आज “सम्वेदना के स्वर” का कुछ पुरनका पोस्ट सब
पढ रहे थे, तब अचानक नजर पड़ा हमारे अभिन्न चैतन्य आलोक जी के कबिता पर.
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिबस पर जब 2011 में ई कबिता अपने ब्लॉग पर पर्कासित किए, त रचना जी इसको अपने ब्लॉग पर सेयर कीं. कोनो महिला बिसय पर लिखा जाना अऊर
उसको रचना जी के द्वारा सेयर किया जाना, अपने आप में एगो बहुत बड़ा उपलब्धि है.
आज ई कबिता पढते हुए, फिर से आँख भीज
गया. लगा आज इसको हम भी सेयर कर लेते हैं.
वो मेरी तुमसे पहली पहचान
थी
जब मैं जन्मा भी न था
मैं गर्भ में था तुम्हारे
और तुम सहेजे थीं मुझे.
फिर मृत्यु सी पीड़ा सहकर भी
जन्म दिया तुमने मुझे
सासें दीं, दूध दिया, रक्त दिया तुमने मुझे.
और जैसे तुम्हारे नेह की
पतवार
लहर लहर ले आयी जीवन में
तुम्हारी उंगली को छूकर
तुमसे भी ऊँचा होकर
एक दिन अचानक
तुमसे अलग हो गया मैं.
और जिस तरह नदी पार हो जाने
पर
नाव साथ नहीं चलती
मुझे भी तुम्हारा साथ अच्छा
नहीं लगता था
तुम्हारे साथ मैं खुद को
दुनिया को बच्चा दिखता था.
बचपन के साथ तुम्हें भी
खत्म समझ लिया मैने
और तब तुम मेरे साथ बराबर
की होकर आयीं थीं..
बादलों पर चलते
ख्याब हसीं बुनते
हम कितना बतियाते थे चोरी
के उन लम्हों में
दुनिया भर की बातें कर जाते
थे
मै तुम पर कविता लिखता था
खुद को “पुरूरवा”
तुम्हें “उर्वशी” कहता था.
और जैसा अक्सर होता है
फिर एक रोज़
तुम्हारे “पुरूरवा” को भी ज्ञान प्राप्त हो गया
वो “उर्वशी” का नहीं लक्ष्मी का दास हो
गया
तुम फिर आयीं मेरे जीवन में
मैने फिर तुम्हारा साथ पाया
वह तुम्हारा समर्पण ही था
जिसने चारदीवारी को घर बना
दिया
पर व्यवहार कुशल मैं
सब जान कर भी खामोश रह गया
और उन्मादी रातों में
तुम जब नज़दीक होती
यह “पुरूरवा”, “वात्सायन” बन जाता
खेलता तुम्हारे शरीर से और
रह जाता था अछूत
तुम्हारी कोरी भावनाऑ से
सोचता हूं ?
इस पूरी यात्रा में
तुम्हें क्या मिला
क्या मिला
एक लाल
और फिर यही सब .....
और जब तुमने लाली को जना था
तो क्यों रोयीं थीं तुम
क्यों रोयीं थीं???
- चैतन्य आलोक
नारी हर रूप में विशिष्ट है इसके आलावा रिश्तों से संबंधित उसका खुद का अलग अस्तित्व होता है, ओशो को प्रेम करने का यही एक कारण था, नारी के उस अस्तित्व से परिचय कराया !जिससे कभी मै अनजान थी ! सच में चैतन्य आलोक जी की यह कविता पढते हुए मेरी आँखे भी भर आयी है !आभार सलिल जी इतनी सुन्दर अर्थपूर्ण रचना शेअर करने के लिए !
जवाब देंहटाएंAdbhut kavita
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति रविवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंविशिष्ट रचना !!
जवाब देंहटाएंअपने जैसे किसी कमजोर को जन्म देकर अक्सर माँ रो ही पड़ती हैं। वह समझ नहीं पाती अपनी शक्ति को, क्योंकि उसे इतना कुचला गया होता है कि वह भूल जाती है अपनी शक्ति को और फिर चाहने लगती है किसी शक्तिमान पुत्र को।
जवाब देंहटाएंइस प्रश्न से घिरा पुरुष मन क्षम्य है, क्योंकि उसे एहसास तो हुआ - निःसंदेह, रचना अति प्रभावशाली है
जवाब देंहटाएंभाई , आँखें भर आईं इस कविता को पढकर । और क्या कहूँ । नारी को लेकर खूब रचनाएं लिखी जातीं हैं पर व्यवहार में इस तरह कम ही सोचा और किया जाता है । आपको तो मैं जानती ही हूँ । आपने यह कविता प्रस्तुत कर नारी के प्रति अपना आदर और संवेदना को ही व्यक्त किया है । आलोक जी ने भी नारी की पीडा को गहरे तक समझा है । बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही मर्मस्पर्शी रचना.लगा, जैसे हकीकत को शब्द मिल गए हों.
जवाब देंहटाएंआज के दिन इससे बेहतर रचना नहीं हो सकती चिंतन मनन के लिए .... बहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंबहुत ही मर्मस्पर्सी रचना ..... अंदर तक भीगा गया ....
जवाब देंहटाएंhhmmm...
जवाब देंहटाएं|| वंदे मातरम ||
जवाब देंहटाएंपुरुष मन की यात्रा का शब्दों में निर्वाह, उत्कृष्ट प्रवाह।
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्सी रचना ... शायद यही जीवन का सच है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन...!
जवाब देंहटाएंरचना साझा करने के लिए आभार....सलिल जी ...
RECENT POST - पुरानी होली.
यह लाल और लाली का अंतर अब तक मिट नहीं पाया है. अच्छी कविता है.
जवाब देंहटाएंतुम
जवाब देंहटाएंकभी दादी बनी
कभी नानी
कभी काकी
कभी भाभी
कभी बहन बनी
कभी दीदी
तुम्हारे हर रूप से खिलता चला गया था मैं
.
.
मगर जब तुमने लाली जना
तुम क्यों रोई थी?
मैं क्यों दुखी हो गया!
नमन!!! इस संवेदनशील कविता के लिए ...
जवाब देंहटाएंआभार एक मर्मस्पर्शी रचना से रूबरू कराने के लिये ।
जवाब देंहटाएंइस कविता के कवि को नमन और आपका आभार कि नारी-मन की संवेदना को
जवाब देंहटाएंइतने सहज रूप में सामने रख सके !
दिल को छू के गुज़रती है ये संवेदनशील रचना ... नारी को ले कर लिखी रचनाओं में इस तरह की सोच कम ही पढ़ने को मिली है ... मर्म्स्पर्शीय भाव ..
जवाब देंहटाएंसुंदर सन्देश...नारी को चाहिये नारी का सपोर्ट...
जवाब देंहटाएंभैया ,बहुत प्यारी कविता पढ़वा दी आपने ,ले जा रही हूँ "संकलन" के लिये ..... सादर !
जवाब देंहटाएंहम तो आज ही पढ़े हैं चचा...सच में अद्भुत कविता!!! स्पीचलेस !!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब! दिल को छूती, अवाक करती कविता!!
जवाब देंहटाएंगुरुवर! आपकी बहुत बाट जोही! बहुत चर्चा की आपकी. आज आपके दर्शन हुए! अहोभाग्य!!
हटाएंनारी विषयक मामलों में ब्लॉगजगत में असंपृक्त रहने की सोचा करते थे, पर अपनी पत्नीजी के दृढ़ व्यक्तित्व ने बहुत प्रभावित किया है विगत समय में।
जवाब देंहटाएंऔर सोचता हूं - आगे आने वाले समय में नारी ही रास्ता दिखायेंगी दुनियाँ को!
निःशब्द!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक रचना ... जाने ये प्रश्न कब तक यूँ ही रुलाएगा
जवाब देंहटाएंवाह...सुन्दर पोस्ट...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@चुनाव का मौसम
मन-हृदय-आत्मा को द्रवित करती कविता....!
जवाब देंहटाएंआधी दुनिया का शाश्वत दुख----!
kavita behad bhawpoorn lagi.....
जवाब देंहटाएंएक प्रभावशाली अभिव्यक्ति ..... और आपका लेखन भी
जवाब देंहटाएंसादर