हम तनी पुराना बिचार, चाहे पुराना समय के आदमी हैं, एही से हो सकता है कि हमको अजीब लगता है. ईहो हो सकता है कि अजीब त सबको लगता है, मगर हर समस्या के तरह लोग उसके तरफ से आँख मोड़कर निकल जाता है अऊर देखते हुए भी अनदेखा कर देता है. ऐसा भी होता है कि जहाँ तक हो सके, लोग अपना तरफ से कोसिस करता है कि ऊ सब देखना ही नहीं पड़े, इसलिए एतना एहतियात रखता है कि कोई चांस नहीं लेता है. अब इसके बाद भी सामना हो जाए त माथा झुकाकर निकल जाने के अलावा त कोनो रास्ता नहीं.
सबसे बड़ा मुसीबत होता है जब आप सबके साथ रहते हैं, माने पूरा परिवार के साथ, जिसमें बड़ा छोटा सब आपके साथ हो. ई एतना सन्कट का घड़ी होता है कि न आप मना कर सकते हैं, न समझा सकते हैं. बस चुपचाप परिस्थिति के ऊपर छोड़कर निकल जाते हैं, बड़ा, समझदार बच्चा इधर उधर देखने लगता है अऊर छोटा बच्चा शेम शेम बोलकर अपने भैया दीदी के कान में कुछ कहता है. आप मने मन फिर यह कसम खाते हैं कि यहाँ नहीं आएँगे आगे से. मगर बेकार है ई कसम और फालतू है आपका सोचना. जब तक आपके मन में अपने परिवार के प्रति प्रेम है, आप सोचेंगे कि चलो आज छुट्टी का दिन है सब लोग एक साथ कहीं चलते हैं अऊर एक साथ हँस खेलकर आज का दिन बिताते हैं.
लेकिन उन लोगों पर असर होता है!! नहीं, बिलकुल नहीं!!! अऊर तब बिस्वास होता है कि पुराना लोग ठीक कहते थे कि प्यार (अगर ई प्यार है तो) अंधा होता है (हालाँकि हमरे हिंदी के प्रोफेसर डॉ. जगदीश नारायण चौबे जी का कहना था कि जिस प्यार के हाथ में तुम जीवन की लाठी सौंप देते हो और जो तुम्हें चलाता है, वह अंधा कैसे हो सकता है). मगर हमको तो लगता है कि अंधा होता ही है. हर पार्क में, मॉल के गलियारा में, चलता मेट्रो ट्रेन में, मेट्रो स्टेसन के सीढ़ी पर, बस आप सोच लीजिए कोई अईसा जगह जिसको आप अंगरेजी में पब्लिक प्लेस कहते हैं, अऊर आपको वह दृस्य देखाई दे जाएगा. एगो प्रेमी जुगल, एक दूसरे के साथ प्रेम में ऐसा खोया हुआ, जईसे दुनिया में ऊ लोग के चारो तरफ का हो रहा है, कुछ देखाई नहीं देता है ऊ लोग को. अब आप अन्धा कह लीजिए, चाहे अर्जुन, माने एतना ध्यान लगाकर प्रेम में डूबा हुआ कि बस चिड़िया के आँख का पुतली के सिवा दुनिया का कुछ नहीं देखाई देता है. तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है!
अब आप उनको देखिये, चाहे मत देखिये, ऊ लोग आपको नहीं देखता. एकदम समाधि का स्थिति में, संसार में रहकर भी संसार से बाहर, दीन दुनिया से बेखबर, न सोर का कोई प्रभाव, न किसी भी तरह के ब्यवधान का कोई भय. साहिर साहब का उलाहना देते हुए झूठे सन्यासियों को कि संसार से भागे फिरते हो, भगवान को तुम क्या पाओगे. मगर ई सन्यासी स्वरूप ध्यानमग्न जुगल जोड़ी को देखकर, आपको हो सकता है कि सरम आ जाए, क्योंकि इनका समाधि का मुद्रा कभी कभी ऐसा बिचित्र होता है कि सामाजिक पैमाना से उसको लोग सरम अऊर लज्जा के कैटेगरी में रखते हैं.
रोज ऑफिस से निकलकर मेट्रो स्टेसन के सीढी पर यही देखाई देता है, अऊर आगे आती थी हाले दिल पे हँसी, अब किसी बात पर नहीं आती, वाले अंदाज में हम भी अब नोटिस नहीं करते हैं. लेकिन पिछला हफ्ता देखे कि दू चार ठो कॉलेजिया लड़का लड़की सीढी पर कुछ गंदा बच्चा से घिरा हुआ बैठा है. ताज्जुब इसलिए भी हुआ कि ऊ लोग अच्छा घर का बुझा रहा था, मगर गंदा बच्चा के बीच एकदम सहज भाव से बईठा था. हम दूर से देखने लगे.
देखे कि सारा बच्चा सब वहीं चौराहा पर हर आने जाने वाला गाड़ी का सीसा साफ करके पईसा मांगने वाला, फूल का माला, कलम पेंसिल, किताब पत्रिका बेचने वाला, फुटपाथ पर करतब देखाने वाला अऊर भीख मांगने वाला था. अब जिज्ञासा अऊर बढ़ गया. लेकिन सीढ़ी पर ऊ लोग अईसा घेरा बनाकर बईठा था कि घेरा के अंदर का हो रहा है हम देखिए नहीं पा रहे थे. सस्पेंस हमसे बर्दास्त नहीं होता है. हम घेरा के पास पहुँचकर देखने लगे. जो देखे ऊ बिस्वास के बाहर था.
कॉलेज का ऊ लड़का लड़की, झोला में छोटा क्लास का किताब अऊर बहुत सा कॉपी भरे हुए था. अऊर ऊ बच्चा सबको पढना लिखना सिखा रहा था. सब बच्चा थोड़ा देर के लिए, क्लास में बैठा हुआ था, वहीं सीढी पर. कॉपी को देखकर लग रहा था, ई क्लास बहुत दिन से चल रहा है. फटा पुराना कपड़ा पहने हुए ऊ बच्चा लोग ध्यान से लिख रहा था अऊर पाठ याद कर रहा था. एतना मन लगाकर त हम भी नहीं पढ़ाई किए कभी बचपन में. हम मोबाईल से फोटो खींचना चाहे अऊर बताए कि हम अपने ब्लॉग पर इस बारे में लिखना चाहते हैं, तो ऊ लोग मना कर दिया. हम भी उनका भावना का सम्मान किए अऊर फोटो नहीं खींचे.
एक बार फिर से ऊ कहावत याद आ गया कि किसी को एक रोज मछली का भोजन करवाने से अच्छा है कि उसको मछली पकड़ना सिखाओ. हमरे गाड़ी के आने का एनाउंसमेण्ट हो रहा था मगर हमको कोई जल्दी नहीं था. ऊ लड़का लड़की अपने काम में एतना डूबा हुआ था कि आस पास कौन है, क्या हो रहा है, कुछ देखाई नहीं दे रहा था उन लोग को. समाधि में था ऊ लोग या अंधा था चाहे अर्जुन के तरह हो गया था कि बस चिड़िया के आँख का पुतली छोड़कर कुछ नहीं नजर आ रहा था उन लोगों को.