो चुटका बच्चा , एतना ही नहीं खुद डिरेवर साब की गोदी मा भी दुई ठो बच्चा , हम तो देखे के हिल गए , एगो गाडी मा पूरा मोहल्ला |
    एक दूसरा किस्सा , कानपुर के ही पास औरैया जिला का (जहां हमारा परवरिस हुआ है), हमारे पिता जी का पास एगो मोटरसाईकिल राहे , कोई ७-८ साल पुरानी , बहुत चमका के रखते राहें उह्का , लेकिन पता नहीं एगो दिन का सूझा बोले "इत्ती बड़ी जगह तो है नहीं औरैया कि पइदल कहूँ न जा पाई , साइकिल भी है और फिर एही बहाने थोड़ी बर्जिस हुई जैहे , सोचत हन कि बेच देई ई मोटरसाईकिल ", और दो दिन के अंदर ऊ मोटरसाईकिल का अपने दफ्तर का एगो चपरासी का भेंट कर दिए |
    (हमको शिक्षा दिए वो , कि आवश्यकता से अधिक संचय और प्रदर्शन दुइनो खराब है / औरैया वाकई इत्ती बड़ी जगह नहीं है कि कहूँ पैदल या साईकिल से न जाया जा सके)

    सादर

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