सोमवार, 1 दिसंबर 2014

इक धुंध से आना है, इक धुंध में जाना है

20 नवम्बर 2014 सुबह पाँच बजे:
सिरहाने रखे हुए हमरे मोबाइल का रिंग बजा त हम घबरा गए. हमरे सभी जान-पहचान अऊर रिस्तेदार लोग में से कोई भी हमको रात में भले एक बजे तक फोन कर ले, मगर सुबह-सुबह कोई फोन नहीं करता है. अऊर ई त भोरे-भोरे फोन बज रहा था. बन्द आँख से फोन उठाये अऊर टटोलकर चस्मा खोजे. नाम फ्लैस कर रहा था चैतन्य.

घबराहट में फ़ोन उठाये तो उधर से हमसे जादा घबराहट भरा आवाज सुनाई दिया, “सर जी! नेट पर फ्लाइट चेक करो आप! अभी निकलना है घर से फोन आया है!”
”फोन रखो. मैं चेक करके फोन करता हूँ.”

एक रोज़ पहले ही ऊ घर से लौटे थे अऊर अभी त कल का थकान भी नहीं उतरा था.
हम लैपटॉप लेकर बइठ गये अऊर फ्लाइट चेक करने लगे.
“सर जी! एक फ्लाइट नौ बजे है और दूसरी ग्यारह चालीस पर.”
”नौ बजे वाली नहीं मिलेगी! आप ग्यारह चालीस वाली बुक कर दो.”
”ठीक है. आपको मेसेज आएगा, फिर भी मैं टिकट मेल करता हूँ!”

इसके अलावा न हम दुनो में कोई बात हुआ न हमलोग कुछ पूछे एक दूसरा से. डर अऊर अनिस्ट का आसंका अऊर आभास होने पर भी कुछ बात अपना कान से सुनने अऊर आँख से देखने का हिम्मत नहीं होता है.

साल 2006-07
चैतन्य जी के साथ हमरा दोस्ती का सुरुआती दौर था. कोनो काम से उनके घर गये त देखे एगो बुजुर्ग बेक्ति दीवान पर बैठे हुये हैं. पैर छुए त ऊ हाथ उठाकर आसीर्बाद दिये. बहुत कम बोलना चालना. चैतन्य जी के पिता जी के साथ ऊ हमरा पहिला मुलाकात था. हम औपचारिकता में कुछ पूछते रहे त ऊ माथा हिलाकर जवाब देते रहे. दोबारा चण्डीगढ़ में उनसे मिले, मगर ऊ भी बहुत थोड़ा देर के लिये.

साल 2008-09
चैतन्य जी नया नया हैण्डीकैम खरीदे थे अऊर सोनी टीवी के सी.आई.डी. के तर्ज पर घर के सबलोग को एकट्ठा करके एगो सिनेमा बना दिये. ऊ सिनेमा में उनका बचिया, सिरीमती जी, छोटा भाई, भाई के पत्नी के साथ-साथ उनके माँ अऊर बाबूजी भी जमकर ऐक्टिंग किये थे. सूटिंग जाड़ा के टाइम में हुआ था इसलिये सम्बाद बोलते बोलते उनकी अम्मा का ई डायलॉग सुनकर हँसते हँसते हाल बेहाल हो गया था कि कोई दरवाज़ा तो बन्द कर दो भाई! खैर, घर के सबलोग का बराबर का सहजोग अऊर बड़ा से बच्चा तक का काम देखकर मजा आ गया.

साल 2010-14
पिताजी के बारे में हमलोग के बीच बहुत सा बात होता था. जैसे उनका अस्थानीय अखबार में आलेख लिखना, आसपास के लोग का कानूनी मदद करना, सरकार को उसका काम याद दिलाना अऊर चुनाव में आम आदमी पार्टी का प्रचार करना. घर पर खुलकर राजनैतिक बहस करना अऊर दोसरा पक्ष का बात सुनना. कोनो तरह का नाजायज काम एकदम बर्दास्त नहीं करना. बच्चा लोग लाख कहे कि जाने दीजिये चलता है, लेकिन उनका कहाँ चलता है. जबतक नाक में दम करके काम नहीं करवा लेंगे तब तक चैन कहाँ. लिखा पढी में त परधान मंत्री तक को अप्लीकेसन लिखने में हिचक नहीं!

आज के जमाना में भी ट्रांजिस्टर पर समाचार सुनने में उनको जो आनन्द मिलता था ऊ टीवी में नहीं. एही नहीं आकासबानी रामपुर द्वारा आयोजित परिचर्चा में त ऊ नियमित रूप से आमंत्रित किये जाते थे. अफसोस का बात है कि उनका परिचर्चा का कोनो रेकॉर्डिंग नहीं है.

अगस्त 2014
अचानक उनका तबियत खराब हुआ... खून का रिपोर्ट में गड़बड़ी निकला... आगे जाँच हुआ त पता चला गुर्दा का कैंसर है ऐडभांस इस्टेज का... ऑपरेसन करके गुर्दा हटा दिया गया... हस्पताल से डिस्चार्ज हुए... कमजोर मगर ठीकठाक.

नवम्बर 2014
दोबारा तबियत बिगड़ा.. पता चला कि फेफड़ा में पानी भर गया है... फिर से भर्ती... साढे सात सौ ग्राम पानी निकला... दस दिन तक पाइप लगा रहा... 17 तारीख को फिर से डिस्चार्ज हुये अऊर घर पहुँच गये... 19 नवम्बर को चैतन्य के सिर पर हाथ फेरकर आसीर्बाद देते हुये बोले कि तुम जाओ, केतना दिन नौकरी छोड़कर बैठोगे. चैतन्य चले गये..

तारीख 20 नवम्बर 2014
साम को चैतन्य का मेसेज आया... पिताजी नहीं रहे! अचानक लोड-सेडिंग होने से जइसे अन्धारा हो जाता है मन में चल रहा भोरे से जो उम्मीद का दिया टिमटिमा रहा था, ऊ बुझ गया.

कल चैतन्य से बात हुआ त पता चला कि नाता रिस्तेदार के अलावा पता नहीं केतना अनजान लोग उनको सर्धांजलि देने आया, जिसमें हिन्दू मुसलमान, अमीर गरीब सब तरह के लोग थे. कल त हद हो गया जब मुम्बई से सीधा एगो बेक्ति उनको सर्धांजलि देने आये अऊर एक घण्टा रुककर लौट गये... ई हो बता गये उनकी बहिन उज्जैन से कल-परसों आने वाली है.

बचपन में हमरे दादा जी गुलाब का कलम लगाते थे. जिसमें बहुत सुन्दर गुलाब का पौधा खिलता था. लेकिन एक बार उसमें कोनो पौधा नहीं निकला, उलटे कलम सूख गया. बाद में पड़ताल करने पर पता चला कि हमरा भाई ऊ कलम को जमीन में रोज घुमा देता था.

हम दुनो दोस्त – हम अऊर चैतन्य एही बतिया रहे थे आपस में कि ई नौकरी हमलोग को अपना जमीन से केतना दूर जाकर कलम के तरह रोप दिया है अऊर हर तीन साल में कोई आता है अऊर उसको घुमाकर दोसरा जगह रोप देता है. जब हमलोग वापस अपना मिट्टी में लौटकर जाएँगे त ऊ मट्टी भी सायद हमलोग को नहीं पहचानेगा, लोगबाग का त बाते अलग है.

पिताजी जाते-जाते अपना नेत्रदान कर गये. उनके आँख से कोई जरूरतमन्द नया दुनिया देख पाएगा. आसमान के तरफ देखते हुये सायद कभी उसको एगो तारा देखाई दे जिसको ऊ धन्यवाद देते हुये कहेगा – कौन कहता है कि आप नहीं हैं. आसमान के तारों से लेकर धरती की मिट्टी तक और आसमान के देवताओं से लेकर धरती के न जाने कितने जरूरतमन्दों के दिल में आप जीवित हैं!

पिता जी के इस्मृति को हमरा सादर नमन!!

28 टिप्‍पणियां:

  1. अपने अंतिम सत्य से मिलने चले गए बाबूजी को मेरा सादर नमन . अच्छे लोगों का मिलना एक नियामत है उससे भी ज्यादा बड़ी नियामत है उस नियामत को समझना और मानना .एक ही सिक्के के ये दो पहलू भावों को जो परिपूर्णता देते हैं उसी का प्रमाण है ये सम्वेदना के स्वर . गुलाब की कलम को घुमाने वाली बात दिल को छू गयी लेकिन 'कलम' ने पीकना तो नहीं बन्द किया न ! नियति घुमाती रहे ह्जारबार ...चैतन्य जी और आपकी मित्रता ऐसी ही बनी रहे .

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  2. मेरे एकाउंट से आज पांच दिन बाद ब्लाग खुलने शुरू हुए हैं . सबसे पहले यही पोस्ट पढने मिल गयी .

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  3. बाबूजी को सादर नमन !
    ऐसे लोक हित-चिन्तक ,श्रेष्ठ जन आज की दुनिया में ढूँढे नहीं मिलते ,उनकी स्मृति भी प्रेरणादायी है -परमपिता से प्रार्थाना है कि उनकी उनकी आत्मा को चिरशान्ति और चौतन्य जी को स्वजन-परिजनों सहित इस महा दुख को सहने की सामर्थ्य प्रदान करे !

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  4. ज़िन्दगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम वो फिर नहीं आते - यादें, बातें रह जाती हैं, सर पर रखा आशीष भरा हाथ रह जाता है … कितना कुछ कहता है। घर से दूर कहीं जाएँ, अपना घर अपना ही घर है।
    चैतन्य जी के साथ हूँ, पापा को श्रद्धांजलि

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  5. अभी अभी अपनी ताज़ा ब्लॉग पोस्ट से दोस्तों को फेसबुक के द्वारा बाखबर करने को फेसबुक अकाउंट खोला ही था कि आपकी पोस्ट देखी. अपना मकसद भूल कर पढना चालू किया तो झटका लगा. आपकी श्रद्धांजलि पढ़ते-पढ़ते कर मन भारी हो आया.
    उस विराट आत्मा को हमारी भी विनम्र आदरांजलि!!
    पहले पढ़ चुकते तो आज अपनी पोस्ट नहीं डालते!

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  6. यह साल भी न जाने कैसा आया ...
    चैतन्य भाई हो सके तो संभालिएगा खुद को ।
    बाबूजी को हार्दिक श्रद्धांजलि।

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  7. विनम्र नमन
    जीवन का खेल कुछ ऐसा ही है | स्मृतियाँ रह जाती हैं ....बस

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  8. जीवन और मृत्यु दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं...जीवन सफल हो तो मृत्यु भी सफल हो जाती है..दिवंगत आत्मा को हार्दिक श्रद्धांजलि।

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  9. दिवंगत आत्मा को मेरी तरफ से भावभीनी श्रद्धांजलि भाई, हमारे अपनों की कमी तो जिंदगी भर खलती रहेगी फिर भी आपको चैतन्य जी को समझाना होगा धैर्य से काम ले इस दुःख को सहने की ईश्वर हिम्मत दे उनको , मेरी संवेदनाएं उनके साथ है एक स्नेही पिता को खोने का दुःख क्या होता है मै भी जानती हूँ !
    सबसे पहले आपके इस पोस्ट का टाइटल मुझे बहुत पसंद आया "इक धुंध से आना है, इक धुंध में जाना है" ! एक छोर जन्म का दूसरा छोर मृत्यु का, धुंध एक अनजान रहस्य है जहाँ से हम आते है और जाते है इन दोनों छोरों के बीच जिंदगी है ! ईश्वर की दी हुयी जिंदगी एक कंप्लीट पैकेज के साथ !
    आपकी यह पोस्ट मन को छू गयी शुरू से अंत तक !

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  10. दिवंगत आत्मा को विन्रम श्रद्धांजलि।

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  11. बाबू जी को विनम्र श्रधांजलि ... चैतन्य जो को इध्वर धैर्य दे ...
    यादें कभी नहीं जाती ... और अच्छे इंसान हमेशा प्रेरणा देते रहते हैं जीवन भर ... आपकी पोस्ट दिल को छूते हुए गुज़रती है ... सच है की अनिष्ट की आशंका शब्दों को बाहर नहीं आने देती ....

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  12. श्रद्धांजलि बन्धु!
    [पता नहीं, अच्छी पोस्ट लिखे की सराहना करें या टाइप करते हुये नम आखों को पहले पोंछें! ]

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  13. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-12-2014) को "आज बस इतना ही…" चर्चा मंच 1816 पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  14. किसी का चले जाना...वो भी पिता का ......
    सच ज़मीन से उखाड़ फेंकने जैसा ही है...
    :-(
    श्रद्धासुमन

    सादर
    अनुलता

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  15. बहुत से लोग तो जिस मिट्टी में रोपे जाते हैं, चाहे अपनी इच्छा से या किसी और की मर्जी से, वहीं के हो जाते हैं। पुरानी मिट्टी से रिश्ता तक नहीं रखना चाहते। मगर यह सच है कि उम्र बढ़ने के साथ अपनी पुरानी मिट्टी जरूर पास खींचती है।

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  16. विनम्र श्रद्धांजली....
    पिता जी का जाना बहुत दुखद होता है ...सत्य को स्वीकारना है और आगे बढ़ना है ... छोटी बहन भी इस दुखद समय में साथ है .... रहेगी ...

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  17. जब हमलोग वापस अपना मिट्टी में लौटकर जाएँगे त ऊ मट्टी भी सायद हमलोग को नहीं पहचानेगा, लोगबाग का त बाते अलग है...
    सच एक टीस बनी रहती है परदेश में लेकिन करे भी तो क्या ..रोजी रोटी का सवाल जो होता है ...
    ..मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
    दिवंगत आत्मा को विनम्र श्रद्धा सुमन!

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  18. विनम्र नमन
    यह जिंदगी का खेल ही ऐसा है. किसी का बश नहीं चलता, परन्तु स्मृतियाँ रहती हैं और संबल देती रहती हैं.

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  19. ज़िन्दगी के सफर में स्मृतियाँ रह जाती हैं
    विनम्र श्रद्धांजली ..... शत शत नमन

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