हर सहर का अपना बिसेसता होता है. एही बिसेसता ऊ सहर का पहचान बन जाता है. आगरा का ताजमहल, दिल्ली का क़ुतुब मीनार, मुम्बई का चौपाटी, कोलकाता का हावड़ा ब्रिज, लखनऊ का भूल-भुलैया, चंडीगढ का पत्थर-बाग (रॉक-गार्डन) आदि. इसके पीछे कुछ इतिहास अऊर कुछ पर्यटन का भी जोगदान है. मगर, हमरे लिए सहर का अलग पहचान है. हमरे लिए कोलकाता का मतलब मनोज कुमार, मुम्बई का मतलब रश्मि रविजा, अंशुमाला रस्तोगी, स्वप्निल और वर्तिका, इंदौर का मतलब अर्चना, जबलपुर का मतलब अनूप सुकुल, लखनऊ का मतलब गिरिजेस राव, बनारस का अर्थ पंडित जी अरविन्द मिसिर और देवेंदर पांडे, कानपुर का मतलब आचार्य परशुराम राय अऊर हरीश गुप्त, पुणे का मतलब क्षमा, चंडीगढ का मतलब चैतन्य आलोक अऊर मनोज भारती, चेन्नई का मतलब प्रसांत, मैनपुरी माने सिवम बाबू अऊर नोएडा माने सतीस सक्सेना होता है. एही नहीं, बिदेस में भी लन्दन का मतलब शिखा अऊर पीट्सबर्ग का मतलब इस्पात नगरी नहीं, अनुराग नगरी है.
पिछला हफ्ता ऑफिस के काम से बेंगलुरु जाने का मौक़ा मिला. जाने के पहिलहीं हमरा दिमाग में एक साथ तीन चार गो नाम घूम गया. हमरी सरिता दीदी अऊर बड़े भाई राजेस उत्साही, प्रिय भतीजा करण समस्तीपुरी अऊर भारतीय रेल के बहुत बड़ा अफसर, मगर सालीनता से भरपूर प्रवीण पांडे जी. अभिसेक हमरे जाने के पहिलहीं दिल्ली आ गया था. खैर, जाना फाइनल होते ही हम पहिला काम ई किये कि सब लोग को मेल करके अपने आने का इत्तिला कर दिए. सब लोग का जवाब भी आ गया. समस्या एही था कि हमरा कार्जक्रम ओहाँ जाकर कैसा रहता है. इसीलिये सनीबार को प्रोग्राम समाप्त होने के बावजूद भी हम इतवार के साम का फ्लाईट बुक किए थे, ताकि ई डेढ़ दिन हमरे हाथ में रहे अऊर हम ई लोग से मिल सकें.
पूरा हफ्ता एतना काम का ब्यस्तता रहा कि कहा नहीं जा सकता है. अऊर दू दिन के बाद घर का इयाद सताने लगा सो अलग. मन को समझाए. सरिता दीदी को फोन लगाए. उनके साथ सबसे बड़ा समस्या उनके स्वास्थ को लेकर है, इसी कारन हम उनको परेशानी में नहीं डालना चाहते थे. उनके प्यार के बारे में त कोनो संदेह नहीं किया जा सकता था. जेतना दिन रहे, लगभग हर रोज उनका फोन आता रहा. दिक्कत एही था कि हमरा फोन दिन भर बंद रहता था अऊर रात में देर से लौटने के कारन बात रात में ही हो पाता था.
करण जी अऊर राजेस जी दुनो आदमी का पाँच दिन हफ्ता वाला ऑफिस है, इसलिए सनीचर अऊर एतवार से ई लोग को कोनो परहेज नहीं था. सरिता दी को मना करके (उनका ड्राइवर नहीं था अऊर अकेले बाहर निकालना वर्टिगो के कारन ऊ हमेसा टालती हैं) हम तनी निश्चिंत हुए. अऊर सनीचर को भी देर से लौटने के बावजूद भी राजेस जी अऊर करण जी को फोन करके प्रोग्राम फाइनल किये कि बस अभिये हमलोग लाल-बाग में मिलेंगे. करण जी बताए कि उनको आधा घंटा लगेगा अऊर उत्साही जी को एक घंटा.
इसी बीच दू दिन पहले अभिसेक को दिल्ली फोन करके प्रवीण जी का नंबर मांगे, मगर ऊ नंबर गलत निकला (नंबर सही था, मगर उधर से कोइ गरज कर बोला, रौंग नंबर). प्रवीण जी को मेल किये कि या तो हमको फोन करें या अपना नंबर दें. जवाब नहीं आया त लगा कि मेल उनके नजर से छूट गया होगा. बाद में एसेमेस से ऊ खबर किये अपना नंबर. फोन से बतियाए, प्रोइग्राम बताए, त उनका ऑफिसियल ब्यास्तता के कारन ऊ भी असमर्थता जता दिए, मगर ब्रेक-फास्ट पर एतवार को आने का न्यौता जरूर दिए. ऊ हमको नकार देना पड़ा, काहे कि एतवार हमरे बेटी-दामाद के लिए रिजर्भ था.
लाल बाग पहुंचे त गणतंत्र दिबस के फ्लावर-सो के कारन टिकट का बिक्री पहिलहीं बंद कर दिया गया था. मगर जनता-राज में दरबान बोला कि दस रुपया का टिकट के बदला में तीस रुपया देकर आप जा सकते हैं. उत्साही जी से मिलना हो अऊर हम भ्रष्टाचार का रास्ता अपनाएँ, ई भला कैसे हो सकता है! तुरते करण जी सामने आ गए. ब्लॉग पर देखाई देने वाला फोटो से जादा मासूम चेहरा अऊर सालीनता. हमरा पैर छुए अऊर फिर बात सुरू. साहित्य, ब्लॉग अऊर नाटक का बात. ई नाटक करने वाला लोग के मन में नाटक का ऐसा भायरस समा जाता है कि का कहें. करण जी के नाटक का जो अनुभव सुने, त सुनकर मजा आ गया. भबिस में पोस्ट लिखायेगा जरूर इसपर.
उत्साही जी का कोइ पता नहीं था अऊर हमलोग को सांझ के अन्धेरा में हर आने वाला आदमी राजेश उत्साही नजर आ रहा था. पता करना मोसकिल था कि हम सावन के अंधा थे कि परमात्मा के खोजी जिसको हर प्राणी में राजेस उत्साही का छबि देखाई दे रहा था. खैर ऊ आये. देर के लिए माफी भी मांगे. मगर हमको अंदर से अफ़सोस लग रहा था कि उनको परेसान होना पड़ा. मगर उनके चेहरा पर न थकान का कोनो निसान था, न परेशानी का. ब्लोगर-मीट के जगह, सड़क पर सुरू हुआ ब्लोगर मार्च. कभी रास्ता भुला गए, कभी भोजनालय में भीड़ के मारे भागे. मगर इस बीच बहुत सा बात हुआ. चिंता एक्के बात को लेकर था कि आजकल लिखना कम होता जा रहा है या कम हो चुका है. कविता पर भी बात हुआ अऊर आहिस्ते से बड़े भाई ने बताया कि उनका भी किताब छापने का तैयारी में है अरुण चंद्र राय जी के सौजन्य से.
करण जी इस बीच एकदम खामोस रहे. संस्कार से बंधे थे सायद कि जब दू गो बड़ा आदमी बात करे, तो बीच में नहीं बोलना चाहिए. उनका चुप्पी देखकर भरोसा ही नहीं हो रहा था कि एही आदमी ‘देसिल बयना’ लिखता होगा या ‘स्मृति शिखर से’. खाना खाए, मगर करण जी सेल्फ सर्भिस वाले होटल में हमको अपने हाथ से थाली लाकर दिए. बड़प्पन का एहसास हुआ. अऊर अपना संस्कार के प्रति अभिमान.
उत्साही जी के चेहरा से थकान लापता था अऊर खुसी बरस रहा था. कोइ बनावट नहीं. समय (जो बेंगलुरु के ट्रैफिक का भेंट चढ गया था) के अभाव में लगा जैसे मन नहीं भरा है. करण ने आग्रह किया कि चाचा जी हमारे घर चलिए. मगर बेटी को का जवाब देते इसलिए माफी मांग लिए. रात काफी हो गया था. बेंगलुरु का सड़क ऐसे भी सुनसान होने लगता है जल्दिये. हम ऑटो लेकर अपने होटल चले गए. करण जी अऊर राजेस उत्साही जी अपने घर के तरफ. होटल में करीब घंटा भर बाद फोन आया उत्साही जी का कि ऊ घर पहुँच गए अऊर हमको सूचित कर रहे थे. एकदम अपनापन.
एतवार बेटी अऊर दामाद के नाम रहा. सात साल बाद मिल रहे थे हम लोग. पूरा दिन उन लोग के साथ गाड़ी में घूमे-फिरे, शॉपिंग किये अऊर साम को वापस दिल्ली. आधा रात में जब घर पहुंचे त बेटी खुस. एक हफ्ता बाद परिबार से मिले. मगर मनेमन लग रहा था कि एगो परिबार पीछे छोड़ आये हैं.
ब्लोगिंग से ये तो लगता है कि हर शहर में अपना जानने वाला कोई न कोई है ... अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंए भाई ... एतना सुन्दर लिखाई में हमरा शहर गुम हो गया क्या ? बहिन का नामे नहीं लेंगे तो लोग बाग़ रिसता कैसे जानेगा
जवाब देंहटाएंदीदी प्रणाम! सिर झुकाए हैं.. सजा मंजूर!
हटाएंउत्साही जी से ये सब सुन चुके थे. लेकिन आपके पोस्ट में खुद को भी पा लिए. जी हाँ, उत्साही जी का संग्रह विश्व पुस्तक मेला से पहले आ जायेगा. करन सचमुच मासूम है. उसे देख लगता नहीं है कि वो लिखता भी होगा. बढ़िया वृतांत.
जवाब देंहटाएंआपकी कलम और परिचय की इस कड़ी को पढ़कर सुखद अनुभूति महसूस कर रही हूं ... सर्वप्रथम आपका बहुत-बहुत आभार मेरे ब्लॉग पर आकर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए ।
जवाब देंहटाएंआपके इस उत्कृष्ठ लेखन का आभार ...
जवाब देंहटाएं।। गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं ।।
वह सुखद स्मृति...! वह आनंद तो अनिर्वचनीय था... अभी भी है।
जवाब देंहटाएं"चार मिले चौतिस खिले, बीस खड़े कर जोड़ ।
सज्जन से सज्जन मिले, पुलके साठ करोड़॥"
उस संगम की पुलक की अनुभूति आज भी मेरे रोम-रोम में है।
धन्यवाद !
बहुत सुंदर प्रस्तुति,आपके लेखन को पढकर लगा की ब्लॉग जगत का रिस्त्ता और प्रेम अपनो से खी ज्यादा है,उम्दा पोस्ट,...
जवाब देंहटाएंWELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....
Bahut pyara aalekh!
जवाब देंहटाएंGantantr Diwas kee anek shubh kamnayen!
तो एइसन ब्लोगिंग मिलन समाप्त हुवा ... प एक सिकायत है ... जब कोलकाता का मतलब मनोज कुमार, मुम्बई का मतलब रश्मि रविजा, अंशुमाला रस्तोगी, स्वप्निल और वर्तिका, इंदौर का मतलब अर्चना, भोपाल का मतलब अनूप सुकुल ......... तो दुबई का मतलब काहे नहीं लिखे ...
जवाब देंहटाएंचलिए इस बार तो आपको मुआफ करते हैं ... अगली बार नहीं न करेंगे ....
मज़ा आ गया पूरी पोस्ट पढ़ के आपकी ...
यह बात तो बिलकुल सही कही आपने .शहर की पहचान अब बदल गई है हमारे लिए.कहीं किसी भी शहर में हों,बेशक किसी से पहचान न हो या मुलाकात का मौका न हो फिर भी नजरें घुमती रहती हैं कि क्या पता कहीं कोई ब्लोगर मानुष टहलता नजर आ जाये.ब्लोगिंग ने अपनों का दायरा बड़ा दिया है.
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी सी पोस्ट सलिल जी !
अरे का बताएं शिखा जी, हमरे दफ़्तर का एगो टीम जिसमें बड़े छोटे सब रैंक के पदाधिकारी थे, ऊ लोग इंगलैंड जा रहा था, त उनको हम बोले कि हमरा जान पहचान का एगो फैमिली रहता है, उससे ज़रूर मिलिएगा मेरा नाम लेकर।
हटाएं:) बहुत अच्छा किया मनोज जी !
हटाएंशुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंसब कहते हैं "आभासी दुनियां "...पर यहाँ मिला अपनापन स्नेह इस टैग का मजाक उडाता है...
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लगा विवरण ,जैसे हम भी इसमें शामिल हों...
वर्टिगो नाम सुनते ही इसका तकलीफ सामने तैर गया..काहेकी हम भी इससे जबरदस्त ढंग से पीड़ित हैं...
जहाँ जाते हो, वहीँ घर बना लेते हो, सलिल भैया !
जवाब देंहटाएंमन को बांधने का यह आकर्षण शायद आप में ही है और अपनत्व का क्या कहें, लगता है आप दोनों सगे बहन भाई ही हैं...
इस सादगी और स्नेह के साथ आप, अपने आप में एक उदाहरण हैं !
@ "चार मिले चौतिस खिले, बीस खड़े कर जोड़ ।
जवाब देंहटाएंसज्जन से सज्जन मिले, पुलके साठ करोड़॥".....
iti blogger march padhitwa....rom-rom pulkit cha kilkit bhaye.....
pranam.
क्या बात है....एक पंथ दो काज...ऑफिस का काम भी निबट गया...और इतने लोगो से मिल-मिला भी लिए...
जवाब देंहटाएंरोचक वृत्तांत
वाह भई, मिलन हो तो ऐसा और वृतांत लिखनें का तो कोई जोड़ नहीं। आपको तो स्मृतिबाज़ ही कहना पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह जी मेल मिलाप चल रहा है। अच्छी रपट है।
जवाब देंहटाएंपता नहीं कैसे आप खोपोली के एक मात्र ब्लोगर को भूल गए...खैर ये तो मजाक की बात है...आभासी दुनिया के लोगों से रूबरू मिलने का आनंद ही कुछ और होता है...हम भी ऐसे आनंद उठा चुके हैं...ऐसा अपना पन मिलता है के क्या कहें...आप से मिलना अभी बाकी है जो आज नहीं तो कल इश्वर की कृपा से जल्द ही होगा...अच्छा लगा आपकी भेंट की कथा पढना...ऐसे ही मिलते मिलाते रहें...
जवाब देंहटाएंनीरज
Utsahi ji ke blog par aur yahan alag-alag andanj mein yah bhentvartha padhkar man ko bahut achha laga..
जवाब देंहटाएं....Yun abhasi duniya se pratyaksh bhent ho jaana aaj ki duadti bhagti jindagi mein kam sukhad kshan nahi kahe jaa sakte hain...
bahut sundar bhentvarta...
एक अकेला
जवाब देंहटाएंगया शहर में
कैसा लौटा
पूछो मत!
मिले वहां
उसको दो स्नेही
मिला प्यार
भर झउआ!
दिल में लेकर
लौटा घर में
बांट दिया
इक पउआ!
बतिया उसकी
कितनी मीठी
पूछो मत!
एक अकेला
गया शहर में।
आप हमारा मजाक ना बनाते थे ... "सभी मैनपुरी वासियों की ओर से ..." ओर देखिये तो आज क्या कर दिए है आप बातो बातो में ...
जवाब देंहटाएं"मैनपुरी माने सिवम बाबू"
दादा सच कहते है ... इस से बड़ा कुछ नहीं मेरे लिए ...
प्रणाम !
बड़ा हैप्पनिंग टूर रहा आपका तो, बाबा भारती से भी मिलना हुआ और करण बाबू से भी। अपनी फ़्रीक्वेंसी लेवल के लोगों से मिलना सभी पक्षों के लिये सुखकर ही रहता है। और आपसे तो जो मिलेगा, आपकी अच्छाईयों की खुशबू से सरोबार होगा।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लगा आपके घर से बाहर के परिवार से मिल कर....!
जवाब देंहटाएंबड़े भाई!
जवाब देंहटाएंआज त अंगरेज़ी में बतियाने का मूड हो रहा है। काहे कि जो फ़ोर्स अंगरेज़ी में है ऊ ... छोड़िए पहले बोलिए देते हैं ...
आई रेट दिस आर्टिकल ऐज़ वन ऑफ योर बेस्ट!
करन का वरसन सुनिए लिए थे फोन पर। दोसरके दिन ऊ बोला-बतियाया। राजेस जी का ... उनके ब्लॉग पर पढ़े थे। आज आपका पढ़ के त एक बार केतना दिन के बाद फिर से आंख भर आया। ऐसा करामात आपही कर सकते हैं।
हम भी शामिल हो गए जी इस ब्लॉगर-बंधु-बैठक में इस सुंदर यात्रा-वृतांत के साथ!!!
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर देखाई देने वाला फोटो से जादा मासूम चेहरा अऊर सालीनता...करण जी को नमस्कार!!!
पता करना मोसकिल था कि हम सावन के अंधा थे कि परमात्मा के खोजी जिसको हर प्राणी में राजेस उत्साही का छबि देखाई दे रहा था...
उत्साही जी को प्रणाम
और आपको साधुवाद इस पोस्ट के लिए!!!
बहुत प्यारी पोस्ट है...
जवाब देंहटाएंयहाँ स्वीडन में भी आपका एक परिवार रहता है... कभी इधर आना हो तो हमारा सौभाग्य होगा!
सच्ची ! शहर अब ब्लोगर्स के नाम से मन में उभरते हैं. हम भी दो बार दिल्ली गए तो सोचा कि यहाँ सलिल जी से मिलना है ...पर नम्बरवये नहीं था ......अब शायद अप्रेल में कभी जाना होगा तो कोशिश करेंगे ...पर महाराज नम्बरवा त दीजिये.
जवाब देंहटाएंकभी हमरे जंगल की तरफ आइयेगा त भूलियेगा मत ....हम जंगल से निकल के सड़क पर आ जायेंगे आपको लेने ......सेर-भालू-चीता सबसे मुलाक़ात करवा देंगे ...दुर्लभ ब्लाइंड फिश से भी ....और भारतीय नियाग्रा से भी .....और ....आप पहले तसरीफ तो लाइए .....
यह एक अच्छी शुरुआत है ...होना तो यही चाहिए कि हम जब भी कहीं जाएँ तो वहाँ के ब्लोगर से मिलने की कोशिश ज़रूर करें ........वैसे ब्लॉग ने हमारी दुनिया हमारे कितने करीब ला दी है ...सोच कर बहुत अच्छा लगता है.........
डॉक्टर साहब!
हटाएंदिल्ली के सीमेंट का जंगल हो या आपके बस्तर का हरियाला जंगल, यहाँ की ब्लाइंड सरकार हो या आपकी ब्लाइंड फिश, यहाँ के आदमखोर दोपाये हों या आपके उधर के चौपाये, यहाँ का चारित्रिक फाल हो या आपका देसी नियाग्रा फाल..
परमात्मा ने चाहा तो मिलेंगे ज़रूर, इंशा अल्लाह!
स्वागत है ....
हटाएंमाओवाद के सुर में जहाँ रोकर भी है गाना
पता बारूद की दुर्गन्ध से तुम पूछ कर आना.
बिना दीवारों का कोई किला गर देखना चाहो
तो बस्तर के घने जंगल में चुपके से चले आना.
बातों-बातों में व्यवस्था पर काव्यात्मक तमाचा मारने से बाज नहीं आते आप भी.
यहाँ की ब्लाइंड सरकार हो या वहाँ की ब्लाइंड फिश .....
मज़ा आ गया. चलिए, अब निकालिए गरमागरम लिट्टी-चोखा ......
ब्लागिंग करते करते रिश्ते बनते जाते हैं... बस निभाने को होना।
जवाब देंहटाएंबढिया पोस्ट।
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....
जय हिंद... वंदे मातरम्।
वाह बैंगलूरू में आये हमें पता भी ना चला :( एक ब्लॉगर से मिलने से रह गये, आज हमें पता चला कि उत्साही जी भी बैंगलूरू में हैं ।
जवाब देंहटाएंब्लॉग ने जितना अपनापन और परिवार जितना प्यार दिया है, कभी सोचा भी न था।
सही कहे हैं ...किसी भी शहर का नाम ले तो वहां के ब्लॉगर ही ध्यान में आते हैं , जैसे बिहार का नाम आते ही बिहारी ब्लॉगर !
जवाब देंहटाएंचेन्नागि इदिरा!
जवाब देंहटाएंउत्साही जी, करण जी और अन्य परिवारजनों से मुलाकात की बधाई! वाकई आप (और अभिषेक भी) बैंगलोर को बहुत मिस कर रहे हैं।
बेंगळूरु, बेंगळूरु, बेंगळूरु! एक शहर जहाँ लगभग हर साल रहा मगर फिर भी बहुत कम रहा। उस एक शहर में उतने कम समय में इतना कुछ हुआ कि आज तक शायद किसी और नगर-गाँव में नहीं हुआ। क्या कहूँ, आपने शहर का नाम लेकर ही इमोसनल कर दिया ...
बहुत ही अच्छा लगा विवरण मामा जी
जवाब देंहटाएं@ शिखा जी की बात से पूरी तरह से सहमत हूँ
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....!
जय हिंद...वंदे मातरम्।
मेरी टिप्पणी फिर ग़ायब?
जवाब देंहटाएंअरुण जी से मिलने जब करन जी आये थे हमने भी देखा था... बहुत शालीन हैं...बढ़िया वृतांत... गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना
जवाब देंहटाएंइ अनूप शुकुल कब से भोपाल में रहने लगे ? हम तो समझे कानपुर से जबलपुर गए है वो .
जवाब देंहटाएंदिमाग में जबलपुर था, लिखते समय भोपाल लिख गया... सुधार के लिए धन्यवाद!!
हटाएंहकीकत में बदलती आभासी दुनिया का रोमांच.
जवाब देंहटाएंउस दिन से पैर में स्केट और शरीर में रिंच लगा है, गर्दन में मोच और चार दिन बाहर, आज घर पहुँच कर सुस्ता रहे हैं।
जवाब देंहटाएंसोचे कि शनिवार की रात को प्रयास किया जाये, कार्यक्रम के बाद घड़ी देखे तो 11:30, संकोच के कारण फिर आपको फोन नहीं किये।
पहले मुझे लगता था कि संयोग सिर्फ फिल्मों में ही होते हैं... लेकिन इस यात्रा के बाद विश्वास हो गया कि संयोग होते हैं वास्तविक जीवन में भी... सरिता दी और आपसे से न मिल पाना इसी बात का प्रमाण है!!
हटाएंमजा आ गया भाई, आपकी भावभरी पोस्ट पढ़ के ,
जवाब देंहटाएंसच में औपचारिकतारहित बातों में ही असली आनंद छिपा है.
हम रहते अगर बैंगलोर में तो आपसे मिलने हर दिन आ जाते होटल में ही :)
जवाब देंहटाएंखैर फिर भी आपका ट्रिप मस्त रहा चचा :P
:) :)
जवाब देंहटाएंकाश,आपके बंगलोर पधारने के कार्यक्रम का पता होता तो आपसे
जवाब देंहटाएंभेंट होती , में भी पिछले ६ साल से बंगलोर के मस्त मोसम का
मजा ले रहा हूँ
आप अकेले कहाँ थे ।( आप जैसे लोग अकेले हो भी नही सकते )पूरा शहर ही तो आपके आसपास था । किसी जगह या शहर को को किसी के नाम से जानने वाली बात दिल को छू गई । ऐसा सबके साथ होता है ।लेकिन इस तरह लिखने का विचार शायद ही किसी को आता हो । आपका संस्मरण पढते-पढते बैंगलोर का भ्रमण भी होगया । शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंसभी बड़े आदमियों की बातें सुनकर अब हमें खुश होने से कौन रोकेगा भला !
जवाब देंहटाएंमेल-मिलाप वार्ता अच्छी लगी।
bahut sunder vivran likhe yatra ka......
जवाब देंहटाएंएक बार फिर कहना चाहूँगा , भूते सुन्दर परिवार मिला है आपको , भोले बाबा आप सब की रक्षा करें |
जवाब देंहटाएंसादर