शुक्रवार, 28 मई 2010

दुःख ने दुःख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार




आज हमरी एकलौती बेटी सुबहे से बहुत उदास है.
अभी पीछे जे हम पटना गए थे, त ऊ ऊहाँ हमरा बेटा (हमरा भाई का बेटा - हमरा संजुक्त परिवार में हम लोग भतीजा नहीं बोलते हैं) यानि अपना भाई से मिलकर बहुत खुस थी. बगले में हमरा भगिना अऊर भगिनी रहता है सब. एक जगह, एक साथ मिलकर सब बच्चा लोग बहुत खुस था.
एक दिन दोपहर में चारों बच्चा सब जोर से चिल्लाया त हम सब लोग डरा गए कि का हुआ. लेकिन तुरते समझ में आया कि ई एक्साइट्मेंट में चिल्लाया था सब. हुआ ई कि सब बईठ के एक साथे सिनेमा देख रहा था टीवी पर, त अचानके ऊपर से एगो गिलहरी का जलमाउत (नवजात) बच्चा ऊ लोग के बिछौना पर गिरा. पहिले त सब डरे चिल्लाया, फिर उसका माँ को खोजने इधर उधर गया. जऊन छज्जा से ऊ गिरा था ओहाँ चढकर देखने पर भी कोनो गिलहरी देखाई नहीं दिया.
जब उसका माँ नहीं मिला, त सब बच्चा ऊ गिलहरी का सेवा में लग गया. सबसे पहिले त उसका नाम धराया जेरी (टॉम जेरी वाला). एक बच्चा भाग के रूई का बंडल लेकर आया अऊर महादेवी जी के गिल्लू के जईसा उसको दूध पिलाने का इंतजाम करने लगा. दुसरा तुरत उसके लिए जूता के डिब्बा से उसका घर बनाया, अऊर उसको गर्मी से बचाने के लिए उसका घर में ठंडा हवा का इंतजाम कर दिया. तीसरा उसका बिछावन ले आया.
अभी बच्चा का आंखो नहीं खुला था. सारा दिन उसका सेवा हुआ. जेरी भी खूब आराम से सो गया. फैसला हुआ कि जेरी को हमरा भगिना अपने घर ले जाएगा, अऊर तय हुआ कि रोज हमरे घर ऊ उसको लेकर आएगा, अऊर सब लोग बारी बारी से उसका सेवा करेंगे.
पहिला दिन बीत गया, दोसरा तीसरा दिन से हमरी बेटी उसका फोटो खींचने अऊर विडियो बनाने में लग गई. काहे कि बेचारी को तो वापस चले आना था. ऊ सोच ली थी कि जेरी को हर तरह से कैमेरा में बंद करके लेते आएगी. आने वाला दिन जेरी भी सबके साथ हम लोग को इस्टेसन पर सी ऑफ करने आया.
यहाँ आकर भी रोज फोन से उसका हाल चाल पूछना अऊर हमको बताना कि आज उसका आँख खुल गया. अब ऊ अपने से दूध पी लेता है.
आज सुबह सुबह फोन आया हमरा बेटा का पटना से कि जेरी चल बसा, अचानक। कल रात ठीक ठाक था, सबेरे सब खतम. उधर हमरा बेटा पटना में उदास है, इधर हमरी बेटी दिल्ली में. निदा फाज़ली साहब के दोहा के हिसाब से ‘दुःख ने दुःख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार’।

16 टिप्‍पणियां:

  1. जब आप किसी को बहुत चाहने लगते हो तो अक्सर वह एसे ही साथ छोड़ देता है ....... यही जीवन की कडवी सच्चाई है |
    बिटिया के कोमल मन को और ठेस ना लगे इस लिए हो सके तो उसका ध्यान कहीं और लगवाये ! मैंने भी यह दुःख झेला है अपनी पालतू कुतिया के एक दिन एसे ही चले जाने पर| मेरा पहला बच्चा थी वह !

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  2. अक्सर हमारे जीवन में ऐसा ही होता है जिसे हम सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं वो हमें छोड़कर चले जाते हैं! आपने बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! बहुत ही मार्मिक पोस्ट!

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  3. @ शिवम, बबलीः
    बहुत सा बात में ई जानवर लोग इंसान से बेहतर होता है... सब्से बड़ा गुन है प्यार, निःस्वार्थ प्यार!!

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  4. विडियो तो दिखाओ जेरी का बिहारी बाबू..और फोटू भी..हो तो तुम भले आदमी..ई बात तो हम पहले भी कह चुके हैं. कै बार कहलवाओगे?? :)

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  5. ओह, आखिरी पैरा छूट गया..जेरी चल बसा...चलो, एक योनि कटी..ईश्वर उसकी आत्मा को शांति प्रदान करे. आपसे उसकी मुलाकात बदी थी, सो हो गई.

    कहो, हम भी इस जनम न मिल पायें तो आगे कभी ऐसे ही छिपकली वगैरह बन कर टपकें लेकिन मिलेंगे जरुर!!

    जैरी के लिए सदगति की प्रार्थना!!

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  6. हम तो आपके कमेन्ट से ही सहमत हैं / और एगो बात की बहुत अच्छा सोच है ,आपका ओकरे बिना ऐसा नहीं लिखा जा सकता है /

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  7. दुःख यहाँ तक हम महसूस कर रहे हैं. (बचपन में ठीक ऐसा ही दुःख हम भाई बहन भी झेले हैं)
    बिटिया और बेटा बचुवन सब के लिए नयी ख़ुशी की कामना करते हैं.

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  8. ham sab ka bachpan me aisi parithitiyon se saakshaatkaar huaa hai .bachpan laut aayaa .mubaark .
    veerubhai1947.blogspot.com

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  9. ऐसा ही एक बार मेरे साथ हुआ जब कही से एक चिड़िया का बच्चा मिला था पूरे दिन उसकी सेवा कि लेकिन वो अगले ही दिन हमारा साथ छोड़ गया .........
    जब आपकी कहानी पदनी शुरू कि तो अच्छा लगा लेकिन क्लाइमेक्स पद कर बहुत बुरा लगा .............

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  10. badi khubsruati se aapne satya kathe ko kahani ka roop diya hai.........bahut achchhi rachna......bhai..:)

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  11. बच्चे मन के सच्चे. मेरे घर पे भी काफी जानवर थे, गाय, कुत्ता, तोता, खरगोश और मछली. एक भी मछली मर जाती थी तो बहुत रोते थे हमलोग. :(

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  12. कभी-कभी जानवर इंसान से बेहतर होता है...

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  13. aapkee tipanneeya hee padee thee aaj aapke blog par aakar bahut achha laga............
    sach kaha aapne dukh kee dukh se baat.........
    rahat bhee dukh ko dukh se hee milatee hai........
    sukh to dukh ka makhoul udata hee lagata hai.

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  14. जब हम गिल्लू पढ़े थे तो कितना रोये थे का बताएं... :-( बच्चा था ऊ समय न, आंसू भर्र से गिर जाता था...

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  15. अरे वाह यह तो बिल्कुल वैसा ही प्रसंग है जैसा मैंने लिखा . बस इसका अन्त दुखद है .

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