रविवार, 29 जनवरी 2012

जादूगर


१९७० के दसक का सुरुआत - पटना:
इस्कूल में पढते थे, पटना का एगो हिन्दी इस्कूल. जासूसी कहानी का चस्का सुरुए से था. माताजी इब्ने सफी, बी.ए. की सौखीन अऊर हम पढते थे हिंद पॉकेट बुक्स से निकलने वाला कर्नल रंजीत का उपन्यास. हमरे साइंस के गुरूजी सिच्छक कम दोस्त जादा थे, बोले कि अगर इतने सौख है थ्रिल्लर पढ़ने का तो जेम्स हेडली चेज़ पढकर देखो. गुरूजी का सुझाव... इनकार नहीं कर सकते थे. मगर दू गो समस्या बिकट था. अंगरेजी उपन्यास पढ़ने से “ब्लैक सिप” बनने का ख़तरा त था ही, साथ में सबसे बड़ा समस्या था जेम्स हेडली चेज का कभर. घरे लेकर गए त पिटाई पक्का था. गुरूजी समझ गए. अपना कलेक्सन से दिए एगो किताब.
बास्तव में जेम्स हेडली चेज का किताब दू गो अलग-अलग प्रकासन से छपता था. पैंथर अऊर कोर्गी प्रकासन. पैंथर प्रकासन के किताब में अपराधी थीम का कभर होता था जबकि कोर्गी के जिल्द पर अधनंगी औरत का फोटो. पहिला किताब पढ़े “स्ट्रिक्टली फॉर कैश”. थ्रिल पराकाष्ठा पर पहुँच गया. उसके बाद रुके नहीं. आज भी पटना में हमरे आलमारी में जेम्स हेडली चेज का लगभग सब उपन्यास भरा हुआ है. उपन्यास का नाम भी बेजोड होता था.. डेड स्टे डम, ले हर अमंग द लिल्लीज़, वेल नाऊ, माई प्रेटी, यू फाइंड हिम, आई’ल फिक्स हिम, लाइक अ होल इन द हेड. जोकर इन द पैक. हिन्दी थ्रिल्लर के मोकाबले जादा थ्रिल्लिंग.
उमर बढ़ने के साथ जब हिन्दी अपराध सिनेमा देखने लगे तब लगा कि सब उसी सब उपन्यास का नक़ल है. पर साल एगो सिनेमा देखे ‘जॉनी गद्दार’. शानदार थ्रिल, मगर सबसे जादा खुसी ई बात से हुआ कि ई फिलिम समर्पित किया गया था “जेम्स हेडली चेज़” को. खुसी हुआ कि कोइ त ईमानदार निकला.

सन २००८ – दिल्ली:
मोटर साइकिल पर सवार हम अऊर चैतन्य ऑफिस से लौट रहे थे. इधर-उधर का बात करते हुए, जिसमें ऑफिस का सिकायत, राजनीति का झूठ, साहित्य का गतिबिधि अऊर कुछ ब्यक्ति़त बातचीत. सिनेमा का भी बात होते रहता था बीच-बीच में. अचानक ऊ बोले, “मेरे नाना जी भी फ़िल्में बनाया करते थे.”
“नाना जी?”
“हाँ! मेरी माँ के चाचा जी!”
फिलिम के नाम पर त हम चर्चा छोडिये नहीं सकते हैं. बात आगे बढाए हम पूरा दिलचस्पी से.
“कौन हैं वो? कौन सी फिल्म बनाई है उन्होंने?”
“मिथुन चक्रबर्ती की सीरीज़ थी न, जी-नाइन वाली! और वो रानी और लालपरी. वही.” उनके आवाज में झिझक भी था अऊर संकोच भी अऊर डाउट भी कि पता नहीं हम उनको पहचान पायेंगे भी कि नहीं. 
“अरे कौन! कहीं आप रवि नगाइच की बात तो नहीं कर रहे!!”
“हाँ वही! आप जानते हैं उनको?”
“जानते हैं??? अरे हम तो फैन हैं उनके!”
चैतन्य को लगा होगा कि हम मजाक कर रहे हैं. जबकि उनको हम ई भी नहीं बताए थे कि हमारा फुफेरा भाई राकेस त उनका जबरदस्त फैन है, ऊ का कहते हैं डाई-हार्ड फैन.
“ऐसे कोइ हिट डायरेक्टर तो नहीं हैं वो, फिर आप कैसे जानते हैं?”
“अरे वो तो डायरेक्टर बाद में हैं! पहले तो वो सिनेमैटोग्राफर हैं!”
अब बारी था उनके चौंकने का अऊर खुस भी हुए ऊ हमरे जानकारी पर, इत्मीनान भी हुआ उनको कि जब हम इतना जानते हैं त सचमुच पसंद करते होंगे अऊर कम से कम मुंह देखकर नहीं बोल रहे हैं.
“बिलकुल सही सलिल भाई! मैंने ये बात इसलिए नहीं बताई कि शायद आपको पता हो या नहीं.”
“कैसी बात करते हैं सर! पता नहीं आपको मालूम है या नहीं लेकिन बता दें कि एक्सपेरिमेंटल फोटोग्राफी में उनका कोइ जवाब नहीं. उनकी एक फिल्म आई थी “काला सोना”, मेकेन्नास गोल्ड की नक़ल थी. उसमें आर. डी. बर्मन ने एक गाना कम्पोज किया था जो आशा भोसले की आवाज़ में था. उस गाने को ऐसा रिकार्ड किया गया था कि वो ड्यूएट लगता था. रवि नगाइच साहब की फोटोग्राफी में हीरोइन परदे पर दो-दो दिखाई देती थी और दोनों अलग अलग आशा भोसले की आवाज़ में गा रही होती थीं. हिन्दी फिल्मों में ऐसी फोटोग्राफी नई थी.”
“सलिल भाई! कमाल हो आप! मैं तो किसी को यह बात नहीं बताता था झिझक से. मगर आपने तो मुझे भी चुप करा दिया.”

सन २०१२ – दिल्ली, चंडीगढ़:
दस दिन पहले अचानक एक रोज रात में हम दुनो, हम अऊर चैतन्य, फोन पर बतिया रहे थे कि नाना जी यानि रवि नगाइच साहब का चर्चा निकल गया. बहुत सा बात पता चला. १९३१ में अतरौली, उत्तर परदेस में ब्राह्मण परिबार में पैदा हुए. मगर सौख सिनेमा के तरफ खींच कर ले गया. फोटोग्राफी पहिला सौख था. रंग एकदम काला, इसलिए कोंट्रास्ट में उजला कपड़ा पहिनते थे. फ़िल्मी जिन्नगी का सुरुआत साउथ से किये, धार्मिक फिलिम ‘सीता राम कल्याणम’ (एन.टी.आर. का फिलिम). फोटोग्राफर थे इसलिए धार्मिक फिलिम में ट्रिक फोटोग्राफी अऊर प्रयोग करने का बहुत गुन्जाईस था. अपने जैसा उजला ड्रेस पहिनाकर जीतेंद्र को जेम्स बोंड टाइप बना दिए फिलिम “फ़र्ज़” में. अऊर जीतेन्दर हिट. बाद में एही काम ऊ मिथुन चक्रवर्ती के साथ, फिलिम ‘वारदात’ अऊर ‘सुरक्षा’ में, जी-नाइन एजेंट बनाकर किए. उनके फोटोग्राफी का कमाल एतना जबरदस्त था कि मसहूर अंगरेजी फिलिम “एक्जोर्सिस्ट” पर आधारित फिलिम “जादू-टोना” जब ऊ बनाए, त ऊ फिलिम इतना डरावना बना (उनके फोटोग्राफी के कारन) कि तीन साल तक पर्तिबंध लगा रहा ऊ सिनेमा पर. दोसरा तरफ बच्चा लोग का सिनेमा “रानी और लालपरी” त का मालूम केतना बार देखाया है टीवी पर. फिलिम देखिये के लगता है कि ई आदमी डायरेक्टर कम फोटोग्राफर अधिक है.
उनका आख़िरी सिनेमा हम देखे थे “शपथ”. इसमें स्मिता पाटील का डबल रोल था. कमाल का डबल रोल. दुनो रोल में स्मिता पाटील इतना अंतर पैदा की थी कि दुनो एक्टिंग अऊर चरित्र में समानता खोजना मोसकिल था. ऐक्टर के खूबी के साथ-साथ ई डायरेक्टर का खूबी भी था.
 
जेम्स हेडली चेज के थ्रिल का कमाल और रविकांत नगाइच जी के फोटोग्राफी का जादू, सुनने में अलग अलग लग सकता है, मगर देह में जो सिहरन पैदा होता है ऊ एक्के है. चैतन्य जी से जब से ई रिस्ता के बारे में पता चला है, तब से हम उनको नाना जी ही कहते हैं. नाना जी ने हमरे थ्रिल के नसा को पर्दा पर साकार किया है. अपने समय से आगे के सिनेमैटोग्राफर और हमसे पूछिए त उनके लिए एक्के सब्द है हमरे पास – जादूगर!

53 टिप्‍पणियां:

  1. इन सब साहित्य धाराओं का अपना ही महत्व है...बहुत पढ़े हैं सब और बहुत सीखे भी हैं..

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  2. जादू टोना , रानी और लालपरी हम भी देखे ... शपथ मिस कर गए . पटना में मिले तो देखेंगे किताबों का खजाना

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  3. नगाइच जी के बारे में अच्छी जानकारी मिली ..हम तो कभी इतना पिक्चर देखे ही नहीं हैं :):)

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  4. "जादूगर" और आपको दोनों को हमारा प्रणाम ! आपके माध्यम से कितनी ही नयी नयी जानकारी मिल रही है ... जय हो दादा आपकी !

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  5. क्या बात है सलिल भाई रवि नगाईच जी के बारे में आपकी समझ हमसे कहीं ज़्यादा है । छुट्पन में उनके किस्से घर पर सुनता था कि कैसे वह घर से भागकर फिल्मी दुनिया में चले गये थे। अतरौली से कोई आता था तो उनके किस्से कहानीयां लेकर...घर में फिल्म देखना तो दूर, उसकी बात करने वाले को भी आवारा समझ जाता था। और जैसा अक्सर होता है, बाद में रवि नगाईच जी का जब नाम हो गया था तो उन्हे अपनी शान समझा जाने लगा ! अभी कुछ वर्ष पहले ही उनका देहावसान हुआ । मेरे ख्याल से राजेश खन्ना की फिल्म "मेरे जीवन साथी" में भी उनकी फोटोग्राफी और शायद निर्देशन भी था । किशोर के गीतो ने इस फिल्म को अमर बना दिया है।
    सलिल भाई, सारा परिवार इस पोस्ट को पढ़्कर अहोभाव से भर गया है। अहोभाव नाना जी के प्रति और और आपके भी !!

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    1. चैतन्य भाई! यह नाना जी को मेरी श्रद्धांजलि है!!

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    2. ओ मेरे दिल के चैन और चला जाता हूँ किसी की धुन में...दोनों अच्छे और अमर गीत हैं...

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  6. अच्छी जानकारी मिली आज जादूगर के बारे में.इत्तेफाक से इनमें से कोई फिल्म नहीं देखी है,न ही जेम्स हेडली को पढ़ा है.पर आपने कहा है तो पक्का ही सिहरन पैदा करने की क़ाबलियत रखती होंगी इनकी कृतियाँ.

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  7. शुक्रिया भैया ...इतना सब तो कभी जान भी न पाती ...

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  8. फ़िल्म त इस सब में सायदे कोनो छूटल होगा लेकिन आज हम आपसे बात इ सब नहीं करेंगे बड़े भाई।

    क्रनल रंजीत अ‍उर इब्ने सफ़ी को पढ़-पढ़ कर स्कूल कॉलेज पास कर गए। फिर बाद में ओम प्रकास सर्मा को पढ़ने का मौक़ा मिला। लेकिन जो आनंद सुरेन्द्र मोहन पाठक का उपन्यास पढ़ने में आया उसका जवाब नहीं। उसमें जेम्स हेडली चेज़, शिडनी शेलडन और कर्नल रंजीत का पूरा पैकेज था।

    और थ्रिल क्लाइमेक्स के मामले मे जॉनी मेरा नाम का जवाब नहीं।

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    1. मनोज जी! आपके इस कमेन्ट ने मेरे पोस्ट के एक अधूरेपन को दूर कर दिया.. (वैसे यह अधूरापन मेरी इस पोस्ट की आवश्यकता थी).. फिल्म "जॉनी गद्दार" सिर्फ जेम्स हेडली चेज़ को ही नहीं विजय आनंद साहब को भी समर्पित थी. ये दोनों थ्रिल के जादूगर थे. फिल्म "जॉनी मेरा नाम" का क्लाइमेक्स विजय आनंद का क्रियेट किया हुआ था और यकीन मानिए हिन्दी फिल्मों के इतिहास में फिल्माए गए बेहतरीन क्लाइमेक्स में से एक है!!

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    2. हम मनोज जी को सैकंड करते हैं। सुरेन्द्र मोहन पाठक हमें भी इन सबसे भारी लगे।

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  9. कर्नल रंजीत के उपन्‍यास तो हमने भी बहुत पढ़ें हैं। पर बाकी जितनों की आपने चर्चा की उनसे वंचित ही रहे। बहरहाल आप कहते हैं तो मान लेते हैं कि आप सचमुच जादूगरों की बात ही कर रहे हैं।
    *
    और हां चैतन्‍य जी आप सही हैं 'मेरे जीवन साथी' का निर्देशन रवि नगाईच जी का ही है।

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  10. आपका पोस्ट बहुत ही रूचिकर लगा । शुरू से अंत तक पढ़़ गया । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  11. सलिल भाई,
    रवि नागाईच जी का नाम तो सुन रखा था.लेकिन आपने जो जानकारी दी बहुमूल्य है.
    वो सिनेमा के जादूगर थे.
    आप शब्द के जादूगर हो.
    शाला कलम का जादू बरकरार रहे.

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  12. सर हिंदी सिनेमा पर एक अलग सी किताब लिखिए... भूले बिछड़े लोगों पर... इस बार विश्व पुस्तक मेला का थीम भी यही है.... हम प्रकाशित करेंगे... बाकी आज हम आपके आलेख को अंत से पढना शुरू किये हैं... क्योंकि हर बार अंत चौंकता था... और आज अंत से शुरू किये तो शुरुआत चौंका दिया....

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  13. कोन कोन दुनिया में टहला दिए आप हो ..आ बहुत सारा जानकारी तो ठीके जादू सरीखा लगा । कमाल बेमिसाल एकदम

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  14. आप और चैतन्य जी...कोई किसी से कम नहीं, दोनों ही सवा सेर! सिनेमा के विश्वकोश!...और विशालजी की बात में दम है। आप भी कोई कम जादूगर नहीं हैं...!

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  15. सलिल चैतन्य की जोड़ी बनी रहे ....
    इनसे बहुत कुछ सिखने को मिलेगा !
    शुभकामनायें !

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  16. आपने जो जानकारी उपलब्ध करवाई, वास्तव में वे जादूगर थे!!

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  17. पता नहीं आजकल कर्नल रंजीत जैसे नॉवेल अभी छपते हैं कि नहीं. एक बार सुरेंद्र मोहन पाठक से दिल्ली में किसी के यहां मिलना हुआ था. बहुत मुश्किल होता था पता लगा पाना कि किस किताब का सही लेखक कौन है, प्रकाशक पट्ठों ने तो लेखकों के नाम ही कापीराइट करवा रखे थे और दुनिया भर के छपासियों से 200-250 रूपये में ही नॉवेल ख़रीद कर इन ब्रांडेड नामों से छाप मारते थे...

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  18. रवि नगाईच जी के बारे में चर्चा करने का आभार। काला सोना और सीताराम कल्याणम् तो हमने भी देखी हैं और रानी और लालपरी के पोस्टर की हल्की सी याद है। आपके बताये लेखकों में से किसी को पढने का सौभाग्य नहीं मिला। (क्या इसीलिये भाषा में आपके जैसी रवानी नहीं आती?) शब्दों के जादूगर तो बेशक़ आप भी हैं। [देखता हूँ यदि यह टिप्पणी पहली बार में नहीं छपी तो सरस्वती वन्दना पढनी पड़ेगी]

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    1. इस टिप्पणी के (न छपने के)बहाने सरस्वती वन्दना का जो सुख प्राप्त हुआ उसका पुण्य मुझे भी मिलेगा ऐसी आशा करता हूँ!!

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  19. आपकी जानकारी का एक और नमूना मिला। अब तो ये भी लगता है कि अपने किसी प्रख्यात\विख्यात\कुख्यात परिचित के बारे में आपसे डरते डरते बतायेंगे तो पता चलेगा कि वो हमसे ज्यदा आपका परिचित है:)
    अरूण रॉय जी की बात पर गौर किया जाये, सुझाव अच्छा है।

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  20. अपने समय से आगे के सिनेमैटोग्राफर और हमसे पूछिए त उनके लिए एक्के सब्द है हमरे पास – जादूगर!अच्छी जानकारी मिली.

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  21. बेहद रूचिकर और जादूभरी पोस्‍ट ..आभार ।

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  22. हम भी आपके ‘डाई-हार्ड फ़ैन’हैं। संस्मरण में उल्लिखित साहित्य में से अधिकतर से तो मैं अभी तक वंचित हूँ, लेकिन आशा है कि पढ़ने के लिए अभी भी बहुत वक्त बचा हुआ है मेरे पास...! तो अब अपनी वांछित पुस्तक सूची में इन सब को जोड़ रहा हूँ।

    उन जादूगरों से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद !

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  23. शब्दों के जादूगर का ई पोस्ट पढ़के बहुत अच्छा लगा!

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  24. मस्त पोस्ट!!!!
    चचा, अब तो दिल्ल्ली में आप भी और हम भी...ई सब और अईसा बहुत सा बात आपके मुहं से सुनने को मिलेगा!! ;)

    बाई द वे, अबकी पटना में मिलना होगा तो सबसे पहले उ सब किताब हथियाना है हमको :D

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  25. Quoting abhi, "मस्त पोस्ट!!!!"
    इस ब्लॉग पर प्रकाशित होने वाली हर पोस्ट हमेशा बेमिसाल होती है:)
    सादर!

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  26. रवि नगाईच जी का नाम तो जाना- पहचाना है...पर इतनी सारी जानकारी आज आपके पोस्ट से मिली.

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  27. अच्छी जानकारी दी आपने मामा जी जादूगर के बारे
    वैसे मुझे तो कुछ भी नहीं पता इनके बारे में
    ....परिचय करवाने के लिए धन्यवाद !

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  28. जेम्‍स हेडली चेइज के साथ सुरेन्‍द्र मोहन पाठक याद आते हैं और फिल्‍म की बात हो नायक विजय आनंद वाली 'चोर चोर(शायद यही नाम था), बैंक लूट पर आधारित.

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  29. आपकी विशेष शैली में इन जादूगरों से परिचित होना अच्छा रहा।
    फिल्में (जादू टोना को छोड़ कर) सभी देख रखी हैं, किताबें तो खैर कम ही पढ़ पाया हूँ।

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  30. सलिल जी, जासूसी नावेल तो हमने भी खूब पढ़ा है,फिल्मे भी हमने ६५ से लेकर ९३ तक सब देखी है शायद ही कोई बची हो,..नावेल में वेदप्रकाश कम्बोज और फिल्मो में गुमनाम को भूल गए,..रवि नगाइच जी जाने माने
    फोटो ग्राफर है इनको कौन नही जानता,....फिर भी आपने बहुत अच्छी जानकारी प्रस्तुत की ...इसके लिए धन्यबाद,....
    फालोवर बन रहा हूँ
    welcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....

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  31. लो कल लो बात....अब पता चला कि आप को पढ़ना मस्त क्यों होता है....मगध के बड़े बासी आप...आपके पीछे में..शौक कई एक जैसे....फिल्म सुरक्षा औऱ लाल परी देखी हमने भी ..और पूरी देखी..सुरक्षा तो पटना में देखी.....रवि नगाइच को पढ़ा था बचपन में..जेम्स हेडली चेईज की किताब तो अभ भी पढ़ लेता हूं पर मजेदार बात ये है कि सुरेंद्र मोहन पाठक के हिंदी में अनुवादित जेम्स हेडली चेइज को ही ज्यादा पढ़ा ..मस्त रफ्तार और क्लाइमेक्स का जबरदस्त जादू होता है इन किताबों में..पर बाकी अनुवादक वो जादू नहीं जगा पाए जो पाठक की अनुदित किताबों में था ..जसूसी उपन्यास तो शायद जाने कितनी पढ़ी है....पता ही नहीं..देखिए कितने शौक मिलते जुलते हैं हम में..फिर भी कमाल है दिल्ली के बांशिदें नहीं मिलें अब तक ..चमत्कार ही है..हीहीहहीही,...


    और हां उस पोस्ट का टाइटल बदल दें...एक अकेला उस शहर में की जगह रख दीजिए एक अकेला कई लोगो के शहर में...

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  32. कुछो नहीं पढ़े हैं इ सब में से ! :( जादूगर तो हर क्षेत्र में होते हैं. बढ़िया.

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  33. चैतन्य जी से बहुत कुछ सिखने को मिलता है। जैसा आपको उन्होंने रवि नगाइच के बारे में अपने संबंधों का जिक्र किया वैसे ही हमें उनसे पता चला कि हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक,आचार्य और शोधार्थी डॉ. नगेन्द्र भी उनके नाना जी हैं। अब यह जानना रहता है कि रवि नगाइच साहब और डॉ. नगेन्द्र सगे भाई हैं या एक ही परिवारों से संबंधित हैं। बचपन में रानी और लाल परी की चर्चा खूब सुनी थी।

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  34. बाप रे, आपका फिल्‍मी ज्ञान तो गजब का है, हम तो पासंग भी नहीं हैं।

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  35. ढेर सारी नयी जानकारी मिली आपके इस पोस्ट के दौरान! बहुत सुन्दर एवं रोचक पोस्ट! जादूगरों से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद!

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  36. इतनी बडी जानकारी? वाह! कैसे हो? लगता है फर्वरी या मार्च मे नोयडा आऊँगी तब आपसे जरूर मिलूँगी। मेरी बेटी ने नोयडा 29 सेक्तर मे शिफ्ट कर लिया है। शुभकामनायें।

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  37. कर्नल रणजीत, विजय, विक्रांत, केप्टन विनोद ... ये तो हमारे भी प्रिय चरित्र रहे हैं ... बहुत मज़ा आता था उन दिनों ... और रवि नगाइच जी का नाम जाना पहचाना नाम झाई उस दौर के लोगों के लिए ... अच्छे जानकारी ले कर आते अहिं आप और यादों में पंहुचा देते हैं ...

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  38. अलग-अलग प्रसंगों को एक सूत्र में बांधना और फिर उसमें फलसफाना फूलदार गांठ लगाकर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना.......सुनता हूं, सलिल का अंदाज़े-बयां है कुछ और !!!

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  39. सनीमा के खेला अउर उपन्यास ....इनसे हमारा बहुत दूर का नाता रहा. . ऊ ज़माना कुछ अउरे था. सनीमा देखने में कुछ खतरा जादा था ...उपन्यास में कम था इसलिए पहिला उपन्यास चोरी से पढ़े थे, नाम था देवकी नंदन खत्री का लिखा चन्द्रकांता संतति. इसके बाद मोहन राकेश ...फिर शरत ...फिर जब शरत को पढ़ लिए त बाद में कोई अउर पसंदे नहीं आया. सिनेमा के मामले में आपका शौक आपकी कला के प्रति दीवानगी के कारण है. इस दीवानगी को सलाम !

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  40. अरे का बताएं हम आपको, केतना हँसे हम पढ़-पढ़ के.

    एकदम से भूलिए गए थें अपनी भासा. बहुते अच्छा लगा आपके इ ब्लौग पर आके! अब रोजे आया करेंगे!

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  41. शुरुआत की मनोज ,सुरेन्द्र मोहन पाठक ,प्रेम बाजपेई,गुलशन नंदा,ओम प्रकाश शर्मा और वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यासों से .....साहित्यिक उपन्यास कम ही पढ़ पाए.
    नगाइच जी के बारे में भी जानकारी मिली !आभार

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  42. रवि नगाईच जी के बारे में चर्चा करने का आभार।

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  43. कमाल है! इत्ता बढ़िया लिखा कि पूरी पोस्ट पढ़ गये! पहले से पता होता कि फिलिम उलम के बारे में है तो पढ़ने का श्रीगणेश ही न करते।

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  44. जानी गद्दार मैंने भी देखी , बहुत अच्छी मूवी थी और सच्चाई तो उसमे होगी ही , निर्देशक इतने बड़े और सच्चे आदमी जो हैं , उनकी और भी फिल्मे देखीं , बहुत अच्छी बनाते हैं ,
    नाना जी के बारे में जानकारी पाकर बहुत अच्छा लगा , वाकई उनकी कला से सजी कुछ फिल्मे मैंने भी देखी हैं लेकिन उनका नाम नहीं जानता था(दुःख के साथ)
    और अंत में जानकारी का स्रोत तो आपका भी कौनो कम नहीं है , पूरी रामायण खोल के रख दिए |

    -आकाश

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