हम पहिले जऊन ऑफिस में थे, वहाँ ऑफिस त खुलता था दस बजे, मगर हमरा काम साढ़े नौ बजे से सुरू हो जाता था. बस एक के बाद एक लगातार टेलीफोन पर टेलीफोन. एगारह बजे से पहिले फुर्सत नहीं. अब जब काम था त था. ई डेढ़ घण्टा के बीच में हमको, हमरा टेबुल पर रखा हुआ इस्टेटमेण्ट अऊर फोन के अलावा, आस पास का कोनो खबर नहीं रहता था. ई डेढ़ घण्टा के बीच में कोई पीछे से आकर हमको चक्कू भी मार जाए, त जब तक काम खतम न हो जाए, हमको पता नहीं चलने वाला कि हमरे साथ का हो गया है. ई अलग बात है कि उसके बाद हम दरद से मरें चाहे नहीं मरें, खून देखकर जरूर मर जाएंगे.
19 जनवरी 2007. कलेंडर के हिसाब से मामूली दिन अऊर ऑफिस के हिसाब से बहुत बिज़ी दिन था. सबेरे साढ़े नौ बजे से फोन पर लगे हुए थे. करीब आधा घण्टा के बाद से हमको लगा कि हमरे आस पास काना फूसी अऊर गहमा गहमी चल रहा है. टाइम नहीं कि माथा उठा कर देखें अऊर पूछें कि का बात है. करीब साढ़े दस बजे जब फ्री हुए त हमरे पूछने से पहिले ही सब बताया कि शैलेंद्र नाथ दवे का एक्सीडेण्ट हो गया है, आज ऑफिस आते समय. हम पूछे कि अभी कहाँ है, तब पता चला कि वेलिंग्डन हॉस्पिटल ले गए हैं. शैलेन्द्र नाथ दवे, हमरे बिभाग में सीनियर कर्मचारी थे अऊर यूनियन के नेता भी. मगर हमसे कभी नेता वाला टकराव नहीं हुआ.
हम एगो स्टाफ को साथ लिए अऊर हॉस्पिटल के लिए निकल गए. वहाँ जाकर इमर्जेंसी वार्ड में देखे तो दवे जी बेड पर पड़े हुये थे. साथ में कोई नहीं. ऊ ग़ाज़ियाबाद से आते थे और घर पर बुजुर्ग पिताजी हार्ट के पेसेंट थे, इसलिये उनको बताना मोस्किल था. एक अऊर आदमी जो उनके साथ आते जाते थे, दुर्घटना के समय भी उन्हीं के साथ थे. हमको देखते दवे जी हमरा हाथ पकड़ लिए अऊर बोले, “मुझे बचा लो सर!” हमरे मुँह से त कोनो आवाज नहीं निकला.
सबसे पहिले हम दवे जी के साथ जो उनके दोस्त थे अऊर जो उनको हॉस्पिटल लेकर आए थे, उनको धन्यवाद कहे. फिर पूछे कि क्या हुआ था. तब जो ऊ बताए उसको सुनकर करेजा काँप गया. ई दूनो आदमी सड़क पार कर रहे थे. सिगनल लाल था अऊर सड़क खाली. अचानक एगो कार सिगनल तोड़ते हुए आया अऊर दवे जी को धक्का दिया. ऊ गिर गए रोड पर अऊर गाड़ी का पहिया उनके गोड़ पर चढ गया. गाड़ी वाला गाड़ी रोका अऊर फिर से गाड़ी को पीछे करके दोबारा गोड़ के ऊपर से बैक करके भाग गया.
फिर पुलिस, ऐम्बुलेंस, गाड़ी का नम्बर, वकील अऊर हॉस्पिटल का इमरजेंसी वार्ड. हम डॉक्टर को पूछे कि क्या करना है, तो ऊ बोला कि अभी प्लास्टर करना होगा कच्चा. मगर ऑपरेसन करके अंदर रॉड लगाना होगा. खैर पहिले तो ई हॉस्पिटल से छुटकारा पाना था. डॉक्टर प्लास्टर रूम में लेकर गया, त साथे हम भी गए.
दवे जी का पैण्ट काटकर गोड़ का नीचे वाला हिस्सा में प्लास्टर करना था अऊर दर्द बर्दास्त से बाहर था उनके लिए. पूरा कपड़ा में लगा हुआ खून देखकर त हमरा मन खराब हो रहा था. हमारे जईसा साकाहारी आदमी को एतना खून, ऊ भी आदमी का, पहिला बार देखने को मिला था. अपना मन को काबू में किए.
डॉक्टर आकर जईसे गोड़ को हाथ लगाया, दवे जी हमरा हाथ एतना जोर से पकड़ लिए कि हमको दर्द होने लगा. पूरा कमरा में उनका चीख गूँजने लगा, “वर्मा सर! मार डालो मुझे. मैं लंगड़ाते हुए जिंदगी नहीं गुज़ार सकता. बहुत दर्द है, काट दो मेरा पैर!!” हम खाली एतने बोल पाए कि धीरज रखो. हम उनका खून से सना हुआ गोड़ पकड़े अऊर डॉक्टर प्लास्टर लगाने लगा. दवे जी लगातार दरद से चिल्लाते जा रहे थे, अऊर ओतने जोर से हमरा मन घबरा रहा था. एतना गाढ़ा लाल खून, दरद भरा चीख अऊर उनके आँख से बहता हुआ आँसू, उनका एकलौता बेटा का खयाल, उनके पिताजी का बीमारी, सब हमरे नजर के सामने घूम गया.प्लास्टर हो गया, नींद का सुई लग गया, उनका भाई आ गया अऊर सारा दिन हॉस्पिटल में बिताकर जब हम लौटे. तब समझ में आया कि मन केतना खराब था हमरा. खाना नहीं खाया गया हमसे. रह रह कर फैला हुआ खून आँख के सामने घूम रहा था.
हमरे परिवार में हम अऊर हमरा मँझला भाई साकाहारी हैं और हम तो पैदाइसी सकाहारी. हमरे खानदान के बारे में डॉ. हरिवंस राय बच्चन लिखे हैं कि अईसा माँसाहारी खानदान कि लोग पूछता था कि माँ के पेट में रहकर ई अपना माँ का माँस कईसे नहीं खाया अऊर खुदे जवाब भी देते हैं कि उस समय मुँह में दाँत नहीं था, सायद इसीलिए. अब बताइए अईसा कट्टर माँसाहारी परिवार में कट्टर साकाहारी हम, एतना खून देखना कईसे बर्दास्त किए होंगे. खैर, दवे जी को ले गया लोग गाजियाबाद. ऑपरेसन हुआ, रॉड डाला गया गोड़ के अंदर अऊर करीब चार पाँच महीना के बाद ऊ ऑफिस भी आ गए. आते ही हमको गले लगाए.
ऊ दिन अऊर आज का दिन, दूगो परिबर्तन हो गया हमरे जीबन में. पहिला कि हमसे कार चलाना छूट गया. जब स्टीयरिंग पकड़ते त लगता कि दवे जी हमरे गाड़ी के नीचे खून में पड़े हुए हैं. अऊर दोसरा परिबर्तन कि दवे जी को उस दिन के बाद दवे जी कहना छोड़ दिए हम. जिस दिन ऊ ऑफिस आए हम सबके सामने बोले कि दवे जी के चरन पकड़कर सारा दिन हम बईठे रहे हैं, इसलिए आज से ई हमरे बड़े भाई हुए. चुँकि ई गुजराती हैं, इसलिए हम आज से इनको मोटा भाई (बड़ा भाई) कहेंगे.
आज तक ऊ रिस्ता बना हुआ है, खून का रिस्ता.
रिश्तों की हकीकत और खून 'से' रिश्ते.
जवाब देंहटाएंआपमें रिश्ता निभाने की गज़ब क्षमता है। ये रिश्ता खून का रिश्ता है भी और नहीं भी, लेकिन खून से गाढ़ा जरूर है। सुख दुख जीवन में आते हैं, लेकिन किसी के साथ होने का अहसास इनसे निबटने में हीलर का काम करता है।
जवाब देंहटाएंदवे जी हमेशा याद रखेगे आपको।
ऐसे रिश्ते बहुत मजबूत होते है
जवाब देंहटाएंक्या बात है सलिल भाई.असली खून के रिश्ते तो यही है . बाकि तो खून तक पानी हो चूका है
जवाब देंहटाएंरिश्ता...???? सिर्फ़ खून का...???
जवाब देंहटाएंye kya likh diye dadu...abhi kal hi meri iklauti bestestest friend ki mummy ka paon fracture hua hai.....aur main wahan unke saath bhi nahin hoon :(
जवाब देंहटाएंrishton ka naam hona zaruri nahin hota, bas unka ehsaas rahe...ur a good man dadu....luv u :)
शाकाहारीओं से सहज ही खून देखना बर्दास्त नहीं होता, और ऐसे अवसर पर खून देखकर दर्द के प्रति सहानुभूति और करूणा जगती है। सच में मोटाभाई से उन्ही सम्वेदनाओं का रिश्ता बना है। खून न देखपाने का रिश्ता। खून में छिपा दर्द-करूणा का रिश्ता।
जवाब देंहटाएंशानदार संस्मरण,सम्वेदनाओं के मूल को स्थापित करता हुआ।
का कह दिये सर जी, भोरे-भोरे मन भींग गया। आज-कल सहोदर के साथ रिश्ता त खून का होने के बजाये खूनी हो जाता है और अइसा अह्सास वाला रिश्ता त सोचना भी बेकार है…। ज्यादा कुछ कहने लायक त हम कभी नहीं रहे सो आज भी नहीं कह पायेंगे बस हमरा नमन आपको ।
जवाब देंहटाएंजीवन में विपत्ति के समय पानी ( आँखों के ) से बने ये रिश्ते कई बार खून के रिश्ते से भी बड़े हो जाते है |
जवाब देंहटाएंये ब्लॉग जगत रूपी पाठशाला की नियम बहुत अच्छा है यहाँ हर कक्षा में हजारी लगाना जरुरी नहीं है जिसको जो विषय पसंद हो वो उसी कक्षा में जाये ना की हर कक्षा में मजबूरी में हजारी लगाये | हमको बिहारी हिंदी की कक्षा पसंद है हम तो यहाँ आयेंगे गर कोई मेरे फल फ्रूट की कक्षा में हजारी ना भी लगाये तो हमको कोई समस्या नहीं है | :))
जवाब देंहटाएंमोटा भाई की तरफ से मोटा भाई के लिए शुभकामनाएं और आपको बधाई और साधुवाद ।
जवाब देंहटाएंआज त मन बहुत सेंटीमेंटल हो गया, मोटा भाई। का कहें, घर-दुआर से दूर जब रहते हैं त ऐसाही होता है, जो अपना नहीं होता है ऊ सगा हो जाता है, और जो अपना होता है, ऊ बोलता है टेक केयर, समय मिलते ही आएंगे। और अगर आता भी है त आके चला जाता है। अब बताइए ऐसन में कौन अपना हुआ, किसके साथ ख़ून का रिश्ता हुआ?
जवाब देंहटाएंसलिल जी, आपकी हर अदा निराली है.............. आप अनजाने रिश्तों मन भी अपनापन खोज लेते है.इस झूठ की दुनिया में कभी कभी अनजाने रिश्ते जाने रिश्तों से भी ज्यादा गहरी से जुड़ जते है. सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंमन से जुड़े रिश्ते ही गहन होते हैं ...और दवे जी से तो आपका अब खून का रिश्ता भी है ...बहुत अच्छी भावनाओं से भरी पोस्ट
जवाब देंहटाएंरिश्तों का खून जब सरे आम हो रहा हो तब खून के ऐसे रिश्ते आस बन्धातें हैं।
जवाब देंहटाएंमोटा भाई,मेरे साथ यहां चंड़ीगढ़ में कार्यरत हैं,यह पोस्ट पढने के लिये उन्हे मैने बुला भेजा है। आते होंगे!
हमारे तो मोटा भाई आप ही हैं, और इ खून का तो नहीं पर दिल का रिश्ता है!
जवाब देंहटाएं!
एक्सीडेंट का विवरण पढकर रोंगटे खड़े हो गए एक वो कार वाला था इंसानियत क्या जानवर के नाम पर भी कलंक .एक आप हैं खून का रिश्ता निभाने वाले.सच ही है दुनिया इसलिए अब तक कायम है.
जवाब देंहटाएंअविस्मरनीय किस्सा...आपकी लेखन कला की एक और शानदार मिसाल...
जवाब देंहटाएंनीरज
सलिल जी जितना तब आपका मन खराब हुआ होगा उतना ही मेरा मन भी खराब हो गया इसे पढ़कर। बहुत से दृष्य आँखों के सामने से गुजर गए।
जवाब देंहटाएंआपने जिस मानवता का परिचय दिया उसके लिए साधुवाद।
इस तरह से किसी का भी किसी के साथ खून का रिश्ता ना बने ... पोस्ट पढ़ते हुए सारे रोंगटे खड़े हो गए !
जवाब देंहटाएंपर हाँ जरूरत के समय आपने वहाँ रह कर एक भाई होने का पूरा फ़र्ज़ अदा किया ! आपको साधुवाद !
आप त रूलाईये दिये महाराज! का कहें.. कोनो सब्द नहीं बुझा रहा है। आपको अउर मोटा भाई को हमरे तरफ़ से परनाम...
जवाब देंहटाएंहौलनाक वाकया बाबू !
जवाब देंहटाएंहमें भी इसका विवरण पढना बहुत मुश्किल हो रहा था और पढ़े बिना रहा भी नहीं जा रहा था.
जवाब देंहटाएंदवे जी का पैर ठीक हो गया, जान संतोष हुआ...और जो समय पर काम आए,उस से बढ़कर अपना कौन हो सकता है.
इन मौकों पर पड़ी रिश्तों की नींव बहुत मज़बूत होती है सलिल भाई ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंहमने तो पहले भी लिखा था की हमको आपका ब्लॉग पढने में बहुत देर लगती है फिर सबके कमेन्ट पढने से और अछे से विषय समझ आता है |पर ये बात है की आपकी हर पोस्ट पढने बहुत अच्छी लगती है |
जवाब देंहटाएंमोठा भाई और आपका रिश्ता हमेशा बना रहे |शुभकामनाये
ख़ून का रिश्ता पढ़ कर मानवीय रिश्तों को संवेदना के तल पर पुन: परिभाषित करने की जरुरत महसूस हुई । सचमुच कुछ रिश्ते खून के रिश्तों से कहीं बढ़कर होते हैं ...आपके इस जज्बे को सलाम !!!
जवाब देंहटाएंहमको तो इहै ताज्जुब हो रहा है कि ऊ ससुरा कार बाला चिरकुट बैक करके फेर गोड़ पर का सोच के चढ़ाया होगा कि पता नहीं ठीक से भरता न बना होय त अब बन जाय ....एकदम जानवरै था ससुरा.
जवाब देंहटाएंएक बात माना पडेगा की खून का रिश्ता होने से जरूरी है खाली रिश्ता का होना....
जवाब देंहटाएंवैसे आपको इतना तारिख सब कैसे याद रहता है?
रोचक और मार्मिक संस्मरण!
जवाब देंहटाएंयह रिश्ता वास्तव में अनमोल है.सब को आप से सीखना चाहिए-यह अनुकरणीय एवं स्तुत्य कृत्य है.
जवाब देंहटाएंSach main aapka blog padh kar bina comment kiya nahin rah sake , RISHTA hi dharohar hain jeevan ka , ekdum badhia , aapne bahut hi sundar karya kiya hain , ye bhi truth hain "SHAKAHARI" ko khoon dekh vichalit ho jata hain ...aapke JEEVANT hone ka , ZINDADIL hone ka sadhuwaad .
जवाब देंहटाएंAppse Sikhne Ko Bahut Kuch Milta hain , Kabhi HUm Bhi Koshish Karenge aapko kuch dene ka :))
Jai Hind !!!!!
मन कैसा कैसा तो हो गया पढ़कर...बुझा नहीं रहा कि मनोभाव को शब्दों में बाँध कैसे सामने रखें..
जवाब देंहटाएंघोर शाकाहारी तो हमहूँ हैं..आपकी स्थिति समझ सकते हैं...
बस साधुवाद है इस पर आपको, और क्या कहूँ?
जवाब देंहटाएंजितने भी रिश्ते संजोये हैं आपने, सब बरकरार रहें।
जीवन में कई बार इसे पल आते हैं जब इंसान गहराई से कई बातें ... और कई रिश्तों को समझता है ... फिर चाहे वो इंसानियत के रिश्ते ही क्यों न हों ... लंबे चलते हैं ऐसे रिश्ते ...
जवाब देंहटाएंmota bhai ka mota bhai ke liye mota bhai ke dwara
जवाब देंहटाएंnaman....
pranam.
bouth he aacha blog hai aapka dear
जवाब देंहटाएंMusic Bol
Lyrics Mantra
शानदार संस्मरण
जवाब देंहटाएंpadhkar bahut achcha laga ki aaj bhi aap jaise log hain jo rishton ki ahmiyat ko samajhte hain.
जवाब देंहटाएंgood samaritan....bahut aachha.......
जवाब देंहटाएंक्या स्वप्न भी सच्चे होतें है ?...भाग-५.,यह महानायक अमिताभ बच्चन के जुबानी.
मर्मस्पर्शी संस्मरण।
जवाब देंहटाएंदवे जी के लिए तो आप देव बन कर आए।
ख़ून का यह रिश्ता कुछ सोचने के लिए बाध्य करता है।
ऐसे संस्मरण रिश्तों की बुनियाद मजबूत करते हैं। जब घटते हैं तो हिला के रख देते हैं, जब याद आते हैं तो सुख देते हैं कि ईश्वर ने हमे कर्तव्य मार्ग से डिगने नहीं होने दिया।
जवाब देंहटाएंआप बताय नहीं तो का हमको मालूम चल गया ... सलिल जी ... आपको शादी की वर्षगाँठ की बधाई ... भाभी को भी हमारा प्रणाम कहें ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसलिल सर इतना मार्मिक और मानवीय विवरण कि दिल भर आया.आपकी इस सहृदयता और साथियों के प्रति लगाव की बात सोचकर अभिभूत हूँ.आपने इतनी गंभीर बात इतने सहज शब्दों में कह दी. आपकी व्यंग्य रचनाएँ भी पढ़ी है मैंने ,त्यौहार के बारे में आपके विचार और भाव भी पढ़े मैंने ,पर यह रचना उससे आगे बढ़कर कुछ कहती है.
जवाब देंहटाएंएक और बात,आपको शादी की वर्षगांठ पर बधाई देना भूल गया था,देर से ही सही,आप मेरी ओर से भी बधाई स्वीकार करें.
आपकी लेखन कला की शानदार मिसाल...
जवाब देंहटाएंसलिल जी, रिश्ते बनाने और निभाने की कला आपसे सीखनी है|
जवाब देंहटाएंमोटा भाई तक हमारी शुभकामनाएं पहुंचें!
जवाब देंहटाएंमेरे बाबा जी और पिता जी का भी एक ऐसा ही एक्सीडेंट हुआ था :(
जवाब देंहटाएंसादर