टेक्नोलॉजी का जमाना
में तरक्की एतना फास्ट होने लगा है कि कभी-कभी टेक्नोलॉजिये पीछे रह जाता है. अब
देखिये ना एगो अदमी रोड पर भागा जा रहा था कि उसका एगो दोस्त भेंटा गया. बदहवास
भागते हुए देखकर पूछा, “कहाँ भागे जा रहे हो यार?”
“कुछ मत पूछो, बाद
में बात करूँगा!”
”सब ठीक तो है ना?”
”सब ठीक है. मगर
बहुत जल्दी में हूँ, फिर मिलकर बात करूँगा!”
”मैं भी साथ चलूँ.
शायद ज़रूरत पड़ जाए मेरी?”
”ये ठीक रहेगा. मेरे
पास बिल्कुल टाइम नहीं है. दरसल मैंने नया टीवी ख़रीदा है!”
”अच्छा! तो इसी खुशी
में उड़े जा रहे हो!”
”खुशी में नहीं यार,
डर से भागा जा रहा हूँ!”
”डर कैसा? चोरी की
है क्या?”
”नगद देकर ख़रीदा है!
डर तो इस बात का है कि घर पहुँचते-पहुँचते कहीं मॉडल पुराना न हो जाए!”
त बात साफ है कि
तरक्की के लिये टेक्नोलॉजी अऊर टेक्नोलॉजी के लिये इस्पीड जरूरी है. अब मोबाइल फोन
ले लीजिये. एक से एक अंगूठा छाप के हाथ में लेटेस्ट इस्मार्ट-फोन देखाई दे जाता
है. एतने नहीं, उसके मुँह से एण्ड्रॉयड, जेली बीन, क्वाड-प्रो, मेगापिक्सेल, रैम,
मेमोरी, ऐप्प अऊर डाउनलोड जइसा सब्द सुनकर आपको बिस्वासे नहीं होगा कि मोबाइल के
कैस-मेमो पर ऊ महासय दस्खत के जगह अंगूठा लगाकर आ रहे हैं.
असल में मोबाइल त
पढ़ा-लिखा आदमी को अंगूठा छाप बना दिया है. मेसेज करना है त अंगूठा, पढना है त
अंगूठा, फेसबुक पर कमेण्ट करना है त अंगूठा अऊर ब्लॉग पढना है त पेज ऊपर-नीचे करने
के लिये अंगूठा. माने सारा पढ़ाई खतम करने के बाद भी अंगूठा छाप.
मामला खाली मोबाइले
तक रहता त कोनो बात नहीं था. ऑफिसे में देख लीजिये... पहिले हाजिरी बनाने के लिये
हाजिरी रजिस्टर पर साइन करना पड़ता था. अब अंगूठा लगाना पड़ता है. मजाक नहीं कर रहे
हैं... इसमें मजाक का कोनो बाते नहीं है, न कोनो बुझौवल बुझा रहे हैं हम. एकदम बाइ
गॉड का कसम खाकर सच कह रहे हैं. अभी कुछ महीना पहिले ऑफिस में भी एगो नया
टेक्नोलॉजी आया है हमारे... एगो मसीन. अब जबतक ऊ मसीन के ऊपर अपना अंगूठा छाप नहीं
दीजियेगा, तबतक आपको ऑफिस में कोनो काम करने का परमिसन नहीं मिलेगा. बताइये त भला,
गजब अन्धेरगर्दी है. जऊन आदमी का दस्तखत पर भारत देस के कोनो-कोना में, चाहे दुनिया
के बहुत सा जगह में आसानी से पइसा का लेन-देन हो जाता है, ऊ अदमी को उसी के ऑफिस
में अंगूठा छाप बनकर अपना पहचान बताना पड़ रहा है!! हे धरती माई, बस आप फट जाइये
अऊर हम समा जाएँ. हमरा बाप-माय लोग का सोचेगा कि बेटा को एतना पढ़ा-लिखाकर साहेब
बनाए अऊर ऊ अंगूठा छाप बना हुआ है.
सी.आई.डी. के डॉ.
साळुंके के जइसा ऑफिस पहुँचकर मसीन में अंगूठा लगाते हैं अऊर इंतजार करते हैं.
मसीन का जवाब आता है कि फिंगर-प्रिंट मेल नहीं खा रहा है. हई देखिये, अब दोसरा अंगुली
का छाप दीजिये, पहचान होने के बादे काम सुरू हो पाता है.
हमरे एगो संगी-साथी
को ई सब से बहुत परेसानी हो गया. असल में उनका आदत है तनी देरी से सोकर उठने का.
अब देरी से उठते हैं, त ऑफिसो देरिये से पहुँचते हैं. अब कम्प्यूटर के जमाना में
एक-एक मिनट का हिसाब दर्ज होता रहता है. ई हालत में डेली देरी से ऑफिस जाना, माने
सीरियस बात. ऊ का करते हैं कि अपना पासवर्ड एगो इस्टाफ को बताकर रखे हुये हैं. ऊ इस्टाफ
बेचारा उनके बदला में उनका हाजिरी लगा दिया करता है.
अब अंगूठा छाप मसीन हो
जाने के बाद, बिना अंगूठा पहचाने, हाजिरी लगबे नहीं करेगा. ऊ भाई जी एकदम असमान माथा
पर उठाए हुए थे अऊर बेवस्था को जमकर गरिया रहे थे. एहाँ तक कि देस का तकनीकी बिकास
का ऐसी-तैसी करने में लगे हुये थे. कुल मिलाकर भाई जी का बिरोध एही बात पर था कि
उनका भोरे का नींद हराम हो रहा है. ई जानते हुए भी कि इसका कोनो इलाज नहीं है, ऊ
हमसे पूछ बैठे, “यार! अब तुम ही बताओ कि इससे कैसे निपटा जाए!”
हम बोले, “हिन्दू
हो?”
”अब ये क्या सवाल हो
गया!”
“शास्त्रों में
विश्वास है ना?”
”हाँ भाई हाँ!!”
”तो उस बेचारे ने
जिसने आजतक तुम्हारे पासवर्ड से तुम्हारी सुबह की हाज़िरी लगाई है उसे अपना गुरू
मानो और ऐड्वांस में गुरुदक्षिणा के तौर पर अपना अंगूठा काटकर दे दो. रोज़ सुबह वो
तुम्हारा अंगूठा लगाकर हाज़िरी बनाता रहेगा!”
कूँ कूँ कूँ के आवाज के साथ फोन डिस-कनेक्ट हो चुका था.
(एकलव्य का अंगूठा गुरु द्रोण ने गुरुदक्षिणा में माँग लिया था, लेकिन वाण चलाने के लिये धनुष पर वाण को रखकर तर्जनी और मध्यमा की सहायता से प्रत्यंचा पर शर-सन्धान किया जाता है. इसमें अंगूठे का कोई योगदान नहीं होता)
आपके आलेख को पढ़ कर ठहाका लगा बैठे ..... गार्ड दौड़ कर आया बेचारा ......
जवाब देंहटाएंमेसेज करना है त अंगूठा, पढना है त अंगूठा, फेसबुक पर कमेण्ट करना है त अंगूठा अऊर ब्लॉग पढना है त पेज ऊपर-नीचे करने के लिये अंगूठा. माने सारा पढ़ाई खतम करने के बाद भी अंगूठा छाप.
क्या वास्तव में :)
’बोल्ड’ डाईनामाईट है भाईजी।
जवाब देंहटाएंनई तकनीक नये जुगाड़ भी दिखायेगी, देखते जाईये। बाकी हमारे यहाँ बायोमेट्रिक काफ़ी समय से है और हर तकनीक की तरह इसके अपने फ़ायदे नुकसान भी हैं।
hahaha bahut mazedar post hai salil sir... bahut din baad aaya lekin aana safal ho gaya...by god ki qasam,...anguthachhap hone ka bhi apna maza hai... waise un sahab ke liye aapka suggestion bhi bura nahi tha...
जवाब देंहटाएंमज़ेदार। बायो-मीट्रिक से तो सबन को ही डर लगे है :)
जवाब देंहटाएंइसका मतलब यह हुआ कि गुरु द्रोण ने उन्हें बहुत ज्यादा गरियाने लायक मांग नहीं की थी. बहरहाल खूबैच एन्जॉय किये.
जवाब देंहटाएंआज तो आप पर हमारा रंग चढ़ गया लगता है, सलिल भाई!
जवाब देंहटाएंसलिल छाप से कुछ अलग स्वाद की पोस्ट पढ़ने को मिली.
किरदार, किस्सा और भाव प्रधान न होकर तरंग प्रधान...
ज़बरदस्त.... टेक्नोलॉजी आगे ले जाती या पीछे धकेलती ,
जवाब देंहटाएंसही बिंदु संदर्भित किये हैं :)
जवाब देंहटाएंएकदम अलग रंग है भैया आज की पोस्ट का ।
मोबाइल फोन का प्रसार आज के युग की सबसे बड़ी क्रान्ति है । आज खेत-खलिहान में काम करते किसान ,खरपतवार निकालती बहू-बेटियाँ , गाय-भैंस व बकरियाँ चराते चरवाहे सबके पास मोबाइल फोन हैं । जैसा आपने लिखा है अनपढ़ युवकों का किताब स्लेट से कोई वास्ता हो न हो पर वे कम्प्यूटर और मोबाइल की शब्दावली का खूब प्रयोग करते हैं।
अँगूठाछाप होने की बात आपने खूब कही । स्कूल में आए दिन ..कई बार तो लगभग हर रविवार को पीएससी, ऐसऐससी आदि कोई न कोई परीक्षा आयोजित होती है उसमें परीक्षार्थी को कम से कम तीन-चार जगह अँगूठा लगाना होता है । हम लोग अक्सर कहते रहते हैं कि अब फिर से अँगूठाछापों का युग आ रहा है । लेकिन आपने तो उसपर एक पूरा गहन ,रोचक और हास्य-व्यंग्य पूर्ण आलेख लिख डाला । सहज ही गहरी और अर्थपूर्ण बात कह जाना , यही तो कठिन है जिसे आप बड़ी सरलता से करते हैं ।
गनीमत है हम अंगूठा छाप नहीं हुए, मध्यमा से कंप्यूटर, हाँ आधा अंगूठा छाप :)- काहे कि मोबाइल पर बाँयी हथेली का अंगूठा ही रहता है
जवाब देंहटाएंकेतनो तरक्की हो, पर देख के जो एतना बढ़िया लिख दे, ओइसन कोनो नहीं है - पोस्ट की सुचना पाते मन बल्लियों उछल पड़ता है
मुझे तो लगता है टेक्नालॉजी जितनी आगे बढ़ती जाती आदमी का दिमाग़ कुण्ठित होता जा रहा है .,सारे दिमाग़ी कामों क् लिए इन डिवाइसेज़ पर निर्भर ,अपने सगों के जन्मदिन कंप्यूटर याद दिलाये ,पहड़े जो डेढ़ा-ढैया और जाने कहाँ तक के ज़ुबानी याद थे ,अब कैलकुलेटर बताता हैं ,और भी तमाम काम .मशीनों में अथाह मेमोरी और आदमी के दिमाग़ का दिवाला निकला जा रहा है .
जवाब देंहटाएंअब वह खाली दिमाग़ दुनिया भर की खुराफ़ातों में लगा है - तौन ओहिका चुप्पै बैठारि के अँगूठन केर परजोग पर जोर हुइ गवा .जानी का ?हमका इहै समुझ परत है .
..
अंगूठा उप्पर
जवाब देंहटाएंमाने कि
Thumbs Up :)
हमारे यहां तो अंगूठा नहीं तर्जनी की छाप लगती है, उसे क्या कहेंगे :) वैसे टेक्नोलॉजी ने सच में हमें निकम्मा बना दिया है और कंप्यूटर टाइपिंग ने हमारी हैंडराइटिंग की ऐसी-तैसी कर दी है। अब कभी दो शब्द कलम से लिखने पड़ते हैं तो यकीन ही नहीं आता कि कभी हैंडराइटिंग कंपीटिशन में हमें ईनाम मिला करता था :(
जवाब देंहटाएंवैसे अब अंगूठा का ज़माना ख़तम हो गया बिहारी की शकल की पहचान होगी ! जबरदस्त और मजेदार पोस्ट !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रोचक आलेख भाई जी, रात दस बजे आपकी पोस्ट पढ़ रही थी और बीच बीच में हंस भी रही थी तो बिटिया ने पूछा इतना हंसने की क्या बात है ? उसे पूरी पोस्ट ही पढ़कर सुनाई और पूछा तुम्हारे आफिस में क्या ऐसा ही अंगूठा छापना पड़ता है क्या ? उसने कहा नहीं, हमारे आफिस में तो कार्ड स्वाइप कर के भीतर जाना पड़ता है ! नयी टेक्नॉलॉजी के साथ चलने के आलावा और कोई ऑप्शन भी तो नहीं है ! रोचक पोस्ट वही बढ़िया फ्लेवर जिसकी हम आपसे हमेशा अपेक्षा करते है :)
जवाब देंहटाएंगुरु द्रोण ने एक अंगूठा लिया तो अर्जुन पर पक्षपाती होने का इतना बड़ा इलज़ाम कि फिर उसके खिलाफ ही युद्ध लड़ना पड़ा। अबके अँगूठवा पकड़ा कर कौन महाभारत लिखा जाएगा !! जब अंगूठा लेने देने से कोई फर्क नहीं पड़ता तो फालतू काहे बदनामी मिल लिए !
जवाब देंहटाएंरोचक अंगूठा पुराण !
एतना पढ़ले के बाद हमहूँ अंगूठा क टीप लगा के जात बानी ....
जवाब देंहटाएंसदा की तरह मजेदार पोस्ट...द्रोणाचार्य के खिलाफ युगों से जो आरोप लगता आ रहा है उससे भी आपने किसी हद तक तो बरी करवा दिया ...बधाई
जवाब देंहटाएंहम तो ये सोच रहे हैं अगर भगवान् अगूंठा नहीं बनता तो इतनी तरक्की ही नहीं होती पूरी दुनिया में ... ये ढेर सारे गेजेट न होते ... विज्ञान कितना पीछे रह जाता ... जय हो अंगूठा बाबा की ...
जवाब देंहटाएंअंगूठा संस्कृति में हम जी रहे हैं। अंगूठा ऊपर, नीचे, दाएं बाएं करके बहुत सा बात बता दिया जाता है। हमरा जमाना में त अंगूठा दिखाना बड़ा खतरनाक माना जाता था, आज त जीत का संकेत है जिसे हम हुर्रे हुर्रे करके मनाते थे।
जवाब देंहटाएंgazabbb gazbbb gazabbbb!!! anguthaa chhaaap :) :) :)
जवाब देंहटाएंaapke flavor se alag... but majedar..
जवाब देंहटाएंbahut badhiya hai sir ji.......maine bhi ek prayas prarambh kiya hai kripya visit zarur karen... www.Dhundhliyaaden.blogspot.com
जवाब देंहटाएंटेक्नोलॉजी का जमाना में तरक्की एतना फास्ट .... औ उसपर लेखनी तो एकदम सुपरफॉस्ट है न आपका
जवाब देंहटाएंसच आपका लेखन नि:शब्द कर देता है
सादर
अंगूठा छाप .... हा हा हा .. सुपर्ब :)
जवाब देंहटाएं.टेक्लॉलॉजी और अंगूठा ... भाई हमारा अंगूठा त एतना जल्दी जल्दी चल नही पाता तब ही तो रिटायर हो गये ।
जवाब देंहटाएंअसल में मोबाइल त पढ़ा-लिखा आदमी को अंगूठा छाप बना दिया है. मेसेज करना है त अंगूठा, पढना है त अंगूठा, फेसबुक पर कमेण्ट करना है त अंगूठा अऊर ब्लॉग पढना है त पेज ऊपर-नीचे करने के लिये अंगूठा. माने सारा पढ़ाई खतम करने के बाद भी अंगूठा छाप......................
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सटीक ... सच में अब अँगूठे के वैल्यू बढ़ गयी है सब जगह ....
आदमी छाप अँग़ूठा तक पहूँचा दिये क्या बात है :)
जवाब देंहटाएंनया टेकनोलोजी जो न करवाए. पढ़ लिख के अंगूठा छाप बनावाए.
जवाब देंहटाएंज़बरदस्त..... आज समय तो एस यही है टेक्नालॉजी जितनी आगे बढ़ती जा रही है आदमी का दिमाग़ कुण्ठित होता जा रहा है पर चाहे टेक्नालॉजी जितनी जितनी बढ़ा जाये पर अँगूठे की वैल्यू बढ़ती जा रही है सब जगह ....बहुत बढ़िया सटीक आलेख बहुत मजेदार भी
जवाब देंहटाएंआभार आपका
मामा जी
छत्तीसगढ़ी में टेक्नालाॅजी यानी ‘टेंकना-ला-जी’, मतलब, ‘कुछ थामने का या सहारा देने का लाओ जी।’
जवाब देंहटाएंअब पूरा संसार ही अंगूठे के सहारे चलने को मजबूर है।
कितनी अजीब बात है, पढ़-लिख कर भी अंगूठाछाप बने रहना जरूरी हो गया है !
....रम्य रचना....!
बहुत दिन बाद आपको पढ़कर अच्छा लग रहा है। वाकई हम अंगूठे की दुनिया में रह रहे हैं। हमारे दफ्तर में भी यही प्रक्रिया शुरू होने वाली है।
जवाब देंहटाएंनवरात्र की शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंयह अंगूठा सारे विवाद की जड़ हो गयी है आज तो :-)
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक !
ब्लॉग की अगली किश्त कब जारी होगी, सलिल भाई? अब तो अरसा हो गया मुंह मोडे हुए....!!
जवाब देंहटाएंअंगूठा युग आ गया है दादा....
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