ई हमारा पहिला कबित्त है, जो हम 'संवेदना के स्वर' पर आज से दू साल पहिले पर्कासित किये थे... आज इहाँ दोहरा रहे हैं... होली के सुबह कामना के साथ:
देश पर भ्रष्ट नेताओं का है काला रंग, आतंक की आग में ये देश देखो जरता है.
रंग सतरंगी, इन्द्रधनुष सरीखे थे कल, आज भगवा तो हरा शोर कोई करता है.
महंगाई ने जो तोड़ रखी है कमर सब की, जनता का पेट आधा चौथाई ही भरता है.
गोरी की कलाई सूनी, चूड़ियाँ नहीं हैं सजी, श्याम भी सहम के कलाई आज धरता है.
फटी हुयी चूनर से झांकता यौवन और रीत गयी गागर से जल भूमि परता है.
माल तो समाप्त हुआ, पूआ बेसवाद हुआ, बालूशाही में से बालू-सा-ही कुछ झरता है
होलिका दहन प्रतिदिन हो रहा है आज, जीवन की चिता में मनुज नित जरता है.
हम तो बुढाय गए,बाल पकियाय गए,देखि-देखि कामिनिन को
जवाब देंहटाएंफगवा-मन मचलता है !
आपको सपरिवार होली की शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएंहोली पर बिसरा रहा सब संसकिरती परंपरा, एक चुटकी गुलाल आपके चरणों में रख, आशीष लेने का मन करता है ... बढ़िया कवित्त... गाके पढने में और आननद आया.... होली की हार्दिक शुभकामना
जवाब देंहटाएंबढ़िया ||
जवाब देंहटाएंहोली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।
लाल रंग गालों पे, काला रंग बालों पे
जवाब देंहटाएंगुलाबी रंग सपने हों, श्वेत रंग मन हो
होली में आपका कवित्त पढ़ सलिल भैया
अपना मन भी काहे ना मगन हो।
होली का त्यौहार जो आया, रंग अनोखे सामने लाया
जवाब देंहटाएंपता चला हमको कि चला बिहारी भी कविता करता है
*
होली की शुभकामनाएं
होली पर संवेदना के स्वर से पुनर्प्रकाशित यह कवित्त संवेदनाओं को पुनर्जीवित कर रहा है...होलिका दहन तो हर वर्ष होता है...पर जीवन की चिता(चिंता) में मनुष्य रोज ही जल रहा है...सामयिक प्रस्तुति!!!
जवाब देंहटाएंसच्चाई को कहती सटीक और सार्थक रचना ....
जवाब देंहटाएंफिर भी ..... होली की शुभकामनायें
कमाल है बड़े भाई, कमाल है!
जवाब देंहटाएंई कबितई में बहुत कुछ झर-झर-झरता है
सचाई का सच सामने लाकर आपने एक ऐसी कविता पेश कर दी है जिसे पढ़कर मन हंसता और दिल क्रंदन करता है।
रंगों की बौछारों से न ,डरिये तनिक भी
जवाब देंहटाएंकरते हैं रंग ही ,जीवन का श्रंगार हैं ।
माना कि आतंक का है रंग काला जहाँ-तहाँ
छाई मँहगाई और फैला भ्रष्टाचार है
फिर भी जिजीविषा है आशा और विश्वास भी है
क्योंकि शेष अब भी ईमान और प्यार है ।
आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभ-कामनाएं
सार्थक प्रस्तुति,बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति....बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसलिल जी,....सपरिवार होली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...
RECENT POST...काव्यान्जलि ...रंग रंगीली होली आई,
सच्चाई यही है ..फिर भी हैप्पी होली है.
जवाब देंहटाएंईश्वर आपके अंतस में उल्लास के रंग और जीवन में अनंत मुस्कराहटों के अवसर भर दे ! रंग पर्व पर मेरी शुभकामनायें स्वीकारने की कृपा करें !
जवाब देंहटाएंअली
नित अन्याय हो रहा है, होलिका नित प्रह्लाद को लेकर बैठ रही है
जवाब देंहटाएंदिल्ली न सही, पटना में ही आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को होली के पावन पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंकवित्त में एक संवेदनशील देशहित चिन्तक की अभिव्यक्ति अच्छी लगी।
Ekdam Perfect!!!!!!
जवाब देंहटाएंहोली,धुरेड़ी की आपको हार्दिक-शुभकामनाएं...खुशियों रंगों भरी होली...
जवाब देंहटाएंगोरी की कलाई सूनी, चूड़ियाँ नहीं हैं सजी, श्याम भी सहम के कलाई आज धरता है.
जवाब देंहटाएंफटी हुयी चूनर से झांकता यौवन और रीत गयी गागर से जल भूमि परता है.
माल तो समाप्त हुआ, पूआ बेसवाद हुआ, बालूशाही में से बालू-सा-ही कुछ झरता है
होलिका दहन प्रतिदिन हो रहा है आज, जीवन की चिता में मनुज नित जरता है... अभिलाषाओं की अथक यात्रा में , पल भर में सबकुछ पा लेने की ख्वाहिश में स्वार्थ प्रबल है, ' मैं ' प्रबल है - फिर स्वाद कहाँ ! मासूमियत के रंग नहीं , संस्कारों की खुशबू नहीं .... इतना बनावटी है सबकुछ कि लगता है ' सुबह होती ही नहीं , न शाम न रात !'
पर कुछ भी हो जाए - स्नेहिल रंगों की शुभकामनायें
पर्व की सुन्दरता के बावजूद आज का विरोधाभास ही प्रभावी हो रहा है, मंगलकामनायें!
जवाब देंहटाएंहोली की कविता में आपके भीतर की दहक महसूसी जा सकती है। आपको और इष्ट-मित्रों को होली की बहुत बहुत शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंपहले स्वर संवेदना के.....
जवाब देंहटाएंपहली ये कविता है.....
जाने क्यूँ ऐसा नहीं लगता है.........
बेहतरीन..........
आपकी होली शुभ हो सलिल जी.
होली आप को सपरिवार मंगलमय एवं समृद्धिदायक हो।
जवाब देंहटाएंयह होली आशा जगाने वाली है,
जवाब देंहटाएंनकली रंग उतर रहे हैं,
नकली मुखौटे पहचाने जा रहे हैं
होलिका माई के षणयंत्र बेनकाब होकर रहेंगे
असली होलिका दहन भी होकर रहेगा
सभी मित्रों को होली की शुभकामनायें !
गोरी की कलाई सूनी, चूड़ियाँ नहीं हैं सजी, श्याम भी सहम के कलाई आज धरता है.
जवाब देंहटाएंफटी हुयी चूनर से झांकता यौवन और रीत गयी गागर से जल भूमि परता है.
माल तो समाप्त हुआ, पूआ बेसवाद हुआ, बालूशाही में से बालू-सा-ही कुछ झरता है
होलिका दहन प्रतिदिन हो रहा है आज, जीवन की चिता में मनुज नित जरता है.
वाह! मौजूदा हालात का सटीक चित्रण किया है आपने !
आपको सपरिवार होली की ढेरों शुभकामनाएँ !
शुभ होली.
जवाब देंहटाएंवर्तमान परिस्थितियों का सुंदर काव्यमय वर्णन।
जवाब देंहटाएंआपकी गद्य रचनाओं की तरह प्रस्तुत पद्य के अंत में भी जीवन-सूत्र छुपा हुआ है।
होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
Happy holi .
जवाब देंहटाएंsach se sakshatkar hai ye.
laajawab abhivykti.
आपको होली की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंवाह वाह! बहुत बढ़िया लगा आपका कबित्त
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति..होली की शुभकामनायें..मेरे ब्लॉग filmihai.blogspot.com पर स्वागत है...
जवाब देंहटाएंआज को उकेरती प्रभावी रचना सर...
जवाब देंहटाएंहोली की सादर बधाईयां...
पर्व के उत्साह को महंगाई के छींटे फीके तो करते हैं ...मगर लड्डू मन के तो थोड़े क्यों ...ज्यादा है तो फीके क्यों !
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनायें !
ekdam samayik aur behad prabhawshali .....
जवाब देंहटाएंफ़िर से देर हो गई, लेकिन आपके कवित्त में जो बाते हैं वो हमेशा से सिस्टम में मौजूद हैं तो फ़िर देर भी कैसी? बुराई और अच्छाई की जंग हमेशा चलने वाली है और ’शुभ होली’ होकर रहेगी।
जवाब देंहटाएंअवसाद की आग में रंग सब धूमिल हुए
जवाब देंहटाएंविपदा की मांग में सिन्दुर कहां सजता है
रोटी की जुगत में काया रहे तरबतर
बेरंग पसीने पर रंग कहां चढ़ता है
जीवन की चिता में मनुज नित जरता है.
जवाब देंहटाएंकितना सटीक और सच है यह!
सुन्दर कबित्त!
सादर!
वाह ... सटीक टिपण्णी है आज के समाजिक परिवेश पे .... होली ही नहीं लगभग हर त्यौहार ऐसा ही है आज के युग में ...
जवाब देंहटाएंपर फिर भी जीवन की रीत तो निभानी ही होती है ...
आपको और परिवार में सभी को होली की मंगल कामनाएं ...
हम हालातों से समझौता कर खुश रहना सीख चुके हैं...जो न सीखा वो अनाड़ी!
जवाब देंहटाएंसार्थकता लिए हुए मन को छूते भावों के साथ उत्कृष्ट लेखन ...आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सच्ची बात कहे आप..... आज के दौर में और भी धारदार लग रही है. सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंमेरे पास शब्द नहीं है भाई जी..एक भी शब्द नहीं...
जवाब देंहटाएंकहाँ किसकी नजर जाती है इधर...सब तो मस्त हैं, हुडदंग के बीच वो दीखते कहाँ हैं, जिनके बालूशाही से बालू झरता हो..जिनको बालूशाही क्या सूखी रोटी भी मयस्सर नहीं..आतंक के काले रंग में डूबा देश...व्यभिचारी सत्तासीन ....
आजतक होली पर जिनी भी रचनाएं पढ़ीं, कोई इसके बराबर का नहीं...
साधुवाद भाई जी साधुवाद...
बड़ा चकाचक है जी कवित्त! :)
जवाब देंहटाएंहोली पर घर (ग्वालियर) चला गया था... आभासी दुनिया से भी दूर हो गया था... इसलिए बिलम्ब से आपकी पहली कविता का आनंद ले रहा हूँ... होली की शुभकामनाएं.....
जवाब देंहटाएंकुछ बातों के लिए कभी देर नहीं होती
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कबित्त बा , का करी आजकल देश का हालात जौन है की तौन बहुत हे ख़राब हो गइल.
जवाब देंहटाएंहोली माँ भी उ मजा नहीं मिलेला .
अद्भुत!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन ,......
जवाब देंहटाएंMY RESENT POST... फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....
वाह...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई...
समाजवादी होली .. :)
जवाब देंहटाएंसादर