[अली सैयद साहब की यह पोस्ट और उनका प्रोत्साहन जिसने मुझे यह पोस्ट आपसे शेयर करने का हौसला दिया!]
कच्चा घर, सामने दालान अउर पीछे अंगना. अंगना के चारों ओर देवाल. देवाल के पार गली, जिसमें दिन भर लोग-बाग का आवा-जाही लगा रहता था. गली के साथ देवी-स्थान और उसमें बिसाल पीपल का पेड़. गर्मी में हम लोग अंगना में बैठकर बतियाते, खेलते अउर पढाई करते रहते थे. गली से आने-जाने वाला लोग का माथा देखाई देता था अउर जब ऊ आदमी छवि बाबू के घर के पास पहुंच जाता, तब पीछे से ऊ पूरा देखाई देता था. इसका उलटा जब छवि बाबू के घर के तरफ से कोई आता, तो पूरा देखाई देता अउर पास आने पर खाली माथा नजर आता.
एक रोज साम को कोनो आदमी का माथा देखाई दिया अऊर छवि बाबू के घर के पास पहुँचने से पहले का मालूम कैसे सब लोग का ध्यान उधरे चला गया. ऊ आदमी का पीठ देखाई दे रहा था. ऊ आदमी उजला गंजी पहिने हुए था अउर छवि बाबू के घर के पास पहुँचाने से पहिले ही नजर से ओझल हो गया (सायद गायब हो गया). हम लोग घबराए अउर बाद में टेंसन कम करने के लिए मजाक उड़ाने लगे हम लोग. कोई बोला आत्मा होगा, कोई बोला भूत, कोई बोला कि गंजी पहिने था तो जरूर चाचा होगे! अउर हम लोग जोर-जोर से हंसने लगे!!
कुछ साल बाद:
सफ़ेद गंजी वाले आदमी का आना अब बहुत बढ़ गया था. जब भी हम लोग में से कोई भी अंगना में बइठा रहता त ई बात के तरफ जरूर ध्यान देता कि गली से कौन जा रहा है. मगर ऊ दिन आस्चर्ज का बात हुआ. अंगना वाला दरवाजा बाहर के तरफ खुला हुआ था, इसलिए गली से आने-जाने वाला सब आदमी पूरा देखाई दे रहा था. दरवाजा से देखाई देने वाला आदमी, गली से होकर, छवि बाबू के घर से आगे निकल जाता था. ओही घड़ी, सफ़ेद गंजी पहने हुए ऊ आदमी दरवाजा पार किया अउर गली में नहीं पहुंचा. भागकर देखा गया त ऊ नदारद था. पैदल चलकर कोई एतना जल्दी, एतना दूर नहीं निकल सकता था.
हम लोग (इहाँ स्पस्ट कर देते हैं कि हम लोग से हमरा मतलब घर का बच्चा-बड़ा सब लोग से है - जिसको जब ई घटना देखाई दे जाए) धीरे-धीरे ई घटना के आदी हो गए अउर एकदम मामूली घटना हो गया हमलोग के लिए! हाँ, एगो बात बताते चलें कि तब तक हम लोग ऊ आत्मा/भूत/साया/हवा को चाचा जी मान चुके थे.
कुछ और साल बाद:
पुराना घर टूट गया अउर पक्का मकान बन गया. घर के फाटक से ड्राइंग-रूम तक आते समय जमीन पर एगो बड़ा सा पत्थर का स्लैब है. बस्तब में ऊ ढक्कन है. जब कोई आता है त उसके ऊपर गोड़ धरते ही ऊ पत्थर हिल जाता है अऊर “खटाक” का आवाज होता है. ई आवाज का एतना अभ्यास हो गया है कि केतनो हल्ला में भी सुनाई दे जाता है अऊर हमलोग समझ जाते हैं कि कोई आया है. दरवाजा के तरफ ताकिये, चाहे ड्राइंग रूम के खिडकी से देख लीजिए, पहिला नहीं त दोसरा खिड़की से देखाई दे जाएगा कि कौन आ रहा है.
बताने का जरूरत नहीं है कि एक रोज हम लोग बैठ कर टीवी देख रहे थे अऊर बिना फाटक खुलने का आवाज हुए पत्थर का “खटाक” सुनाई दिया. सबलोग का नजर खिड़की पर. पहिला खिड़की से सफ़ेद गंजी पहिने कोई निकला, मगर दूसरा खिड़की तक कोई नहीं आया. कोई लौटा भी नहीं, काहे कि दोबारा पत्थर का आवाज नहीं हुआ, न फाटक का. बाहर निकल कर देखे त फाटक तक कोई नहीं. एक बार फिर स्पस्ट करने का समय आ गया है कि कोई बिलाई या कुत्ता (नहीं घुस सकता) के आने से खटाक का आवाज़ नहीं हो सकता.
एक बार भाई का कोनो दोस्त आते समय खिड़की से रूम में झांकते हुए आया. भाई से जब मिला त पूछा कि अभी इहाँ सोफा पर गंजी पहिनकर कौन बैठे हुए थे. लगता है हमारे कारन चले गए! भाई मुस्कुराकर रह गया. बोला, “चाचाजी थे!”
वर्त्तमान समय:
अब हम भाई-बहन बुजुर्ग कहलाने लगे हैं. हमरा बच्चा लोग बड़ा हो रहा है. माताजी बूढ़ी हो गयी हैं. उजला गंजी अऊर पाजामा पहिने हुए चाचा जी आझो हमलोग को, बच्चा लोग को भी, हमरे दोस्त लोग को भी अऊर बहुत सा मेहमान लोग को भी आते जाते हुए देखाई देते हैं. एक बार सोफा पर बैठा हुआ छोडकर, हमेसा ऊ जल्दी में चलते हुए देखाई दिए हैं. एक कमरा से निकलते हैं मगर दोसरा कमरा तक पहुँच नहीं पाते. हाँ, हमारी पालतू कुतिया जब तक ज़िंदा थी, अचानक कभी-कभी कोनो अनजान आदमी को देखकर भौंकने लगती थी, जबकि उसके सामने कोनो नहीं होता था.
इन सारी घटनाओं की शुरुआत से पहले:
ऊ रोज अचानक माताजी को गाँव जाना पड़ा. हम-सब बच्चा लोग को बताया गया कि हमरे चचेरे चाचा का अचानक मौत हो गया है. इसीलिये माता जी को गाँव जाना पड़ा. सब लोग सदमा में था. अभी साल भर भी नहीं हुआ था सादी का. उमर केतना रहा होगा, मोसकिल से २८-३० साल. लंबा कद, बलिष्ठ बदन, सुन्दर चेहरा अउर हंसमुख आदमी. उनके मौत का कोई बिस्वास नहीं कर सकता था.
माताजी दोसरा दिन लौटकर आईं. हम बच्चा लोग डर जायेंगे इसलिए बहुत सा बात हमलोग के सामने नहीं किया गया. बाक़ी जेतना बात हमलोग के सामने हुआ उससे बस एतना ही पता चला कि उनका मरा हुआ देह खेत में पड़ा था अउर उस समय ऊ उजला गंजी और पाजामा पहिने हुए थे. पैर में हवाई चप्पल था.
और अंत में:
ऊ कौन है, काहे हैं, कहाँ से आते हैं, कहाँ चले जाते हैं, कहाँ रहते हैं... पता नहीं! मगर आज भी हमरे परिबार के सदस्य हैं... हमलोग के लिए “चाचा जी!”
"चाचा जी" को प्रणाम !
जवाब देंहटाएंसुमिरण मरण संस्मरण |
जवाब देंहटाएंमाँ मर्मग्य अनुस्मरण ||
चाचा जी को प्रणाम |
सबको राम-राम ||
क्या कहूँ समझ में नही आ रहा ..विश्वास तो नहीं हो रहा. पर आपने बताया है तो....चाचा जी को प्रणाम.
जवाब देंहटाएंकुछ बातें आज भी विज्ञान की सीमाओं से परे हैं...
जवाब देंहटाएंHumara bhi pranam!
जवाब देंहटाएंअपने मन से जुड़ा यह विश्वास होता है ... कहते हैं न कि मानो तो मैं गंगा माँ हूँ , न मानो तो बहता पानी ! दुनिया माने न माने पूरा परिवार आज भी इस एहसास को देख रहा है महसूस कर रहा है , यही मुख्य बात है . मैं भी मानती हूँ . यह लिंक देखिये भाई - ismein amma ka anubhaw है - http://lifeteacheseverything.blogspot.in/2007/05/life-after-death.html
जवाब देंहटाएंसर इस पोस्ट को पढ़ कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए.. डर से नहीं... मेरी बुआजी की अकाल मृत्यु हो गई थी... बहुत बीमार होने पर बाबूजी उनको धनबाद लेके आये थे और धनबाद में ही उनकी मृत्यु हो गई थी... कोई २४-२५ साल की रही होंगी तब... जब अस्पताल में थी तो एक रात सपने में देखे कि वो भागी जा रही है और हम उनके पीछे दौड़ रहे हैं.. वो रुकी नहीं.. सुबह बाबूजी अस्पताल से खबर लेकर आये थे... आज भी वे यहाँ वहां नज़र आ जाती हैं... लगता है कि कोई बगल से गुज़र गया है... डर नहीं लगता.. मुझ से बहुत स्नेह था उनको क्योंकि सबसे बड़ा और पहला भतीजा था मैं... यही अप्रैल था १९८९ में जब उनकी मृत्यु हुई थी... चाचा जी को प्रणाम... कुछ दिव्या आत्मा हमारे पास रहते हैं...
जवाब देंहटाएंऊ कौन है, काहे हैं, कहाँ से आते हैं, कहाँ चले जाते हैं, कहाँ रहते हैं... पता नहीं! मगर आज भी हमरे परिबार के सदस्य हैं... हमलोग के लिए “चाचा जी!”उस दिव्य आत्मा को मेरा दिल से नमन "प्रणाम"
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति,
RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
यह सब मन का भरम ही है। बाकी जाकी रही भावना जैसी.....।
जवाब देंहटाएंअपने अपने विश्वास हैं .....मन की परत खोली आपने ... उस दिव्य आत्मा को शांति मिले ...
जवाब देंहटाएंगज़ब... वैसे ऐसी ही एक सत्य घटना मैंने अपने ब्लॉग पर लिखी थी..."भटकती आत्मा" लेकिन मैंने उस भटकती आत्मा को धर ही लिया था... आप भी एक दिन चचा को दौड़ा लीजिये :)
जवाब देंहटाएंआधुनिक युग और साइंस के लिए यह बातें न केवल अविश्वसनीय हैं बल्कि लगभग अस्वीकार्य भी हैं ! शायद यही कारण है कि आज परा मनोविज्ञान और अतीन्द्रिय शक्तियों पर शायद ही कभी कोई गंभीर लेख पढने को मिलता है !
जवाब देंहटाएंअधिकतर लोग मज़ाक उड़ायेंगे अतः इस विषय पर कोई चर्चा करने तक को तैयार नहीं लिखना तो बेशक बड़े हिम्मत का काम है !
इन परा शक्तियों पर लिखना ऐसा ही है जैसे कपोल कल्पित कहानिया को मनोरंजन मात्र के लिए लिखा जाए, आदर कम होने के खतरे के साथ मखौल उड़ने के खतरे भी मौजूद हैं !
शायद ही कोई घर ऐसा हो जिसमें इन शक्तियों की चर्चा न हुई हो अथवा उस परिवार को इनके बारे में कोई जानकारी न हो मगर यह विषय बड़ों के द्वारा बच्चों के मध्य चर्चा करने के लिए सर्वथा वर्जित विषय है...
तथाकथित सभ्य मानव समाज ने हमारे मानसिक शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक सेक्स सम्बन्धों को जिस प्रकार अछूत विषय बनाया गया है उस क्रम में यह शायद दूसरा वर्जित विषय है जिस पर चर्चा करना मना है !
मनोरंजक यह भी है कि हमें खुद नहीं मालूम कि कथा विशेष में सत्यता कितनी है और सबूत क्या हैं ...
मगर मैं इन पराशक्तियों की गतिविधियों को विश्वास न होते हुए भी नकार नहीं पाता.....
सतीश भाई ,\
हटाएंइससे क्या फर्क पड़ता है कि सुनकर कौन विश्वास नहीं करेगा ?महत्वपूर्ण है कि घटना स्वयं हमारे साथ घटी है !
कुछ ऐसी बातें होती हैं, जो होती तो हैं, पर हम अपने को आधुनिक समझ उन बातों को झुठलाने की ठान लेते हैं। पर ऐसी घटनाएं होती तो हैं ही। चाचा जी को नमन !
जवाब देंहटाएंयह सच है लेकिन विज्ञान के अंधभक्त इस पर यकीं नहीं करेंगे.... वैसे भी विज्ञान की अपनी सीमाएं हैं. सब कुछ विज्ञान के तराजू पर नहीं तौला जा सकता... चाचा जी को श्रद्धांजलि....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंरात के बारह बजे है और आपका यह संस्मरण पढ़ रहा हूँ! :)
जवाब देंहटाएंपर यह सच्चाई है कि कईं चित्र विचित्र अनुभव होते है, यह सब क्या होता है हम सदैव अनभिज्ञ रहते है। मेरा ऐसा कोई कभी अनुभव नहीं रहा। पर कुछ तथ्य है ऐसा मेरा हमेशा मानना रहा है।
ऐसी आत्माओं के मोहादि जंजाल टूटे और उन्हें शीघ्र अच्छी गति प्राप्त हो।
बहुत ही रोमांचक संस्मरण । इसमें आश्चर्य तो नही हैं । मैंने अपने पिताजी से ऐसी कई घटनाएं सुनी हैं । पिताजी, जो भय या भूत-प्रेतों में जरा भी विश्वास नही करते थे ।
जवाब देंहटाएंहम कोंची कहें... ओसे हम अपना सपना के बारे में नहीं बता सकते हैं.... हमरा ऐसन ऐसन सपना सच हुआ है, जिसका हमरी और न जाने केतना इंसान की ज़िन्दगी से जुड़ाव रहा है... बहुत कुछ निजता की परछाईं के पीछे छुपा है, कभी मौका मिला तो पर्सनली बताएँगे... लेकिन सपने सच होते हैं और ज़रूर होते हैं......
जवाब देंहटाएंजिंदगी में कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं,....आम आदमी के पास तो जिनका...कोई एक्सप्लेनेशन नहीं....
जवाब देंहटाएंहैलो :)
हटाएंकुछ कमेन्ट ऐसे होते हैं जिन्हें दोहराया नहीं जाना चाहिये वर्ना पाने वाले की आत्मा को सुख नहीं मिलता :)
दुहराया ही नहीं..तिहराया गया है...इसलिए कि यही बात मुझे तीनो पोस्ट के लिए उपयुक्त लगी.
हटाएंऔर आज पता चला..मेरी पोस्ट लोग पढ़ें या ना पढ़ें....कहाँ क्या कमेन्ट किया है...जरूर नज़र रहती है...good to know :):)
इतना ही नहीं , ये भी जान लीजिए कि जबाब के बाद वाली मुस्कराहट पे भी नज़र रहती है :)
हटाएंयही बड़का उपलब्द्धि है...!
हटाएंअसल जिन्दगी में ऐसी घटनाएं जीवन का हिस्सा होती हैं ......और यह सब हमारे विश्वासों पर आधारित होती हैं ......! फिर भी किस व्यक्ति के जीवन में रोचक और रहस्यमयी होती हैं ऐसी घटनाएँ .....!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअपनी जिंदगी में हम सब ऐसी कई घटनाओं से परिचित हो जाते हैं, जुंन्हे जीवन भर भुलाया नही जा सकता । चाहे इसे हम अंधविश्वास कह लें या और कुछ। प्रस्तुति अच्छी लगी ।. धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंरहस्य अंततः रहस्य ही रहा।
जवाब देंहटाएंदेवकी नंदन खत्री जी याद आ गए। यह प्रसंग भी तिलिस्म से भरपूर है।
चाचा जी, एतना रोमांचित करने वाला पोस्ट है की क्या कहें..एगो हमारे घर पे हम दुनू भाई बहन को पढाने के लिए एक 'सर' आते थे...वो झंझारपुर के रहने वाले थे और पटना में रह कर कम्पीटीसन का तैयारी कर रहे थे...बहुत ही अच्छा पढाते थे और स्वाभाव के तो बहुत अच्छे थे...ऊ अईसा केतना बात हम लोग को बताते रहे थे कभी कभी,..और कभी उनका बात सब कुछ कहानी नहीं लगा हमको....आज भी जब याद आता है ऊ सब बात(कुछ भी भूले नहीं है), तो कहीं से भी नहीं लगता की ऊ सब कहानी जैसा होगा कुछ...सब पर विश्वास होता है...
जवाब देंहटाएंआपका ई वाला पोस्ट पर भी हमारा तो कम से कम पूरा विश्वास है...
अब बात हद से बाहर होती जा रही है :(
जवाब देंहटाएंपंडित जी!! आप भी ना... हमको पता है कि ई बिसय आपका नहीं है..!!
हटाएंअरविन्द जी ,
हटाएंआप ज़रा हमारे दायरे के भीतर आइये फिर सब बातें हद के अंदर हो जायेंगी :)
विचित्र है दुनिया... इतने ही अजूबे भी जो चाहे -अनचाहे हमारे आसपास घटते ही हैं !
जवाब देंहटाएंअरे! मेरी पोती कहाँ रही इतने दिन???
जवाब देंहटाएंविस्मित और चकित करती हुई पोस्ट... किसी थ्रिलर सी! वर्णन भी ऐसा सजीव जैसे चलचित्र देख रहें हों, कुर्सी का हत्था थामे!!
जवाब देंहटाएंto apne bhi apni lkhni chala hi di......is adbhut vishay par......
जवाब देंहटाएंhum jaise grameen parivesh me palne wale ke liye aise
dhero sachhi-jhuti(kai baar banya hua) kahani samanya
roop se swikar hoti rahi hai.....
pranma.
सच्चाई कितनी है यह तो पता नहीं.. लेकिन लेखन बहुत जीवंत है..
जवाब देंहटाएंशुकर है की इ पोस्ट कल रात में नहीं पढ़ी नही और आप ने चाचा जी का कोई डरावना वर्णन नहीं किया है तो हमारा बुरा हाल होता । जरा मेरा विरोधाभाष देखिये की मै भुत प्रेत में विश्वास तो नहीं करती फिर भी डरावनी फिल्म आदि देख कर डर जाती हूँ उसके डरावने चरित्र कल्पना में और डरवाने बन कर सामने आने लगते है । अकेले घर में किसी के होने का आभास तो कई बार हो जाता है कई बार लगता है की अभी कोई बगल से गुजरा या पर्दे के पीछे कोई खड़ा था किन्तु उन चीजो से कभी डर नहीं लगता है जैसा आप लोगो को कभी नहीं लगा , ज्यादातर हम अपने मन का भ्रम समझ कर ध्यान नहीं देते है ।
जवाब देंहटाएंकुछ भाव ऐसे होते हैं जिनपर कोई विश्वास करे न करे मन विश्वास करता है ..
जवाब देंहटाएंKamaal ka anubhav hai!
जवाब देंहटाएंपहले तो सिरहन दौडी ... रोंगटे खड़े हुवे ... फिर चाचा जी के साथ पूरी पोस्ट पढ़ गए ... कहीं न कहीं कुछ न कुछ तो है .... अपने अपने मानने की बात है बस ...
जवाब देंहटाएंतर्क से परे भी कुछ सच्चाईयां हैं...
जवाब देंहटाएंचचा की मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं !
जवाब देंहटाएंअब ज़रा हमारे नाम का बोझ हल्का कीजिये !
हटाएं'सैयद' लिखिए या 'सय्यद' उच्चारण एक ही होगा पर जब आप 'सैय्यद' लिखियेगा तो इसे पढ़ने / बोलने में दिक्कत होगी :)
इन तीनों को बारी बारी से उचार के देखिये कैसा फील होगा बताइयेगा :)
सुधार कर दिया है!! क्षमा प्रार्थी!!
हटाएंनहीं क्षमा की बात बिल्कुल भी नहीं ! हमको तो बस उच्चारण का ध्यान करके अकुलाहट हो रही थी :)
हटाएंविश्वास ओर अविश्वास से परे आपकी लेखनी को नमन।
जवाब देंहटाएंविश्वास से भी परे
हटाएंऔर ...
अविश्वास से भी :)
समझ से परे और नासमझ से भी...!
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जवाब देंहटाएंआप लिखे हैं,भोगे हैं,देखे हैं तो हमका मान लेने में कोई हर्ज़ नय है.कुछ चीज़ें जो आस्था या भरम से जुडी होती हैं उनमें बहस की गुंजाइश नहीं रहती !
जवाब देंहटाएंएगो (आपका प्रिय बिहारी शब्द है, इसलिए इसी से वाक्य प्रारम्भ कर रहे हैं) अंग्रेज़ी कहावत है जो हमरे नाना जी (प्रसिद्द फिल्म निर्माता रवि नगाइच साहब मरहूम)अपना एगो सिनेमा के सुरू में लिख गए थे, वही कहना चाहेंगे:
हटाएंFor those who believe, no explanation is necessary.
for those who don't, no explanation is sufficient!!
लोग कहते हैं कि उम्र बढ़ने से पता चलता है, मेरे लिये तो अभी तक चीजें वही ही हैं।
जवाब देंहटाएंयह पोस्ट पढ़कर लोगों को कैसा लगा, टिप्पणियाँ देखने से पता चलता है। इस विषय पर आचार्य अभेदानन्द जी (स्वामी विवेकानन्द के गुरुभाई और स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य) की पुस्तक Life Beyond Death एक काफी रोचक प्राधिकृत पुस्तक है। जिसे एकबार अवश्य पढ़ना चाहिए।
जवाब देंहटाएंआपने काफी वास्तविक रूप में वर्णन किया। कहीं भी अतिरंजन नहीं है। फिर भी यह काफी रोचक और कुतूहल उत्पन्न करनेवाला है।
चकित करती हुई पोस्ट.....
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंवंदना अवस्थी दुबे के ब्लॉग http://wwwvandanablog.blogspot.in/2012/04/blog-post.html पर दी गयी टिप्पणी में से कुछ अंश यहाँ भी दे रहा हूँ !
लीक के फकीर हम लोग, आजकल परालौकिक विषयों, स्वप्नों, अलौकिक और अतीन्द्रिय शक्तियों के बारे में चर्चा से बचते हैं कि कहीं हमें अज्ञानी न मान लिया जाए, सो उस नाते आपने यह हिम्मत का काम किया है कि अपने अनुभव को हिम्मत के साथ शब्द प्रदान कर दिए , शुभकामनायें और बधाई स्वीकारें !
सवाल इन मान्यताओं और अनुभवों को सार्वभौमिक तौर पर स्थापित करने का नहीं है बल्कि इन विषयों और अनुभवों पर चर्चा करने का है, अधिकतर घरों में यह चर्चा के विषय रहते हैं मगर लेखन से लगभग त्याज्य हैं !
आज आपके अनुभव पढ़कर अच्छा लगा ...ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि आने वाले समय में, इन विषयों पर लोग खुल कर लिखने आगे आयेंगे, सवाल इन विषयों पर आस्था उत्पन्न करना नहीं है बल्कि ईमानदारी से अपने अनुभवों को बांटते हुए एक दूसरे पर विश्वास करना है !
आधुनिक साइंस की मान्यता है कि मानव मस्तिष्क की क्षमताओं और शक्तियों के बारे में अभी हम कुछ नहीं जानते फिर भी हम एक दूसरे के अनुभव पर आसानी से अविश्वास कर लेते हैं !
"सब लोग क्या कहेंगे" से डरे हुए हम लोग अपने आपको विद्वान कहते हैं...
बड़े भाई!!
हटाएंआपकी बातों से अक्षरशः सहमत.. अली सा ने भी हौसला बढ़ाया है.. गीता में भगवान ने सबसे अधिक बल "मैं" की समाप्ति पर दिया है.. दरअसल वैज्ञानिक बुद्धि के नाम पर इन बातों को नकारने वाले लोग, अपनी अक्षमता या ज्ञान की सीमा से घबराकर अपने "मैं" को बचाने के लिए हये सब आडम्बर करते हैं... मैंने पहले भी कहा था और अब भी कहता हूँ कि रोशनी और आवाज़ के इंसानों द्वारा सुने जाने का एक बैंड है, जिसके बाहर हम सुन/देख नहीं सकते.. तो क्या ऐसी रोशनी/आवाज़ नहीं होती?? पता नहीं कितने लोगों को मौत की सज़ा दे दी गयी, क्योंकि उन्होंने वो कहा जो समाज में फैले तथाकथित विज्ञान के तत्कालीन सिद्धांतों से बाहर था. धरती घूमती है, यह पहली बार बताने वाला पागल समझा गया.. बाद में वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया और उस पहले आदमी की फोटो लगा दी.
दरअसल हम अपने ज्ञान/मिथ्याज्ञान/अहम् के आगे देखकर भी मानना नहीं चाहते!!
दुनिया में हर अविश्वसनीय तथ्य मिथ्या है... ये बात कुछ हजम नहीं होती!!
jindagi hai to ghatnayen hain... hain na badke bhaiya:)
जवाब देंहटाएंइधर जहां मैं रहता हूं वहां एक घर है; घर सं.16. जो कोई इस घर में रहने आता है एक महीने से ज्यादा नहीं रहता। रात में,घर में रहने वालों को लगता है कि कोई द्वार पर दस्तख दे रहा है। लेकिन जब द्वार खोल कर देखा जाता है तो द्वार पर कोई नहीं होता। इस तरह की घटनाओं में सत्यता है।
जवाब देंहटाएंअगर आप राइन या ओलिवर लॉज की किताबें पढ़ें तो चकित रह जाएंगे। ओलिवर लॉज नोबल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक था और उसने जिंदगी भर भूत-प्रेतों पर काम किया और मरते वक्त लिख गया कि विज्ञान के सत्य जो मैंने जाने और खोजे,वे उतने सत्य नहीं हैं,जितने भूत-प्रेत सत्य हैं।
अगर आप राइन या ओलिवर लॉज की किताबें पढ़ें तो चकित रह जाएंगे। ओलिवर लॉज नोबल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक था और उसने जिंदगी भर भूत-प्रेतों पर काम किया और मरते वक्त लिख गया कि विज्ञान के सत्य जो मैंने जाने और खोजे,वे उतने सत्य नहीं हैं,जितने भूत-प्रेत सत्य हैं।
जवाब देंहटाएंईश्वर चाचाजी की आत्मा को शांति दे! हमारी श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंयहाँ एक बात मैं स्पष्ट करना आवश्यक समझता हूँ जिन्हें विश्वास हुआ पढ़कर या जिन्हें नहीं हुआ दोनों के लिए, वो ये है कि ''चाचा जी'' दीखते हैं या नहीं उसे सिर्फ देखनेवाले ही सच मानेंगे. कई लोग जो पहली बार हमारे घर आये उन्होंने भी अनुभव किया है इसे. मगर चाचा जी की तरफ से अगर उत्तर देना हो तो अब मेरा ये मानना है की वो चाहते हैं कि हम जानें कि वो हमें देख रहे हैं. एक दिन में एक बार ही दिखने का कोटा है प्रति सदस्य ना उससे कम ना अधिक...लेकिन देखकर एक सिहरन सी अवश्य हो जाती है मन में. जो भी हो शान्ति मिले उन्हें...
जवाब देंहटाएंमैं भी साक्षी हूँ...पता नहीं यह मेरा सौभाग्य था या फिर दुर्भाग्य!!!
जवाब देंहटाएंघटनाएं जीवन का हिस्सा होती हैं वास्तविक रूप में वर्णन किया।
जवाब देंहटाएंक्षेत्रीय भाषा में ब्लॉग पर कम ही लिखा जा रहा है. अच्छा लगा यहां आ के.
जवाब देंहटाएंरोचक और तिलस्मी ढंग से आपने संस्मरण रखा। यह सब मन मे बैठी हुई ग्रंथी है। जैसी जिसके मन मे बैठ जाय। कुछ इतनी प्यारी होती है कि इसे मानने मे ही सुख मिलता है। जैसे यह मानना बहुत ही अच्छा लगेगा कि मेरे चाचा जी का आशीर्वाद अभी भी हमारे ऊपर है। उनका साया हमारे सर पर है। इसलिये इसे दिमाग कभी झुठलाना चाहेगा ही नहीं। मेरे साथ भी ऐसी घटना घटी होती तो वह मेरे लिए भी अतिप्रिय होती ।
जवाब देंहटाएंहमारे मोहल्ले में गंगा घाट के ऊपर एक पीपल का वृक्ष था। उसमे घट बांधे जाते थे। मोहल्ले के बच्चों का विश्वास था कि वहाँ आत्माओं का निवास है। रात होने पर किसी की उस पेड़ के पास जाने की हिम्मत नहीं होती थी। मेरी साथियों के साथ शर्त लगी और मैं एक रात 12 बजे उसी पेड़ से जाकर एक घट उतार लाया।
वैसे यह भी सच है कि हम उसे ही सच मानते हैं जो महसूस करते हैं। हो सकता है आपने जो लिखा वही सच हो और हमने जो लिखा वो गलत।
रोचक! कथ्य और कथन दोनों ही!
जवाब देंहटाएंमहत्त्वपूर्ण ये नहीं कि हम इन घटनाओं को मानते हैं कि नहीं , महत्त्वपूर्ण ये है कि आपने ई महसूस किया है और इसी का वजह से आपके चाचा जी आजहू आप के बीच जिन्दा हैं |
जवाब देंहटाएं"शरीर नश्वर है , आत्मा अमर" - श्रीमद्भगवद्गीता(सार)
सादर
चाहे जो भी हो. ऐसा हो अपने देस में ही सकता है कि पेड-पौधा, पत्थर, घास और पशु लोगन के साथ मृतात्मा को भी घर का सदस्य मान लिया जाय :)
जवाब देंहटाएंआत्मा अमर है और असमय मृत्यु उन्हें मुक्त नहीं होने देती। मेरी मामी की 18 साल की उम्र में चूल्हे पर खाना बनाते समय जल गईंं। उनका अहसास है और उन्हें जब अपनी माँ से मिलने जाना होता तो वे मेरी दूसरी मामी के साथ जाती थीं। वे माँ से सिफारिश करवाती थी कि उन्हें आगरा भिजवा दो।
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