(रश्मि रविजा जी ने अपनी नवीनतम पोस्ट पर एक सवाल उठाया था कि “क्यूँ मुश्किल है पुरुष ब्लॉगर परफिल्म बनाना?” उनके साथ फेसबुक पर कुछ कमेंट्स के आदान-प्रदान हुए और हाज़िर है यह जवाब कि बहुत आसान है एक पुरुष ब्लॉगर पर फिल्म बनाना, मगर किसी ने कोशिश नहीं की. आवश्यकता है एक प्रोड्यूसर की. यहाँ पेश है फिल्म का प्लाट!)
रात भर प्रसव पीड़ा के बाद, भोर में जाकर एगो पोस्ट का जनम हुआ, तब हम सोने जा सके. अब भोर में चार बजे नींद आना भी संभव नहीं था अऊर कोनो साथी ब्लोगर का कमेन्ट आने का संभावना भी नहीं था. ब्लॉग खोलकर कमेन्ट का इंतज़ार करने से अच्छा था कि नींद का इंतज़ार किया जाए. मगर अबकी बहुत उम्मीद था कि ऐसा पोस्ट पर त कमेन्ट का बरसात होने वाला है. अईसा बिसय त पहले कोनो नहीं ट्राई किया होगा ई ब्लॉग जगत में.
एही चिंता-सोच-बिचार में कब आँख लग गया बुझएबे नहीं किया. नींद खुला जाकर साढ़े आठ बजे. गुसियाकर पत्नी को बोले कि हमको उठाई काहे नहीं. पत्नी भी सीधा पलटकर बोली,”ए जी! आप रात भर लैपटॉप में माथा फोड़ते रहते हैं अऊर जब सुबह हम उठाते हैं त का मालूम का-का बडबडाते रहते हैं... टिप्पणी, बुलेटिन, मीट, कमेन्ट... हम त जानकर छोड़ दिए सोने के लिए कि आपका माथा हल्का हो जाएगा!”
जल्दी-जल्दी तैयार होकर ऑफिस भागे. तनी जल्दी उठ जाते, त देख पाते कि केतना कमेन्ट आ गया पोस्ट पर. घर से गेट पर आए, त सामने रेक्सा देखाई दिया. जब तक इसारा करते, एगो आदमी आकर बइठ गया रेक्सा पर. भुनभुनाते हुए पैदल चल दिए मेट्रो इस्टेसन के तरफ. जाड़ा के मौसम में भी पसीना निकल गया. लगता था कि पूरा मोहल्ला का रेक्सा वाला अपोजिसन पार्टी के तरह हमरे खिलाफ हो गया है. कोनो खाली नहीं. आखिर में एगो रेक्सावाला मिला त उसका चाल मत पूछिए... तौबा ये मतवाली चाल. पाँच मिनट का रास्ता, दस मिनट में.
भागते हुए मेट्रो इस्टेसन के सीढ़ी चढ़कर जब सिकुरिटी के सामने पहुंचे, तब याद आया कि आज हडबडी में मेट्रो का कर्डवा घरे छूट गया. मने मन कुढते हुए टोकन के लाइन में खडा हुए अऊर जबतक टोकन लेकर प्लेटफार्म पर पहुंचे, तबतक ०९:२६ का मेट्रो निकल गया था. अब ०९:३१ वाला मिलेगा अऊर दस मिनट देरी से पहुंचेगे ऑफिस. पाँच मिनट फोन करके बताने में निकल गया कि तनी देरी होगा. एही चक्कर में ट्रेन आ गया. अंतिम डिब्बा के सामने खड़े थे कि ऊ एकदम एस्केलेटर के सामने रुकता है. गाड़ी आने के साथ-साथ सब लोग आगे भागने लगा. कारन ई था कि छः डिब्बा के गाड़ी के जगह ऊ चार डिब्बा वाला गाड़ी था, जो आगे जाकर खडा होता था. भागते-भागते चढ त गए गाड़ी में, बाक़ी जेतना आक्सीजन कमाए थे, सब गंवा दिए अऊर अंदर का भीड़ में ऊहो कम्पेंसेट होने का संभाबना कम्मे था. तनी गोड़ धरने का जगह मिला त सोचे कि मोबाइल पर एक बार देख लें कि केतना कमेन्ट आया है. ब्लॉग खुलने लगा अऊर जैसहीं स्क्रोल करके कमेन्ट तक पहुँचाने वाले थे कि सिग्नल गायब हो गया. लौट के बुद्धू घर को आये. उसके बाद त जेतना भी कोसिस किये, सब बेकार. हमरा इस्टेसन भी आइये चला था. बुझाया कि अब ओफ़िसे में जाकर देख पायेंगे.
पहुंचते ही टेबुल पर हेड ऑफिस का एगो लेटर रखा था अर्जेंट बोलकर. दिसंबर क्वार्टर का अलगे-अलगे फिगर देना था. इधर उधर से फोन करके सब हिसाब-किताब मंगाए, जोड़-घटाव किये तब जाकर रिपोर्ट भेजाया हेड ऑफिस. एही बीच में चार बार ओहाँ से फोन आ चुका था. तनी साँस लिए, चाय मंगवाकर पिए अऊर सोचे कि अब तनी समय चोराकर देखते हैं. अभी मोज़िला क्लिक भी नहीं किये थे कि गोड्जीला हमरे सामने आकर बैठ गया. गोड्जीला माने हमरा बॉस. “वर्मा जी, उस पावर प्रोजेक्ट के सिलसिले में आज कंपनी के प्रोमोटर आने वाले हैं. ब्रीफ मीटिंग है. देख लीजिए क्या-क्या इश्यूज हैं! बस वो आने ही वाले होंगे!”
“पावर प्रोजेक्ट तो कोई नहीं है अभी?”
“अरे वो हाइवे वाला.”
“वो तो रोड प्रोजेक्ट है ना!”
“हाँ हाँ वही! एक ही बात है!”
अब हम का बहस करते. लगे नोट्स तैयार करने. मीटिंग हुआ, कुछ नोर्मल अऊर कुछ गरम.
अभी तक मौक़ा नहीं था कि ब्लॉग देख सकें. लंच का टाइम हो गया अऊर सब लोग जबरदस्ती ले गया कैंटीन में. खाना खाकर तनी इत्मिनान हुआ. सोचे अब कोनो डिस्टर्बेंस नहीं होगा, मगर पता चला कि नेट डाउन है अऊर सर्किल ऑफिस में लोग ठीक करने में लगा है. सायद इंट्रानेट चल जाएगा, मगर इंटरनेट नहीं चलेगा. हम कपार धरकर बईठ गए. सोच लिए कि आज अब हम घर जाने के बादे देखेंगे.
घर में त ऑफिसो से भयंकर माहौल था. सिरीमती जी आज चंडिका के रूप में थी. आते ही दरवाजा पर से हमरा बैग उठाते हुए बोली, “ई इस्कूल की टीचर सब भी का मालूम का-का प्रोजेक्ट देते रहती हैं. ई सब हमसे नहीं होगा. बाज़ार से समान ला दिए हैं. कल्हे इस्कूल में देना है. अब आप ही बनवाइए!” प्रोजेक्ट बनवाने में रात का नौ बज गया. खाना खाकर करीब साढ़े दस बजे जब इंटरनेट पर ब्लॉग खोल कर बैठे, त देखे कि ओहाँ बबाल मचा हुआ था.
हमरा मामूली सा बात, जो हम मजाक में लिखे थे अऊर उम्मीद कर रहे थे कि ई मजाक का लोग आनंद लेगा अऊर अपना टिप्पणी का बारिस कर देगा, ऊ त पूरा का पूरा उलटा हो गया. अब सफाई देने बैठेंगे त पूरा रात निकल जाएगा. कुल मिलाकर चौबे-छब्बे अऊर दुबे वाला खेला हो गया.
घबराहट में चैतन्य बाबू को फोन लगाए अऊर पूछे कि कोनो उपाय बताइये ई बैतरनी पार करने का. ऊ बोले, “अभी तो ग्यारह बजे हैं. एक सुन्दर सी पोस्ट लिखकर सारी बात साफ़ कर दीजिए. आपके पुराने पढ़ने वाले हैं, समझ जायेंगे!”
हम लैपटॉप लेकर बैठ गए पोस्ट लिखने अऊर उधर हमरी सिरीमती जी का गाना बैकग्राउंड में चल रहा था – ना जाओ सैयाँ, छुडा के बइयाँ, कसम तुम्हारी मैं रो पडूँगी!”
हा हा मॉडरेशन लगाना था ना...बवाल नहीं मचता..:):)
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट...और मेरा भी ये पहला मौका कि लॉग आउट करने जा रही थी और देखा तीस सेकेण्ड पहले आपने पोस्ट किया है.....पाँच मिनट के अंदर मेरी टिप्पणी हाज़िर
अब प्रोड्यूसर हंटिंग का काम जोर-शोर से होना चाहिए :)
चमाचम विषय है, धमाधम टिप्पणी बरसेंगी - हम हाजिरी लगाकर खिसक लेते हैं:)
जवाब देंहटाएंसलिल जी,...आपकी कहानी तो बहुत अच्छी लगी,इस फिल्म का डायरेक्टर मुझे बनवा दीजियेगा,..
जवाब देंहटाएंMY NEW POST...मेरे छोटे से आँगन में...
ढूंढ ही लीजिए प्रोडूसर फटाफट ...:)अगला ब्लोग्फैयरअवार्ड पक्का.
जवाब देंहटाएं...और फिल्म का प्रीमियर अपन बंगलौर के लालबाग में करेंगे।
जवाब देंहटाएं:-)अब हीरों ही बनना बाकि था आपका ...सो वो भी ....
जवाब देंहटाएंअर्चना जी 'हीरो' पे कुछ ज्यादा ही जोर दे दिया आपने ! आपके नुक्ता धरते ही रोंहान्सापन उसकी पर्सनालिटी का हिस्सा हो गया :)
हटाएंअली सा!
हटाएंशुक्रिया!!
अरे बाबा "हीरो" बस........ कर ली गलती ठीक ..पर जरा देर से ...सॉरी सबको ...और धन्यवाद अली भाई को..
हटाएंप्लॉट तो बहुत बढिया है .. पर बहुत छोटी फिल्म बनेगी !!
जवाब देंहटाएंचिंता काहे कर रही हैं ....एक-दू देस भक्ती बाला आइटम सांग भी त पड़ेगा अभी ...फिलम लंबा हो जाएगा ....
हटाएंऔर ड्रीम सिक्वेंस में सिरीमती जी के साथ "हाय-हाय ये मजबूरी, ये ब्लॉग्गिंग और ये दूरी" टाइप गाना भी रहेगा!!
हटाएंअब प्लॉट को सूट कर ही डालिए...डायरेक्टर,प्रॉड्यूसर,हीरो,हीरोइन सब निश्चित हो ही गया है...एक दो विलेन भी मिल ही जाएंगे...
जवाब देंहटाएंशानदार प्लाट । निर्देशक के ऊपर है कि वह कथाकार व अभिनेता की प्रतिभा का कितना दोहन कर सकता है ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिय़ा फिल्म बनेगी... एकाध साइड हीरो वाला रोल हमें दे दीजिएगा। चार बजे जब पोस्ट करके सोते हैं तो यही लगता है कि अब तो कमेंट आएंगे नहीं... सुबह उठकर देखेंगे। फिर वही आपा-धापी जो आप लिख ही दिए हैं।
जवाब देंहटाएंहा हा, बवालों के भंवर में ब्लौगर!
जवाब देंहटाएंबहुते अच्छा लगा!
फिलिमावा में दू चार-गो सुन्नर-सुन्नर गाना-वाना भी रखियेगा!
कहने का अंदाज हो तो रोजमर्रा को कहानी बनते कितनी देर लगती है.
जवाब देंहटाएंबताईये, यहाँ चार मिनट की फुरसत नहीं और रश्मिजी चार मिनट में सटका देना चाह रही हैं। आप महा एपिसोड लिख डालिये अब तो। स्वयं को सिद्ध करने का चुनौती जो है।
जवाब देंहटाएंढूंढ ही लीजिए प्रोडूसर फटाफट
जवाब देंहटाएं@ हम हैं ना निर्माता - निर्देशक ....!
ई पोस्टवा को अपने गोड्जिला को भी तनी पढ़वा लीजियेगा ! सबसे गरमागरम कमेंटवा देगा विद कंटाप :-)
जवाब देंहटाएंएकठो नाटक तो खेला ही जा सकता है....इस प्लाट पर !
कंटाप को सुविधानुसार कम्पट(टॉफी)भी बांच सकते हैं !
हटाएंस्टंट मैन की ज़रूरत हो तो बताइएगा... :)
जवाब देंहटाएंसलिल भैया ! राम-राम ! एकदम खांटी लिखे हैं .....पतनी जी बाला रोल तनी बड़ा करना पड़ेगा...त एगो गाना डालना में सहूलियत रहेगा ....ओही बाला ...."मैं का करूँ राम मुझे ब्लॉगर मिल गया ...."
जवाब देंहटाएंफ़टाफ़ट काम सुरू किया जाय . छोटा-मोटा रोल हमें भी दिया जाय.
वइसे फिलम बालों का दृस्टी ज़ल्दी ही पड़ेगा इस पलाट पर......तब ई कल्पना हकीकत बनबे करेगा ...आज नहीं त कल ....
ही ही .....क्या बात है?
जवाब देंहटाएंChalchitr kee bhaantee aankhon ke aagese manzar guzarte gaye! Wah! Kya likha hai!
जवाब देंहटाएंधांसू भाई जी... एकदम धांसू प्लॉट है! बंगला में बोले तो बड़ी भीषोण, दारुण बनेगी फिल्लम!!
जवाब देंहटाएंभाई मेरे , क्या प्लॉट है ... गुदगुदी के साथ दृश्य सजीव . अब अभी भी कोई फिल्म न बनाये तो बड़ा दुःख का बात है ! गाना लिखे का ?
जवाब देंहटाएंदीदी, नेकी और पूछ पूछ!!
हटाएंचाचा रश्मि दीदी को तो आप क्लीन बोल्ड कर दिए हैं...जबरदस्त पोस्ट :P
जवाब देंहटाएंएकदम एक थ्रिल्लिंग फिल्म बन सकती है इसपर तो :)
ओए मिस्टर...क्लीन बोल्ड होकर हम आउट कैसे??डायरेक्टर तो हमी हैं...बगैर निर्देशक के फिल्म कैसे बनेगी???
हटाएंhaan director se hum panga nahi lete...kahin mera role cut na ho jaaye :P
हटाएंsorry didi :D
hehehe.. confilct tagda likhe hain aap... :P
जवाब देंहटाएंswapnil
bahut khub :)
जवाब देंहटाएंजबर प्लाट बा . बवाल टाइप . ब्लाग बस्टर फिलिम बनेगी .
जवाब देंहटाएंkitni aasani se aap kisi bhi visay par likh lete hain.......aapki lekhni wakayee tareef ke kabil hai.
जवाब देंहटाएं:-)
जवाब देंहटाएंफिल्लम तो हिट है...
बस एक मात्र स्त्री पात्र को खलनायिका काहे बना दिये...???
अब यहाँ इतनी फ़िल्मी बातें हो रही हैं...
जवाब देंहटाएंतो सोचा दो साल पहले लिखी अपनी पोस्ट पर के कुछ कमेंट्स यहाँ भी रख दूँ..बहुत सारे आईडियाज़ मिल जायेंगे
शरद कोकास said...
अशोक पाण्डेय जी ने तो डरा दिया इसे एक गम्भीर सच कहकर मै तो इसे हास्य ही समझ रहा था ।
सही है किसी का दुख किसी के लिये हँसने का विषय बन जाता है ।
वैसे रश्मि जी .इस प्लॉट को किसी हिन्दी फार्मूला फिल्म बनाने वाले को दे दिया जाये तो वह कुछ दो ढाई घंटे की फिल्म तो बना देगा ।
मसलन नायक ब्लॉगिंग के चक्कर में नौकरी छोड़ देता है । फिर आर्थिक तंगी ..जैस तैसे इंटर्नेट के लिये पैसे जुटाता है फिर चोरी करता है ,मुकदमा.. लेकिन ऐन समय पर नायिका उसे बचा लेती है । फिर नायिका का उसके जीवन में प्रवेश । पत्नी के लिये दो सौत । ..फिर नायिका भी ब्लॉगिंग के चक्कर में । नायक से लड़ाई । त्रिकोणी संघर्श ।नायक द्वारा लैप्टोप फेंकना .. आत्महत्या का प्रयास । स्टोरी सार्वजनिक होना , ब्लॉगजगत मे विमर्ष आदि आदि .... आगे की स्टोरी हमारे विद्वान ब्लॉगर गढॆंगे..
Dr. Smt. ajit gupta said...
रश्मि जी, आपने तो फिल्म डायरेक्टर को मुफ्त में ही एक प्लाट दे दिया है। कहानी ऐसे व्यक्ति की होगी जो पत्रकारों को सताया है, पत्रकार उसके लिए समाचार पत्रों में उलजलूल छाप रहे हैं और ब्लागर अपने ब्लाग पर उनके खिलाफ। नायिका भी जुट जाएगी नायक के पक्ष में। धीरे-धीरे जनता भी जुटेगी और ब्लागर की शक्ति विजयी होगी। जय ब्लाग और जय ब्लागर।
सतीश पंचम said...
सोचिये कि शॉट रेडी हो....लाईट, कैमरा सब तैयार हो और अचानक मेन 'ब्लॉगरेक्टर' कहे कि जब तक अपने इस शूटिंग की सूचना ब्लॉग पर न डाल ले, उसका मन बेचैन रहेगा...... वह सीन में जान नहीं डाल सकता....तब प्रोडयूसर मन मार कर कहेगा....जा भाई लिख मार जो तेरे मन में आवे ।
तब ब्लॉगर एक पोस्ट लिखेगा.....मेरा शूटिंगाना अनुभव :)
उधर जब तक ब्लॉगरेक्टर पोस्ट लिखेगा प्रोडयूसर अपने स्पॉट ब्वाय और लाईटमैन से कहेगा ....जाबे...उसके पोस्ट पे वो कुछ भी लिखे....साले, तू अच्छे से कमेंट करके आना....मस्त है, वाह वाह, बहूत खूब वगैरा लिख के आना तभी उसका मूड सही रहेगा और सीन में जान डाल सकेगा......अगर नहीं लिखा तो तेरा आज का पगार कट।
जा जल्दी जा, वो देख ब्लॉगवाणी पे आ गया है.....जल्दी कर....अबे पढता क्या है....पोस्ट बिना पढे लिख ना वाह...वाह, बहूत खूब....देर हो रही है शूटिंग में :)
मरता क्या
March 26, 2010 8:53 PM
सतीश पंचम said...
मरता क्या न करता....सपॉट ब्वॉय और लाईटमैन वगैरह कमेंट कर आए और धर ब्लॉगरेक्टर ने सीन में जान डालते हुए कहा -
ओ मेरी गुलगश्त महबूबा....तेरा प्रोफाईल मेरे दिल पर चस्पा हो गया है ....
एक मिनट...अबे ओ लाईटमैन ......कोई नया कमेंट आया क्या..देख तो :)
बाप रे! इतने सारे आइडियाज़ हैं कि कोइ ब्लोगर भूखे नहीं मर सकता है (टिप्पणियों की भूख)... और चुरा ले कोइ तो साल भर में कम से कम ग्यारह हिट फिल्मों का जुगाड!!
हटाएंइस प्लाट पर लाज़वाब फिल्म बनेगी...बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया ... प्लोट जोरदार ... कहानी में दम ... अब पटकथा कौन लिखेगा ... डाइलोग कौन तैयार कर रहा है ...
जवाब देंहटाएंउधर सतीश सक्सेना शौहरों को लतियाये जा रहे हैं ! इधर आपका हीरो स्कूल की टीचर्स प्रदत्त प्रोजेक्ट के बहाने चंडिका जी के आगे नतमस्तक है ! ऊ'लाला' :)
जवाब देंहटाएंमतलब...हे कायस्थ कुल शिरोमणी ब्लागर द्वय ये माज़रा क्या है :)
अली सा!
हटाएंबड़े भाई सतीश सक्सेना जी के व्यक्तिगत अनुभव के आगे तो मैं कुछ नहीं सकता.. किन्तु यहाँ चंडिका का प्रकोप इस निरीह पति पर नहीं, अपितु अप्रत्यक्ष रूप से उस शिक्षिका पर था.. अर्थात मामला ज़नानियों का है. और नतमस्तक बिटिया के समक्ष थे!
@ कायस्थ्कुलशिरोमणि:
यह तो सर्वकुल समान समस्या है!!
@ आप भी हमें स्पैम करने लगे:
यह गूगल का नीर-क्षीर विवेक है... मगर उसका लैक्टोमीटर अभी हाल से ही गलत रीडिंग देने लगा है!!
बिटिया...वाह ! तब तो अपना भी यही हाल जानिये :)
हटाएंसलिल जी ,
जवाब देंहटाएंअब आप भी हमें स्पैम करने लग गए :)
सलिल जी,
जवाब देंहटाएंहमार ब्लॉग के केहू के नजर लाग गईल बा । रऊआ पर हमार सेटिंग खराब हो जाता त एमें हमार का दोष बा । लेकिन हमरे खातिर रऊआ दिल के कवनों कोना में तनिको जगह रहीत त विना कहले ही रऊआ हमरे पोस्ट पर आके कुछुओ कह जईतीं त मन में तनी मनी खुशी त आ जाईत । एगो भोजपुरी गीत सुन लेब त अच्छा होई .
दे द पीरितिया उधार धरम होई............। पोस्ट बहुत नीमन लागल । धन्यवाद ।
ई हॉल में तो कमेंटिया शोर मचा है! कहनिये भुला गये कमेंट पढ़ते-पढ़ते।
जवाब देंहटाएंसलील भाई ,
जवाब देंहटाएंआप खुद ही एक फीलीम बनाईए, संवाद लीखिए, पटकथा लीखिए, निर्देशन कीजिए, दृश्य का चुनाव कीजिए लेकिन आपको "हीरो" और " हीरोईन" की जरूरत तो अवश्य होगी । मेरे पास एक PEN VIDEO है, जिसमें एक अभिनेता एवं एक अभिनेत्री का तस्बीर कैद है,जो आपको वो मुकाम और मंजिल देगी जिसके बारे में आप कभी कल्पना भी नही किए होंगे । सरकारी नौकर हूं ,ज्यादा नही लिख रहा हूँ । समझदार के लिए इशारा ही काफी है । खुशवंत सिंह के लेखन से कुछ सीखा हूं ।.उनका स्तंभ "ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर" को शुरू से ही पढ़ता रहा हूँ । इस पर मैं एक पोस्ट भी किया हू । मेरे बाबूजी जी कहा करते थे - बेटा , All that glitters is not gold...आपके पोस्ट पर आकर जो आत्मीय सुगंध मिलती है, उसे किसी और पोस्ट पर नही मिलती । मेरे किसी भी कथन को फिर से या किसी के माध्यम से कहने के लिए मजबूर मत कीजिएगा । आभारी रहूंगा । धन्यवाद ।
ई त खाली ट्रेलर है ....पिक्चर त अभी बाकिए है बड़े भाई !
जवाब देंहटाएंरोचक भूमिका , फिल्म बना ही लीजिये !
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में आपका स्वागत है। फ़िल्म निर्माण से समय निकालकर इहाँ भी कुछ लिखते रहिये। एक चर्चा का गारंटी दीजिये तो 25 टिप्पणी पक्का, एक पुरस्कार का गारंटी दिया तो 100। सच कहने का जुर्माना .... आप तो जानते ही हैं ... ऊ का है, कि अनुभवी हैं। हमने ताजातरीन, बेहतरीन पोस्ट लिखा है, आपका टिप्पणी के इंतज़ार में बैठे हैं .... वैसे कविता के त में आपने छोटी ई का मात्रा लगा दिया है उसे बड़ा कर लीजिये [ई सब ब्लागर के साइड हीरो टिप्प्णीकार का डायलागवा है। का हमें चांस मिलेगा पटकथा-सहलेखक का? सलीम-जावेद टाइप]
जवाब देंहटाएंई टिप्पणी भी स्पैम में जाने वाला है का? अरे राम, कम्प्लीट चल गइल!
रोचक और बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
अब हीरो तै आपय बन जाईये....ईसन बढ़िया स्टोरी कहीं नहीं मिलेगी.का धांसू कहानी बटे.
जवाब देंहटाएंये तो आर्ट फिल्म का प्लाट लगता है,
जवाब देंहटाएंसच को सच-सच दिखाने वाला।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार ११-२-२०१२ को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिय़ा फिल्म बनेगी....इसके लिए प्रोडूसर की जरूरत नहीं होगी मैं हूँ न ....वैसे प्लान धांसू है
जवाब देंहटाएंआनन्द आ गया पढ़कर। मैंने सोचा नहीं था कि इतनी जल्दी पोस्ट पढ़ने को मिलेगी। साधु- साधु।
जवाब देंहटाएंयह फिल्म तो आप ही बनवा सकते है ... जय हो ... जय हो !
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंफिल्म बने.... खूब चलेगी:)
:):) फिल्म का इंतज़ार रहेगा ... डाएरेक्टर ऐसा हो जो फिल्म डूबे न .... टिप्पणियों के दर्शन के लिए कितनी जद्दोजहद करनी पड़ी ... उफ़्फ़
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंअरे बाप रे, फिल्म की क्या धांसू स्क्रिप्ट है! फिल्म बना ही डालिए।
जवाब देंहटाएंवाह!!! :) :)
जवाब देंहटाएंइलेक्शन से थोडा फुर्सत मिली है तो आपको बांच रहे हैं .इधर कई रिकार्ड ध्वस्त कर डाले हैं ... :)
जवाब देंहटाएंमोजिला और गोड्जिला! गज्जब!
जवाब देंहटाएंबाकी आपबीती लग रही है अपन को भी। काहे को पैसा फ़ूंकना डायरेक्टर के लिये। एक दिन अपनी वीडियो सूटिंग करा लीजिये बन गयी पिक्चर!
चकाचक पोस्ट!
:)
जवाब देंहटाएंगज्जब!
हो हो हो हो हो...
जवाब देंहटाएंयह फिल्म खूब चलेगी। अगर कहानी का अंत इस तरह हो तो लोग भी क्या याद रखेंगे कि
दुखांत फिल्म पत्नीजी के प्रकोप से आखिर एकाउंट डिलीट होने के साथ खत्म हुई...
बहुते अच्छी फिलिम बनेगी बाऊ जी , एक बार टिराई तो कीजिये , न सुपरहिट हो जाये त नाम बदल दीजियेगा |
जवाब देंहटाएंसादर
इस पोस्ट को आज फिर से पढा । ( अपनी सहित) उनहत्तर टिप्पणियाँ भी । प्लाट की तारीफ के साथ-साथ सबने अपने आइडिया दिये हैं लेकिन सच तो यह है कि किसी ने शायद इसकी आत्मा को नही पढा जो इसे एक अविस्मरणीय रचना बनाती है । ब्लाग पर रचना पोस्ट करना फिर टिप्पणियों के इन्तज़ार की बेचैनी के साथ पूरा परिवेश रचना के साथ लिपटा चलता है ,यह अद्भुत है । लेखन में इतनी सहजता और बडे आराम से अपनी बात पूरी खूबसूरती से कहने की कुशलता कहाँ मिलती है अब । पढते हुए जाने कितनी बार हँची छूटी और कितनी बार अचरज हुआ कि अरे ऐसा ही तो कुछ हमारे साथ होता है ।
जवाब देंहटाएं