अगर कोनो आदमी, बिना दिन तारीख बताए हुए किसी का घर में चला आवे, त उसको अतिथि कहते हैं. ओइसहीं अगर कोनो अईसन घटना घट जाए जिसका उम्मीद नहीं हो त उसको संजोग कहते हैं. एगो अउर परिभासा है संजोग का जो हमरे घर में बहुत परचलित है. हमलोग संजोग को “सिनेमा जईसा घटना” बोलते हैं. जइसे सनीचर को अचानक हमरा चंडीगढ़ जाने का प्रोगराम बन गया अउर जब हम चैतन्य बाबू के सामने खडा हुए, तो सिनेमा का घटना का जईसा लगा उनको अउर ऊ एकदम अबाक रह गए अउर हमसे हाथो नहीं मिला सके. तनी हमरा पुराना पोस्ट पर नजर दौड़ाइयेगा त याद आ जाएगा कि अनुराग जी से हमरा मुलाक़ात भी एकदम सिनेमा का घटना जईसा हुआ था.
असल में तीन घंटा के भीतर का मालूम केतना साल का खिस्सा देखा देता है सिनेमा में. कभी कभी त पिछला जनम तक का कहानी उसमें रहता है. अब सब बात तीन घंटा में देखाने के कारन, घटना एतना तेजी से घटता है कि बिस्वास नहीं होता है कि जिन्नगी कहीं इतना तेजी से चलता है. एही से सिनेमा का घटना सब संजोग लगता है. एगो रईस बिजनेसमैन, अचानक सड़क पर आ गया, घर नीलाम हो गया, दोस्त धोखा दे गया, बाल-बच्चा नालायक निकल गया अउर ऊ बेचारा दाना-दाना के लिए मोहताज हो गया. संजोग से एगो दोस्त भेटा गया, जो उसको नौकरी दिया अउर मेहनत से सिनेमा के अंत में ऊ फिर से आलीशान कोठी का मालिक. जइसे उनका दिन बहुरा, भगवान सात घर दुसमन का दिन भी बहुराए.
ब्लॉग के दुनिया में एतना फास्ट घटना क्षमा जी के “बिखरे सितारे” पर घटता है. अपना सामाजिक जीबन में, बहुत सा महिला लोग से उनका मुलाक़ात हुआ, बहुत सा बात उनको पता चला, बहुतों का जीबन सुधारने के लिए ऊ कोसिस कीं. अउर उनसे हमलोग का भी परिचय करवाईं. ऊ महिला लोग के जीबन का उथल पुथल देखकर मन बहुत दुखी हो जाता था. उनके पोस्ट पर केतना बार हम कमेन्ट किये कि “ये सारी घटनाएँ, फिल्मी घटनाओं सी लगती हैं. ऐसा लगता है कि सारी दुनिया उस किरदार की दुश्मन बनी बैठी है और सारे दुःख, तकलीफें सिर्फ उसी का इंतज़ार कर रही हैं. आप एक अच्छी पटकथा लिख सकती हैं.” उनके साथ बतियाने में भी ई बात हम उनको बताए कि आपके चरित्र को क्या एक भी अच्छा आदमी नहीं मिलता या एक बार धोखा खाने पर वो कैसे विश्वास कर सकती है दूसरे धोखेबाज़ पर? लेकिन उनका जवाब एक ही होता, “तुम्हारे कहने से मैं उन घटनाओं को नहीं बदल सकती, जो उन महिलाओं के साथ हुई हैं. तुम्हें ये बातें फ़िल्मी भले लगती हों, लेकिन जिनपर बीती हैं, मैं उनकी साक्षी रही हूँ” कभी न उनके बात का हम बुरा माने, न ऊ हमारे बात का बुरा मानीं.
ओशो कहते हैं कि चारों ओर हमारी ही फेंकी हुई ध्वनियाँ प्रतिध्वनित होकर हमें मिल जाती हैं. थोड़ी देर अवश्य लगती है. ध्वनि टकराती है बाहर की दिशाओं से और लौट आती है. जब टक लौटती है तब तक हमें ख्याल भी नहीं रहता कि हमने जो ध्वनियाँ फेंकी थी, वही वापस लौट रही हैं.
क्षमा जी से कहा हुआ बात इतना जल्दी वापस आ जाएगा कभी सोचे नहीं थे. पीछे एक डेढ़ महीना में आठ साल पुराना लैपटॉप परेसान करने लगा. बनवाए तो एकदम फस्ट क्लास हो गया. मगर एक हफ्ता के बाद दम तोड़ गया बेचारा. सरीर का कोनों अईसा अंग खराब हुआ कि कोइ डोनर नहीं मिला. ईस्वर उसका आत्मा को सांति दे. हमारे दाहिना हाथ का दर्द एतना बढ़ गया कि बर्दास्त करना मोस्किल हो गया. बीमारी सचिन तेंदुलकर वाला अउर कारण ओही लैपटॉप. पता नहीं उसके बीमारी का कारण हम थे कि हमरा बीमारी का कारण ऊ. अभी इसी में ओझराए थे कि एडी का दर्द के चलते, गोड जमीन में धरना दुस्वार. ऑफिस, घर, परिबार सब तरफ से पेंडिंग, सब परेशानी अपना हिसाब मांगने चला आया. इनकम टैक्स बिभाग भी नोटिस भेज दिया कि हम अपना एतना इनकम छुपाए हैं, जेतना ई मामूली तनखाह पाने वाला आदमी का तीन महीना का तनखाह होता है. त हम जो बारह महीना का टैक्स दिए ऊ साल साल में कहीं १५ महीना तो नहीं था!! का मालूम होइयो सकता है.
अंत में हमको मिली क्षमा जी के कहानी वाली औरत. हमरे फ़्लैट के ऊपर रहती थी. एतवार को हमरी बेटी खेलने के लिए निकली, अउर तुरत लौट कर बोली, “डैडी!! ऊपर एक आंटी ने फांसी लगा ली है!” उसको घर में रुकने को बोलकर हम भागकर ऊपर गए. देखे कि हॉल में घर का मालिक (अफ़सोस ऊ हमरे संस्थान में काम करता है) सराब के नसा में धुत्त आराम से बईठा हुआ है. हम अंदर जाकर देखे तो कमरा बंद, अऊर जब दरार से आँख लगाकर देखे त हमरा देह ठंडा हो गया. पंखा से ऊ औरत झूल रही थी. सफाई करने वाला आदमी को जब पता चला त चिल्लाकर भागा था अउर हमरी बेटी सुनी. सोसाइटी के पदाधिकारी होने के नाते अउर सामाजिक होने के नाते पुलिस, पोस्टमार्टम का इंतजाम किये. ऊ आदमी को कोइ होस नहीं. बयान तक नहीं दे पाया पुलिस के सामने. आधा रात के बाद जब आंध्र परदेस से उसकी बेटी आ गयी, तब हम घर लौटे.
ओह!! पोस्ट कितने सुखद नोट पर शुरू हुई और कहाँ जाकर ख़त्म हुई...
जवाब देंहटाएंमुझे तो ज्यादा चिंता आपकी बिटिया की लग रही है...जिसे इतनी सी छोटी उम्र में इस तरह की घटनाओं की खबर से दो-चार होना पड़ा.
इन सबसे महानगरों में रहनेवाले बच्चों को रु-ब-रु होना ही पड़ता है.
कहानी का तो क्या है...वास्तविक घटनाएं ऐसी होती हैं...कि उन्हें अगर सीधा कहानी में डाल दिया जाए तो लोग विश्वास ना करें...जैसा आप नहीं कर पाते.
आपकी अस्वस्थता के बारे में जान कर दुख हुआ। जल्द से आपके दर्द ठीक हो यही ईश्वर से कामना है।
जवाब देंहटाएंलैपटॉप की समस्या से भे जल्द छुटकारा मिले ..!
बड़ी ही दुखद घटना से दो-चार होना पड़ा। आज का जीवन संत्रास का जीवन हो गया है, खासकर महानगरीय जीवन। ऐसे में मानसिक रूप से काफ़ी मज़बूत होना पड़ता है।
बचिया के मन पर कोई असर न हो इसका ख्याल रखिएगा।
बताते तो हम भी चलते चैतन्य बाबू से मिलने...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें सलिल !
बात चैतन्य जी ससे मिलने से शुरू हो कर बहुत दुखद घटना पर खत्म हुई ...मार्मिक चित्रण
जवाब देंहटाएंअपना ख़याल रखिये ..
Mai bhee bachpan me samajhtee thee ki,zindagee to ek seedhee sapaat raah hai! Is me kaunse utar chadhav? Aur jab zindagee se ru-b-ru huee to pata chala ki,ye kya cheez kya bala hai!
जवाब देंहटाएंBitiya traumatise huee hogee zaroor! Is baat par se ek aur hadsa yaad aayaa...uske bareme phir kabhee.
यह तो बडी दुखद बात हो गयी! कितनी निराशा घेरे होती होगी जब इंसान मौत को चुनता है, जीवन से कम तकलीफदेह मानकर।
जवाब देंहटाएंबेशक दुखद है ये सब, लेकिन उसके पति का भी कुछ तो पक्ष रहा ही होगा। कहते हैं कि जो मर गया, वो तो छूट गया लेकिन जो रह गया उसे बाकी सबके साथ यह अपराधबोध, लोगों की भर्त्सनायें, कानूनी कार्रवाई आदि बहुत कुछ झेलना होगा। विवाह संस्था का विरोधी नहीं हूँ, लेकिन हमारे समाज में अभी भी काफ़ी हद तक शादी को 'a point of no return' माना जाता है, ये भी ऐसी घटनाओं का एक बड़ा कारण हो सकता है।
जवाब देंहटाएंनिन्दगी से बड़ी फ़िल्मी कहानी और क्या हो सकती है?
फ़िल्में और कहानियों के पात्र हमारे आसपास की जिंदगियों के ही होते हैं , थोड़ी फेर बदल के साथ ...
जवाब देंहटाएंबेटी के लिए वह दृश्य भूलना इतना आसान नहीं होगा ...
स्वास्थ्य का ख्याल रखिये ...
aap kaise hai? chaitny kaise hai ? school ka masla sulajh gaya kya.....
जवाब देंहटाएंjiskee charcha Chaitnya ne kee thee .
apna dhyan rakho..... kiseee acche arthopaedic Dr ko dikhao . do take care
aur ha ye filmy kahanee to ekdam nahee ANKAHEE DARDE DASTAN HAI .
जवाब देंहटाएंदुखद, जीवन सिनेमा नहीं है।
जवाब देंहटाएंJab tak samana n ho tab tak sab filmi lagata hai ......aapki mujhse mulakat (abhi hui nahi hai )bhi ek badhiya film ka hissa hogi........aur ye ghatan bahut dukhad hai Jhooma ka dhyan rakhiyega...aur apana bhi...
जवाब देंहटाएंअक्सर अच्छी पेंटिंग को तस्वीर जैसी और अच्छे फोटोग्राफ को एकदम पेंटिंग की तरह, कहकर तारीफ की जाती है. ऐसा ही कुछ है जिंदगी का सिनेमा, बस इसमें रील दुबारा लपेटी नहीं जाती, दि एंड यानि वह समाप्त, अगर हुआ तो दूसरा सिनेमा शुरू होगा.
जवाब देंहटाएंbade bhaiya sachche me aap to pura vyakhyan ko aise pesh kiye ki filme lag raha tha...ek dum jaldi jaldi sab badalte chala ja raha tha..anyway ...apka post hai to hit hai....aap likhwe karte hain aitna shandaar...:)
जवाब देंहटाएंईश्वर करे आपका दर्द जल्द ठीक हो जाय !जिंदगी में भी घटनाएँ सिनेमा की ही तरह घटती रहती हैं, बस सिनेमा में झूठ होता है और ज़िन्दगी में सच !
जवाब देंहटाएंक्या कहे ... आप बस अपना और बिटिया का ख्याल रखें ... !
जवाब देंहटाएंज़िंदगी की घटनाएं कभी-कभी सिनेमा से भी ज्यादा नाटकीय लगने लगती हैं।
जवाब देंहटाएंआमतौर पर लोग मौत से भयभीत रहते हैं लेकिन कुछ लोगों के लिए मौत ही उद्धारक नजर आती है - उस क्षण कैसी मनोदशा रहती होगी उनकी - कल्पना से परे है।
आपकी यह प्रस्तुति एक दर्दनाक घटना की याद दिला गई....
यह वास्त्विकताएं भी दुखद है। अति-भावुकता या मनोबल की कमजोरी कहें, आत्महत्या कायरता भी है और पाप भी!! पर क्या कहे… संसार में सभी मानसिकताएँ विध्यमान है।
जवाब देंहटाएंसलिल जी
जवाब देंहटाएंइन दुखी महिलाओ के जीवन को सिनेमा से मत जोडीये क्योकि उसमे अंत में सब अच्छा हो जाता है जबकि वास्तविक जीवन में पचास सालो बाद भी कुछ अच्छा नहीं होता हालत कई बार ये होते है की मरने के बाद भी शारीर का छीछालेदर हो जाता है | उनका जीना ज्यादा हिम्मत का काम होता है मर जाना ही सबसे आसन होता है और एक बात और बताऊ के जिन की वजह से महिलाए आत्महत्या करती है उनमे से ज्यादातर को बाद में कोई ग्लानी या अपराधबोध नहीं होता है यदि उनकी स्वभाव इस तरह का होता तो किसी महिला को आत्महत्या करने की जरुरत ही नहीं होती वो तो बाद में भी ये बताते है की महिला तो मानसिक रोगी थी उसका तो काफी समय से इलाज चल रहा था वो तो मै था जो इतने दिनों से उसके साथ रह कर उसे झेल रहा था | अपने आस पास कइयो को देखा है ६ महीने बाद ही दूसरा विवाह करते जिसमे से कई ने तो बेटी भी ब्याह दी थी |
आप को जल्द स्वस्थ होने के लिए शुभकामनाये और नये लैप टॉप की बधाई |
ओह.....
जवाब देंहटाएंकहाँ कहाँ से गुजर गया ....
जवाब देंहटाएंकहानियां भी यथार्थ की भूमि में ही जन्म लेती हैं शायद.
पर अंत की घटना बहुत दुखद थी.बेटी का ख्याल रखिये उसके मस्तिष्क पर गहरा असर पढ़ा हो सकता है इस घटना का.
कहां से आदि हुआ और कहां जाकर अंत.....
जवाब देंहटाएंdukhant.......
जवाब देंहटाएंpranam.
बहुत ही दुखद.... और कुछ नहीं कह सकता...
जवाब देंहटाएंहमारे आसपास की जिन्दगिया ही तो कहानी बनाती है |
जवाब देंहटाएंबिटिया का ध्यान रखियेगा |
ओह!
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद!
पूरी ईमानदारी से अपने अपनी बात कही है। इसके लिए बधाई। अब बिटिया कैसी है।
जवाब देंहटाएंमैं इस ब्लॉग को फालो कर रहा हूं। अगर आप चाहे तो ऐसा ही कर सकते हैं।
अब का कहें...कुछ कहने लायक कभी छोड़ें हैं आप? हमेशा आँखों में नीर भर जाते हैं...
जवाब देंहटाएंनीरज
जिन्दगी एक लम्बी कहानी है,जिसमें बहुत सी कहानियाँ जुड़ी होती हैं...कुछ सुखद और कुछ दुखद। इस कहानी का अंत दुखद था...सुखांत कहानी का इंतजार रहेगा। हमेशा की तरह जिन्दगी के आस-पास से ली गई एक संवेनात्मक अनुभूति...
जवाब देंहटाएंइस एक ही दुखद घटना ने आपको विचलित कर दिया और वेदना को सशक्त रूप से व्यक्त भी कर दिया । कुछ नीचे उतर कर देखें तो ऐसी दुखद घटनाएं यहाँ वहाँ मिलती रहतीं हैं । और सचमुच वे इसी तरह फिल्मी नहीं होती । क्योंकि फिल्मों में कोई करुण कथा रस मानी जाती है ।जबकि वास्तविक रूप में ये घटनाएं अन्तर को चीत्कार से भर देतीं हैं । एक लेखक जब नीचे उतरता है तो अपनी करुणा व पीडा को दूसरों के लिये इसी तरह रस बना कर प्रस्तुत करता है । रचना सदा की तरह प्रभाव छोड रही है ।
जवाब देंहटाएंआह ...... स्वेदननाएँ मर गई है... आंसू सूख गए है..
जवाब देंहटाएंसलिल भाई,
जवाब देंहटाएंजीवन सिनेमा ही तो है.
आप जीवन को किस नज़र से देखते हैं ,यह माईने रखता है.
सिनेमा देखते रहीये,पर director को याद रखिये.
गीता का सन्देश भी यही है कि द्रष्टा बन जाईये.
आप के जल्द स्वस्थ होने की कामना करता हूँ.
ओहो...
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आपके पोस्ट को प्रिडिक्ट करना मुश्किल होता है.... मन भर आया है....
जवाब देंहटाएंकामना है कि आप शीघ्र स्वस्थ्य हो...
वाकई चिन्ताजनक जीवन से युँ मुख मोड़ लेना...मार्मिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंdukhbhari baaten man ko bojhil kar gayeen.....aap swasth rahen yahi kamna hai....
जवाब देंहटाएंफिल्में-कहानियाँ सब कहीं न कहीं से तो उपजती ही हैं।
जवाब देंहटाएंकहूँ क्या, मौन हूँ।
संजय जी से सहमत।
अरे सलिल भाई, जल्दी से ठीक हो जाइए । साखी फिर से जमने लगी है। आप वहां आएंगे तभी उसमें जान आएगी।
जवाब देंहटाएं*
जो आपने देखा वही तो जीवन है। जब हमारे सामने घटता है तब ही हम यकीन कर पाते हैं। अन्यथा तो जो कहीं और घट रहा होता है वह हमारे लिए कहानी किस्सा ही होता है न।
अक्सर ऐसा होता है कि आप बीती को चाहे जितने भी अच्छे ढंग से लिखा जाय लोग कहानी की तरह ही पढ़ते हैं। भोग कर महसूस करना और पढ़कर महसूस करना दोनो में बहुत फर्क है।
जवाब देंहटाएंआप का दर्द जल्दी से ठीक हो..।
kahani ka ant marmik raha lekin filmi nahi lagti
जवाब देंहटाएंमार्मिक कथा!!
जवाब देंहटाएंएक अल्कोहोलिक के साथ जीना सिर्फ कहने भर का जीना है, सिर्फ दिखने भर का साथ है... तिल-तिल कर मरने से ज्यादा आसान लगता है एक बार का मरना. नतीजा ...दि ग्रेट एस्केप.
जवाब देंहटाएंएक बेहद मर्मान्तक दास्तान!!
बहुत ही दुखद और मार्मिक प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंदुख की बात है ... आशा है अब आपकी तबीयत ठीक होगी ...
जवाब देंहटाएंनिराशा सी होती है जब ऐसे प्रसंद अपने आस पास ही नज़र आते हैं ....
इ दुनिया एगो रंगमंच और हम सब नौटंकी वाले.
जवाब देंहटाएंपर्दा एक दिन गिरबे करी.
लेकिन पर्दा गिरले के पहिले तक सबके इ नौटंकी के पात्र निभायेक बा.
ईश्वर से प्रार्थना बा की आपके तबियत जल्दी थीक हो.
जल्द स्वस्थ होने के लिए शुभकामनाये और नये लैप टॉप की बधाई |
जवाब देंहटाएंहमारे जीवन में रोज कितनी ही कहानियाँ होती है जो सिनेमा की कहानियाँ नहीं होती है | कुछ अच्छी , कुछ बुरी |
जवाब देंहटाएंये तेरे मेरे दुःख ,
ये छोटी मोटी खुशियाँ ,
यही कहानी होती है ,
बच्चन जी की फिल्मों में ,
चल न मिलकर फिल्म बनाये || :)
सादर